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सरकार तो बदल गई लेकिन अधिकारियों का तनाशाही नहीं बदला , राजद प्रवक्ता पर भी साधा निशाना , गिरफ्तारी का एसआईटी गठित कर जांच हो : श्याम सुंदर

संवाद सूत्र , खबर सुप्रभात

हसपुरा स्थित अंचल अधिकारी के जनता दरबार में हुई मामूली झड़प के बाद निशांत को जेल भेज दिया गया। निशांत का जेल भेजा जाना और अधिकारियों की तानाशाही रवैया दोनों ही निंदनीय है। दोषी कौन हैं-जेल भेजने वाले अधिकारी या फिर कानून हाथ में लेने वाला निशांत! मामले की एसआईटी जांच होनी चाहिये। निशांत मानसिक दिवालिया नहीं है। पूरे होशो-हवास में उसने जमीन मापी का अनुरोध अधिकारियों से किया था। फिर मामला कहां से बिगड़ा?
आश्चर्य है कि राजद के लिए निशांत अपना खून-पसीना बहा रहा था और तब राजद के जिला प्रवक्ता डा. रमेश यादव ने बयान जारी कर पल्ला झाड़ लिया कि निशांत राजद का कार्यकर्ता नहीं है। तब तो यही माना जाएगा कि काम निकलता अपना (नेताओं का) भाड़ में जाये जनता।

सवाल यह नहीं कि वह राजद से जुड़ा है या नहीं, बड़ा सवाल है कि वह जन पक्षीय है या नहीं। जेल भेजकर क्या सच की आवाज दबाई जा सकती है? आखिर अधिकारियों की जिम्मेदारी कब तय होगी? इस पर क्यों नहीं मुंह नहीं खोलते सियासतदान? क्या सरकार बदलते ही बेलगाम अधिकारी लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करना सीख लिये हैं? देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। 75 वर्षों की आजादी में क्या अधिकारी जनता के मुद्दों पर संवेदनशील हैं? नौजवान संवेदना से भरे होते हैं। उनमें जोश और जज्बा होता है। जनपक्षीय मुद्दों पर आंदोलित सिर्फ नौजवान हो सकता है। नेतृत्वकामी तबका दूसरा होता है। बदले परिवेश में सियासतदान नौजवानों के संवेदना से खेल रहे हैं। इनके भावनाओं से खिलवाड़ करने वाले नेताओं को आने वाला वक्त माफ नहीं करेगा।

दूसरी घटना भी, जो मीडिया की सुर्खियां नहीं बटोर सकी, अंचल अधिकारी, गोह के जनता दरबार से ही जुड़ा है। एक सेवानिवृत्त दारोगा दो वर्षों से दाखिल खारिज के लिये अंचल कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं। उन्होंने पांच हजार रुपये घूस नहीं दिया। परिणामतः उनका दाखिल खारिज नहीं हो रहा है। इस बाबत उन्होंने लिखित शिकायत स्थानीय माननीय विधायक भीम कुमार सिंह के साथ ही डीएम, एसपी समेत अन्य आला अधिकारियों से की है।
इस सबके बीच, बड़ा सवाल है कि आखिर आमलोग कानून हाथ में लेने पर उतारू क्यों हो रहे हैं? यह नौबत ही क्यों आ रही है? माना कि हम लोकतंत्र में जीते हैं। अगर आमलोगों को कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है तो अधिकारियों को भी कानून रौंदने का अधिकार देश का संविधान, विधायिका और न्यायालय नहीं दिया है।
मुझे उम्मीद, भरोसा और विश्वास है कि निशांत न्यायालय से दोषमुक्त होगा।

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