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भूमि बिवाद को ले औरंगाबाद में हिंसक झडप चरम पर, एक सप्ताह में तीन हिंसक झडप से जिले में कानून व्यवस्था का खुल रहा पोल

औरंगाबाद खबर सुप्रभात समाचार सेवा

औरंगाबाद जिले में लगातार हो रहे भूमि बिवाद जिला में कानून व्यवस्था का पोल खोलकर रख दिया है वहीं प्रत्येक शनिवार को थाना में लगने वाले भूमि बिवाद को सुलझाने हेतु जनता दरबार के अस्तित्व पर भी सवाल खड़ा हो रहा है। बता दें कि 27जून को जिले के सिमरा थाना क्षेत्र के अंजनिया गांव में लगभग तीन बजे भूमि बिवाद को लेकर दो गुटों के बीच हिंसक झडप में लगभग 10लोग घायल हो गए हैं। सभी घायलों का बेहतर इलाज के लिए सदर अस्पताल औरंगाबाद में भर्ती कराया गया है। जानकारी के अनुसार संवाद प्रेक्षण तक अभी प्राथमिकी दर्ज नहीं हो सका है। इस

संबंध में सिमरा थानाध्यक्ष ने बताया कि घायलों का अभी इलाज चल रहा है और थाना से इंजोरी काटा गया है। उन्होंने कहा कि पुरे मामला पुलिस के संज्ञान में है और समयानुसार पुलिस सभी आवश्यक कार्रवाई एवं जांच में जुट गई है। बता दें कि औरंगाबाद जिले में भूमि बिवाद को लेकर आए दिन हिंसक झडप सामने आते रहा है और हिंसक झडप में हत्या भी होते रहा है। एक सप्ताह के अंदर औरंगाबाद जिले में तीन स्थानों पर भूमि बिवाद को लेकर हिंसक झडप होने का मामला प्रकाश में आते ही यह जाहिर होता है कि जिले में कानून का एकबाल खत्म हो रहा है और अपराधियों का मनोबल बढ़ा हुआ है। इसके अलावे जिला के सभी थानों में प्रत्येक शनिवार को लगने वाले जनता दरबार के प्रासंगिकता और अस्तित्व पर भी सवाल उठ रहा है। बता दें कि इसी सप्ताह रफीगंज थाना क्षेत्र के धरहरा गांव में भूमि बिवाद को लेकर हुए झड़प में लगभग आठ लोग घायल हो गए थे वहीं ओबरा थाना क्षेत्र के लख डिहरा गांव में भूमि बिवाद को लेकर हिंसक झडप में छः लोग घायल हुए थे। 28अप्रैल 2023 को दाउदनगर थाना क्षेत्र के शमशेर नगर में भूमि बिवाद को लेकर दो पक्षों के बीच मारपीट और गोली बारी उपेन्द्र कुमार सिंह जहां गंभीर रूप से घायल हो गए थे वहीं उनके पुत्र मनोरंजन शर्मा का इलाज के क्रम में मौत हो गया था। पिछले साल के भूमि बिवाद मामले में दाउदनगर अनुमंडल के हसपुरा तथा गोह थाना क्षेत्र में भी अनेकों हिंसक झडप का मामला प्रकाश में आया था और हसपुरा थाना क्षेत्र में एक महिला को भी मौत का घाट उतार दिया गया था। इस तरह यदि कहा जाए कि औरंगाबाद जिले में भूमि बिवाद को लेकर आए दिन हिंसक झडप और हत्या आम बात हो गई है तथा कानून का एकबाल खत्म हो रहा है और थानों में लगने वाले जनता दरबार के अस्तित्व और प्रासंगिकता पर सवाल उठ रहा है तो इस मामले में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा।

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