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वृद्धाश्रम की जरूरत क्यों होती है ?

गाजियाबाद से निर्मल शर्मा का आलेख

भारतीय समाज में एक लोकोक्ति बहुत ज्यादा प्रचलित है कि ‘पूत सपूत तो का धन संचै ? और पूत कपूत तो का धन संचै ? ‘ हालांकि यह लोकोक्ति धन संचय की बेहिसाब लालच को रोकने के लिए बहुत सटीक है,लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कथित उदार माने जाने वाले अटल बिहारी वाजपेई जी ने केन्द्र सरकार के कर्मचारियों की,जो 2004के बाद नियुक्त हुए हैं,उनकी वृद्धावस्था में मिलने वाली पेंशन को बंद करके बहुत बड़ा अपराध किया है ! पेंशन की योजना द्वारा थके-हारे,अशक्त हो चुके कर्मचारी को वृद्धावस्‍था के दौरान वित्तीय सुरक्षा और स्‍थायित्‍व दिया जाता है,जब लोगों के पास आय का कोई नियमित स्रोत नहीं होता है।     
            पेंशन मिलने से 60 वर्ष से ऊपर हो चुके अशक्त और निर्बल हो चुके लोगों के लिए जीवित रहने के लिए एक निश्चित आर्थिक अवलम्बन रहता है ! स्वाभाविक रूप से अपने पुत्रों या पुत्रवधुओं पर आर्थिक रूप से बोझ बनकर रहना अपने स्वाभिमान और जीवन जीने के उत्साह में अप्रत्याशित रूप से अस्वाभाविक बन जाना होता है ! श्री अटल बिहारी वाजपेई ने पेंशन रोककर इस देश के उन कर्मचारियों को,जो अपनी जवानी के दिनों की अपनी सर्वश्रेष्ठ उर्जा देश के लिए बलिदान कर चुके होते हैं,उनकी वृद्धावस्था को ‘नरक ‘बनाकर रख दिया ! विडंबना देखिए श्री अटल बिहारी वाजपेई ने अप्रत्याशित रूप से अमीर बन चके विधायकों, सांसदों, मंत्रियों आदि की पेंशन में कटौती बिल्कुल नहीं किया !
              भारत में गलाकाट प्रतियोगिता के चलते जीवन में संघर्ष बहुत है ! मकान, जायदाद,शिक्षा, स्वास्थ्य,दवाईयों आदि की कीमतें एक आम आदमी के आमदनी के समानुपातिक कतई नहीं है, इसलिए एक साधारण नौकरी करनेवाला व्यक्ति उक्त वर्णित संसाधनों को प्राप्त करने में लगभग अपना पूरी जवानी,पूरी ऊर्जा और पूरा जीवन ही खपा देता है ! ऐसे जीवन जी चुका व्यक्ति अपने जीवन के सान्ध्य काल में अपने बच्चों को काबिल और स्वावलंबी बना चुका व्यक्ति अपने बच्चों से सुख की कामना और चाहत रखता है लेकिन चूंकि वर्तमान दौर में बेरोज़गारी, मंहगाई आदि से नई पीढ़ी और भी ज्यादा त्रस्त है, इसलिए नई पीढ़ी भी अपने मां-बाप की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाता उस स्थिति में जीवनभर संघर्ष से थके-हारे अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुके लोगों में घोर नैराश्य और मानसिक विकृतियों का आ जाना स्वाभाविक ही है !
            और यही बिषम और दुरूह परिस्थितियां भारतीय वृद्ध लोगों को वृद्धाश्रम जाने को मजबूर कर देतीं हैं ! हालांकि वर्तमान समय की एकल या न्यूक्लियस परिवार और स्वच्छंद जीने की कामना नई पीढ़ी को अपने असक्त और वृद्ध हो चुके मां-बाप को वृद्धाश्रम छोड़कर उनसे मुक्त हो जाने की मानसिकता भी उल्लेखनीय है ! अभी हाल ही में एक सम्मानित संस्था द्वारा मथुरा, काशी,अयोध्या और हरिद्वार में वृद्धाश्रमों का सर्वेक्षण कराया गया,उसमें एक चौंकाने वाला तथ्य का खुलासा हुआ कि उक्त वर्णित जगहों पर वृद्ध महिलाओं की सर्वाधिक संख्या पश्चिम बंगाल से आईं हुईं हैं ! यह संस्था इसके कारण को बताने में असमर्थ रही है ! इसमें और अधिक शोध और अनुसंधान की जरूरत है कि आखिर ऐसा क्यों है ?
        
       बुजुर्गों के प्रति अपराध दिल्ली में सर्वाधिक !
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      राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी National Crime Records Bureau या एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वर्ष 2020 में बुजुर्गों के साथ अपराध के 906 केस दर्ज हुए। ये देश के अन्य 19 महानगरों में सबसे ज्यादा हैं। हालांकि पिछले साल यानी 2019 के मुकाबले इनमें कमी आई है। 2019 में दिल्ली में बुजुर्गों के प्रति 1076 अपराध दर्ज हुए थे, लेकिन 2020 में कमी आई और ये कुल 906 केस दर्ज किए गए। मुंबई में 2020 में वृद्धों के प्रति अपराध के 844 केस दर्ज हुए, अहमदाबाद में 709, चेन्नई मे 321, बंगलूरू में 210, हैदराबाद में 170, जयपुर में 157 केस दर्ज हुए।
           आज से 50-60 वर्ष पूर्व के भारतीय समाज में संयुक्त परिवार की सुनियोजित पवित्र परंपरा थी, लेकिन अब चूंकि देश के विभिन्न शहरों में लोग नौकरी करने लगे, इसलिए खुद,बीबी और बच्चों में सिमटकर एकल परिवार बनकर रह जाने की मजबूरी भी है ! इस स्थिति में मां -बाप छोटे-छोटे फ्लैटों में रहनेवाले अपने किस बेटे के पास रहने के जानें,यह बहुत बड़ी समस्या है ! प्रायः बेटा मां-बाप को अपने साथ रखने के लिए स्वीकृति प्रदान कर देता है, लेकिन अधिकांश पुत्र वधुएं अपने सास-ससुर के नखरे बर्दाश्त करने से बचने के लिए साथ रहने से साफ मुकर जातीं हैं !
           इस दुरूह और बिषम परिस्थिति में जब जीवन के सान्ध्यकाल में बेटा-पुत्रवधू साथ रखने से मना कर दे,अटल बिहारी वाजपेई जैसे असंवेदनशील प्रधानमंत्री बुढ़ापे की लाठी पेंशन बंद करवा दें,उस बिषम परिस्थिति में कोई भी बुजुर्ग वृद्धाश्रम नहीं जाएगा तो कहां जाएगा ! क्योंकि उनके पास कोई विकल्प ही नहीं बचा है !
          एक मित्र ने वर्तमान पीढ़ी की अपनी बुजुर्ग और अशक्त हो चुकी मां के प्रति क्या व्यवहार हो गया है,इसपर एक बहुत कटु लेकिन सत्य घटना पर आधारित एक कहानी दृष्टव्य है ‘ एक नवदंपति,जिसका एक 8 वर्ष का लड़का है,अपनी कार से एक दावतपार्टी में जा रहे थे,बीच रास्ते में एक मंदिर में भंडारा चल रहा था, उस नवदंपति ने अपनी वृद्ध हो चुकी मां से छुटकारा पाने के लिए एक युक्ति निकाली,वे कुछ बहाना बना कर मां को उस मंदिर पर उतारते हुए कहा कि ‘मां हम लोग शाम को आपको लेते हुए घर चले चलेंगे। ‘
             ये सबकुछ होती घटना को उस नवदंपति का 8 वर्षीय लड़का बड़े ध्यान से सुन रहा था,कार आगे बढ़ी तो उस अबोध बच्चे ने अपने बाप की तरफ मुखातिब होते हुए बड़ी ही मासूमियत से बोला ‘पापाजी ! हम जब बड़े होंगे तब हम भी एक मंदिर के पास घर लेंगे ! ‘
          वह व्यक्ति बोला ‘ऐसा क्यों बेटा ? ‘
           उस बच्चे ने जबाव दिया कि ‘पापाजी ! हम भी जब कहीं दूर घूमने जाएंगे,तब आपको और मम्मी जी को उस मंदिर में छोड़कर जाएंगे,जैसे आपने दादी जी को उस मंदिर में छोड़ा !’
       आज पूरे भारतवर्ष में वर्तमान समय में 728 वृद्धाश्रम चल रहे हैं ! भारत में 60वर्ष से ऊपर वाले लोग सर्वाधिक संख्या में हैं ! अभी सरकार की तरफ से घोषणा की गई है कि भारत के हर जिले में एक वृद्धाश्रम खोलने की आवश्यकता महसूस की जा रही है ! ज्ञातव्य है कि भारत के अलावा चीन, अमेरिका, जापान और रूस में सर्वाधिक वृद्ध लोग रहते हैं !

        

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