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पीयूसीएल के राष्ट्रीय परिषद सदस्य ने सरकार के नितियों का किया आलोचना

नवादा संवाद सूत्र, खबर सुप्रभात


य़ह कड़वी सर्वविदित हकीकत है कि 70 के दशक में इंदिरा निरंकुशता चरम सीमा लांघ के आपातकाल की घोषणा कर संवैधानिक मौलिक अधिकारों की पूर्णतः खात्मा कर लोकतंत्र की बखिया उघेड़ कर जनाज़ा निकाल दी गई थी। पूर्व की कांग्रेसी और वर्तमान मोदी जी की सरकार जुमले बाज फर्जी वादों व घोषणाओं के बदौलत सत्तासीन होकर विपक्ष का दमन करने का पहला निरंकुश हृदयविदारक कदम उठाने में कोई कोताही नहीं किया है। इनके दमन के तीन प्रमुख हथियार हैं। विपक्षी या विरोधी अथवा सच की अभिव्यक्ति करने वालों को देशद्रोही, UAPA ,CCA से लेकर कई काले कानूनों के मकड़जाल में फंसा कर तबाह करना मूल मकसद है। यही वजह है कि NIA ,ED और CBI किसी भी केंद सरकार की दमन के लिए चर्चित पाकेट की मान्यता प्राप्त संगठन में बेशुमार सर्वविदित है। इसके द्वारा विरोधी पर दमन जारी है। पूर्व से लेकर वर्तमान सरकार देश व समाज हित में इन संस्थाओं का सदुपयोग नहीं कर सत्ता और अपने निजी वर्चस्व व स्वार्थ में निर्लज्जता पूर्वक दुरुपयोग किया है। हमाम में सबके सब पूर्ण नंगे व बेपर्द हो चुके हैं। संसदीय पार्टी और दल अपने जन विरोधी क्रिया कलाप से अप्रासंगिक होते चले जा रहे हैं।
आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी को इसकी खामियाजा बुरी तरह से भुगतना भी पड़ा। खुद चुनाव हार गई और इनकी सरकार भी बुट लादने तथा तेल नापने चली गई थी। विपक्षी जनता दल की सरकार वी पी सिंह के नेतृत्व में दक्षिण पंथी और वामपंथी दलों के समर्थन से सरकार बनी । पर सत्ता की लोलुपता और निजी वर्चस्व को लेकर अपने आंतरिक अंतर्विरोध में उलझ कर खुद सत्तापक्ष धराशायी होकर ताश की पते की तरह मात्र ढाई वर्ष में ही बिखर गयी। इसी का अवैध फायदा बखूबी उठाकर पुनः इंदिरा गांधी ने 1980 में बहुमत से सत्तासीन हो गई ।
इसके बाद कांग्रेस के दामन में घोटाले से लेकर कई तरह के दाग लग चुके थे। उभरते व बढ़ते आपसी आंतरिक अंतर्विरोध के गहरा जाने के चलते बड़ी तेजी से कांग्रेस के प्रति आम जनता का मोह भंग होते चला गया। इस संकट की घड़ी व क्रम में विकल्पहीनता के अभाव में देश में एनडीए की सरकार , जिसके प्रधान मंत्री अटल जी के नेतृत्व में बनी। कालांतर में फिर कांग्रेस के मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी और अपने कार्यकाल बखूबी पूरा किया।
लेकिन कांग्रेस सरकार द्वारा जन समस्याओं का स्थाई समाधान करने में पूर्णतः असफलता को लेकर उपजे जनाक्रोश को भंजा कर एनडीए पुनः शासन सत्ता पर आज तक पूर्ण काबिज है। य़ह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि एनडीए अगर सांपनाथ है तो निश्चित रूप से यूपीए भी नागनाथ है। दोनों चोर-चोर मौसेरा भाई हैं। विकल्पहीनता का ही अवैध लाभ यूपीए और एनडीए की सरकार को मिल रहा है।
एनडीए के अब तक के शासन काल में मूल तीन सूत्री बेशुमार प्रमाणित उपलब्धि से इंकार नहीं की जा सकती है। डंका की चोट पर बेशक यह खुलेआम सार्वजनिक एलान किया जा सकता है ।
पहला कॉर्पोरेट घरानों के हमदर्द ,साम्राज्यवादी बेदर्द शक्तियों के बड़े विश्वसनीय चाटुकार सह बेजोड़ चाकर , साम्प्रदायिकता के जननी व प्रत्यक्ष दानवों के संरक्षक हैं।
दूसरा समाज में उन्नत स्तरीय प्रबुद्ध नागरिकों के अलावे साहित्यकारों , बुद्धजीवियों,समाजसेविओ, अल्पसंख्ययों ,महिलाओं, वामपंथी ताकतों और हरेक मेहनतकशों पर कृत्रिम क्रूर योजनाबद्ध ढंग से निर्ममतापूर्वक भयाक्रांत कहर जारी है।
आत्मनिर्भरता ,स्वदेशी उत्पादन, सबके साथ, सबके विकास और सबके विश्वास की गला फाड़कर ढिंढोरा पीटने वाली मोदी जी की सरकार की आज कथनी और करनी में कोई मेल नहीं है । दोगलापन के चंगुल में बुरी तरह बेरहमी से जकड़न में जकड़े हैं। नकली डींग सिर्फ हाकने मोदी जी की सरकार आज कहाँ खड़ी बेशर्मी से दिख रही है ? ख़ासकर अंधभक्त, अठबाकर और दिशाविहीन, असजग के साथ सम्वेदनशीलता से विहीन लोगों के लिए यह एक अति महत्वपूर्ण विचारणीय अवलोकनार्थ अक्षय प्रश्न है।
उदाहरणार्थ देश के जाने माने बुद्धजीवियों, पत्रकारों, प्रबुद्ध रंगकर्मियों, सजग प्रहरी, साहित्यकारों और सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ में आवाज बुलन्द करनेवाले को अर्बन नक्सली के नाम पर दमन के शिकार निर्लज्जता से बनाया जा रहा है । अल्पसंख्यकों को सुनियोजित साजिशों के तहत पाकिस्तान और आतंकवाद के समर्थक व संरक्षक के नाम पर नकली सरकारी मुहर चिपकाकर दमन का अंतहीन सिलसिला बेरोकटोक धड़ल्ले से बदस्तूर अनवरत जारी है।
समाज के सबसे दबे – कुचले देश के मूल निवासी आदिवासियो, महादलितों ,किसानों, मजदूरों समाज के विभिन्न क्षेत्रों व तबकों के संघर्षशील मेहनतकश गरीबों को फर्जी नक्सली के लेबुल साटकर सबसे ज्यादा उत्पीड़न के शिकार बनाया जा रहा है। आज भी कुछ मुट्ठीभर थैलीशाह के नासूर नादानी के चलते सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक दृष्टिकोण से लाचार बनाकर बेहद शोषण- उत्पीड़न का अंतहीन सिलसिला बेरोकटोक धड़ल्ले से जारी है। खुन पसीना बेचकर जिंदा रहने वाले को प्रताड़ित करने व भुक्तभोगी होने के लिए भरपूर नाहक नापाक हरकतों और अमानुषिक षड्यंत्रों से कदापि बाज नहीं आ रहे हैं।
एक तरफ कॉर्पोरेट की निर्लज्ज दलाली और मुनाफा कमाने के लिए देश की सारे सार्वजनिक सरकारी मुनाफा देने वालीं संस्थाओं का निजीकरण किया जा रहा है। सरकारी नौकरी देने के बजाय छटनी ,मँहगाई, बेरोजगारी के साथ भ्रष्टाचार को मानो सरकारी कानूनी मान्यता प्रदान कर बेशर्मी से व्यवहारिक अमलीजामा पहना दी गई है। य़ह घोर देश व समाज विरोधी है ।जन संघर्षों से गर्भ से पैदा नये विकल्प ही देश और जनता की जमीनी हकीकत से जुड़ा असली विश्वसनीय व टिकाऊ विकल्प होगा। इसके लिए तात्कालिक परिस्थितियों के मद्देनजर संगठित जन संघर्ष ही एक मात्र सही रास्ता और कारगर ठोस विकल्प है।

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