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नाग पंचमी, भगवान बुद्ध और नागवंशीय राजा का माले ने जारी किया इतिहास

अम्बा (औरंगाबाद) खबर सुप्रभात

भारत का इतिहास क्रांति व प्रतिक्रांति का इतिहास रहा है।
इसी इतिहास में क्रांति का प्रतिनिधित्व नागवंशीय आंदोलन ने किया।इस देश का इतिहास ही नागवंश के इतिहास से प्रारंभ होता हैं। शिशुनाग उस संघर्ष का नेतृत्व करने वाला पहला नागवंशी सेनानी था।
ई.स.पूर्व 642 में मगध साम्राज्य का उदय हुआ, जिसका संस्थापक शिशुनाग था। यहाँ से नागवंशीय राजाओ का इतिहास शुरू होता है। यही लोग श्रमण संस्कृति के नेतृत्व करने वाले वीर सेनानी थे।
तथागत बुद्ध की मानवतावादी विचारधारा को जिन नाग लोगो ने जम्बूद्वीप अर्थात भारत वर्ष में प्रसारित किया, नागपंचमी, उन्ही नाग लोगो का स्मृति पर्व है।नाग लोग भगवान बुद्ध के उपासक थे।
नागपंचमी का संबंध नाग अर्थात साँप( भारत के ब्राह्मणवादियों ने भारत के नागवंशी राजाओं के इतिहास को तोड़ मरोड़ कर लोगों को भ्रमित करने के लिए नागवंश का संबंध सांप से जोर कर दिखलाया है। एवं कई मनगढ़ंत कहानियां गढ़ कर आर्य ब्राह्मण क्षत्रियों के साथ नागवंशी राजाओं के युद्ध की कथाएं भी हैं जो महाभारत में उल्लिखित है) से न होकर पांच महापराक्रमी नागवंशीय राजाओ के प्रतीक ( टोटम )के रूप मनाया जाता था, जो गणतंत्र को मानने वाले थे। उन्होंने बुद्ध के विचारों पर चलकर जिन्होंने समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व , न्याय के आधार पर अपना एक स्वतंत्र गणराज्य स्थापित किया था।
इन पांच नागवंशीय राजाओ में पहला शासक- ‘अनंत’ राजा था। जम्मू-कश्मीर का अनंतनाग शहर इनकी स्मृति को याद दिलाता है। इन्हें ‘शेष’ भी कहा जाता था जिन्हें सम्मान में ‘शेषनाग’ राजा भी कहा जाता है.
दूसरा -कैलाश मानसरोवर क्षेत्र का प्रमुख राजा ‘वासुकी’ नागराजा था। वासकराजा के आज भी लोकगीत गाए जाते हैं
तीसरा- तीसरा नागराजा ‘तक्षक’ था, जिनके नाम से पाकिस्तान में तक्षशिला हैं।
चौथा – राजा ‘करकोटक ऐरावत’ थे जिनके राज्य का क्षेत्र रावी नदी के पास था।
पांचवा – राजा ‘पद्म’ था जिसका गोमती नदी के पास का क्षेत्र मणिपुर, असम प्रदेश था, इसी नागावंशीयो से नगालैंड बना। महाराष्ट्र का नागपुर, बिहार का छोटा नागपुर भी नाग राजाओं के कारण है।
ये पांचो नागवंशीय राजा बुद्ध की श्रमण संस्कृति की रक्षा करते थे और असमानता, अन्याय पर आधारित वर्ण संस्कृति को प्रश्रय देने वालो के साथ लगातार संघर्ष कर उन्हें राज्य से बाहर खदेड़ते थे।ये राजा अपने राज्यो की प्रजा में तथागत बुद्ध के विचारों को फैलाते थे। पांचों राज्य की प्रजा अपने श्रमण संकृति के रक्षक ,मानवतावादी , महापराक्रमी राजाओ की स्मृति में हर साल एक उत्सव मनाते थे, इसे ही ‘नागपंचमी’ कहा जाता है‌।
पांच राज्यो में ये उत्सव अत्यंत हर्षोल्लास से मनाए जाने के कारण धीरे- धीरे यह उत्सव पूरे अखण्ड भारत में मनाया जाने लगा। जिससे वर्ण संस्कृति के लोगो मे खलबली मच गई, और उन्होंने नागवंशीय राजाओ के गौरवशाली इतिहास को मिटाने के लिए षडयंत्र करके योजनाबद्ध तरीके से नागराजा का सम्बंध साँप से जोड़ कर विकृत कर इतिहास रच दिया।
इसी कारण गौरवशाली नागपंचमी सांप को पूजने वाली पंचमी हो गयी, जो साँप के पूजने व दूध पिलाने के अंधविश्वास में बदल दिया. वीर शासक बुद्ध अनुयायी नागवंशीय राजाओ का इतिहास और उत्सव विलुप्त हो गया।
वर्तमान में लोग अपने घरो की दिवारों पर पाँच नाग के चित्र बनाते है ,पूजा करते हैं लेकिन सही इतिहास की जानकारी नहीं है।
पाँच नाग श्रमण संस्कृति के रक्षक पाँच नागवंशीय पराक्रमी राजाओ के ही प्रतीकात्मक रुप है। नागपंचमी का यह उत्सव तथागत बुद्ध से जुड़ा हुआ हैं. तथागत बुद्ध के सिर के ऊपर पांच नाग के फन वाली मूर्तियां इन्हीं नाग राज्यों का प्रतीक है। जब तथागत ने बोधिवृक्ष के नीचे बोधगम्य हुए, उसके बाद वहीं पर अलग-अलग वृक्षों के नीचे ध्यान साधना की थी ।उस दौरान आंधी, तूफान, भारी वर्षा से नाग राजाओं ने तथागत को सुरक्षा प्रदान की थी।

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