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भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस पर विशेष आलेख

डीके अकेला का रिपोर्ट

लम्बे समय से प्रतिक्रियावादियों शक्तियों के द्वारा क्रांतिकरियो को इस रूप में पेश किया जाता रहा है, जैसे कि वे हिंसक लोग थे और कभी भी किसी को मारने पर उतारू रहते थे। यह भी बताया जाता रहा है कि क्रांतिकारियो पूरी लड़ाई सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजो को भगाने के लिए थी।
हाल के दो दशकों में जब क्रांति करियो से जुड़े हुए साहित्य का प्रकाशन होने लगा और संचार के साधन बढी तो यह साबित हुआ कि क्रांति का अर्थ सिर्फ हिंसा नहीं, बल्कि कुछ और है। भगत सिंह क्रांति कारी से अधिक एक दार्शनिक के रूप में सामने आए।


उन्होंने अपने साहित्य से जिसमें पत्र, अपील, निबंध और घोषणा पत्र शामिल हैं। उन्होंने न सिर्फ क्रांति को स्पष्ट तौर से परिभाषित किया, बल्कि यह भी बताया कि क्रांतिकरियो के पास स्वतंत्र भारत की शासन व्यवस्था को लेकर भी पूरी योजना थी। यह योजना विश्व बंधुत्व, समाजवाद, धर्म निरपेक्षता, समानता और लोकतंत्र पर आधारित थी।
भगत सिंह का कहना था कि क्रांति के लिए खूनी लड़ाइयां अनिवार्य नहीं।
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भगत सिंह ने असेंबली बम कांड के दौरान सेशन कोर्ट में दिये गये व्यान में क्रांति को परिभाषित करते हुए कहा था कि क्रांति के लिए खूनी लड़ाइयां अनिवार्य नहीं है और न ही उसमें व्यक्तिगत प्रतिहिंसा के लिए कोई स्थान है। वह बम और पिस्तौल का सम्प्रदाय नहीं है। क्रांति से हमारा अभिप्राय यह है कि अन्याय पर आधारित मौजूदा समाज व्यवस्था में आमूल परिवर्तन। जब तक मनुष्य द्वारा मनुष्य का और राष्ट द्वारा राष्ट का शोषण दोहन समाप्त नहीं कर दिया जाता, तब तक मानवता को क्लेशों से छुटकारा दिलाने का प्रयास असम्भव है।
प्रायः क्रांति को हिंसा समझ लिया जाता है। जबकि असली फर्क मकसद का होता है। एक आतंकवादी और क्रांतिकारी में क्या फर्क होता है। भगत सिंह ने असेंबली बम कांड के दौरान हाइकोर्ट में दिये गये बयान से समझाया था। उन्होंने कहा था कि यदि अपने उद्देश्य और लक्ष्य को भुला दिया जाए तो किसी भी व्यक्ति के साथ न्याय नहीं हो सकता है। क्योंकि उद्देश्य को नजरों में नहीं रखने पर संसार के बडे-बडे सेनापति साधारण हत्यारे ही नजर आयेंगे। सरकारी कर वसूल करने वाले अधिकारी चोर जालसाज बनकर दिखाई देंगे। अगर उद्देश्य की उपेक्षा की जाए, तो किसी हुकूमत को क्या अधिकार है कि समाज के व्यक्तियों से न्याय करने को क्या कहे? अगर अपने उद्देश्य की उपेक्षा की जाए तो तो हर धर्म प्रचारक झूठ का प्रचारक दिखाई देगा। और हरेक पैगंबर पर अभियोग लगेगा कि उसने करोड़ों भोले और अनजान लोगों को गुमराह किया। यदि कानून उद्देश्य नहीं देखता, तो मुकम्मल न्याय नहीं हो सकता है और न ही स्थाई शांति स्थापित हो सकती है।
क्रांति और अहिंसा के बीच भगत सिंह का खूब हुई थी बहस।
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भगत सिंह ने हथियारों के इस्तेमाल की चर्चा उन्होंने स्पेशल ट्रिब्यूनल को लिखे पत्र में भी की थी। क्रांतिकारी अगर बम और पिस्तौल का सहारा लेता है तो यह उसकी चरम आवश्यकता में से पैदा होती है और आखिरी दाव के तौर पर होता है। क्रांति और अहिंसा के बीच की बहस गांधी-भगत सिंह के दौर में खूब हुई थी।
एक बार गांधी जी ने क्रांतिकरियो की तीखी आलोचना करते हुए यांग इंडिया में “द कल्ट ऑफ द बम ” लेख लिखा था। भगवतीचरण वोहरा व भगत सिंह के जबाव में बम का दर्शन (फिलॉसकीं ऑफ द बम) नामक लम्बा निबंध लिखकर इसका स्टीक जबाव दिया था। इस निबंध को 26 जनवरी 1930 को पूरे देश में बँटवा या गया था। इस लेख में भी क्रांति करियो ने जनता के सामने क्रांति और गांधीवाद को रखा था। इसमें दर्ज है कि क्रांति का अर्थ केवल य़ह नहीं है कि विदेशी शासकों और उनके पिट्ठुओं से क्रांतिकरियो के केवल श सस्त्र संघर्ष हो, बल्कि इस सशस्त्र संघर्ष के साथ-साथ नवीन सामाजिक व्यवस्था के द्वार देश के लिए मुक्त हो जाए।
भगत सिंह का कहना था कि हम समाजवादी क्रान्ति चाहते हैं।

क्रांति के लक्ष्यों के बारे में भगत सिंह के क्रांतिकारी कार्यक्रम के बारे में लिखते हैं कि हम समाजवादी क्रान्ति चाहते हैं। इसके लिए बुनियादी जरूरत राजनीतिक क्रांति की है। राजनीतिक क्रांति का अर्थ राजसत्ता का राजसत्ता का अंग्रेजी हाथों से भारतीय हाथों में आना है। इसके बाद पूरी संजीदगी से पूरे समाज को समाजवादी दिशा में ले जाने के लिए जुट जाना होगा। यदि क्रान्ति से आपका यह अर्थ नहीं है तो महाशय मेहरबानी करें और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाने बंद कर दें।
भगत सिंह का उद्देश्य था कि सामंतवाद की जड़ें से समाप्ति, किसानों के कर्ज समाप्ति करना, क्रान्तिकारी राज्य की ओर से भूमि का राष्ट्रीयकरण करना ताकि सुधरी हुई और साझी खेती करना, रहने के लिए सबों को आवास की गारंटी करना, किसानों के लिए सभी कर्ज को समाप्ति करना। सिर्फ इकहरा भूमिक र लिया जाएगा, कल कारखाने का राष्ट्रीयकरण करना और देश में कारखाने लगाना, आम लोगों के लिए शिक्षा अनिवार्य,  काम करने के घण्टे जरूरत के अनुसार करना। फांसी की सजा ढेरों सारे क्रांति करियो को हुई। लेकिन लाखों और अथाह संसाधन वाले गांधी जी के लोकप्रियता को जेल में बैठे भगत सिंह खुलेआम टक्कर दे रहे थे। अपने विचारों और लक्ष्य के स्पष्ठता के कारण और आज भी उनका क्रांति को लेकर दिया जाने वाला नारा एशिया का सर्वाधिक लोकप्रिय नारा है। इंकलाब जिंदाबाद।
डी के अकेला, प्रतिनिधि, खबर सुप्रभात, मगध प्रमंडल, गया।