तजा खबर

मगध में बुढवा होली भी  बुजुर्गों के सम्मान में धुम धाम से मनाई जाती है

नवादा से डी०के० अकेला का रिपोर्ट


खासकर पर्मपरा के अनुसार सर्वविदित ब्रज, गोकुल, मथुरा, बरसाने, अवध,मिथिला और मुम्बईया होली मनाई जाती है। इसी तरह मगध में बुढ़वा होली बहुत धूमधाम मनाई जाती है।
यह मुख्य होली के दूसरे दिन शानदार तरीके से मनाया जाता है। खासकर मगध प्रमंडल में गया,जहानाबाद, औरंगाबाद, नवादा, शेखपुरा,नालंदा और जमुई ईलाका में बुढवा होली का प्रचलन रहा है। विदित हो कि बुधवार होली के दिन

सरकारी तौर पर छुट्टी नहीं रहती है। इसके बावजूद भी मगध के ईलाके में अघोषित तौर पर छुट्टी जैसे ही स्थिति रहती है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थान प्रायः बंद ही रहता है। हरेक सङक मुहल्ला और गांव की गलियों में होली के दिन से भी व्यापक तौर पर मनाया जाता है।
वरीय नागरिक संघ के महासचिव महेन्द्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि यह होली बुजुर्गों के मान सम्मान की होली कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। आम तौर पर बुजुर्गों की अनदेखी होते आ रही है। लेकिन बुढवा होली एक मात्र अकेला पर्व है ,जो बुजुर्गों के नाम से चर्चित व उल्लेखनीय है।
इसमें समाज के सभी सम्पादक के लोग मिलजुल कर बहुत उत्साहित होकर मनाते हैं। बूढ़बा होली में महिलाएं ,बुजुर्ग युवा और बच्चे सभी तन मन धन से शामिल होकर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते आ रहे हैं।
मगध में बुढबा होली मनाने पीछे अनेक कहानिया रही है।इसमें से एक सर्वविदित कहानी है कि एक राजा होली के दिन बीमार पङ गये थे। वह राजा जनप्रिय था,लिहाजा आम जनता ने भी होली नहीं मनाई थी। पिछले दिन जब राजा को पता चला तो राजा ने दूसरे दिन होली खेले थे।
शिव पुराण में भी है बुढवा होली का जिक्र और प्रमाण ।


बुढबा होली की प्रासंगिकता शिव पुराण से भी मेल खाता है।बरिष्ट पत्रकार व साहित्यकार राम रत्न ।प्रसाद सिंह रत्नाकर अनुसार आदिकाल में होली के दिन भगवान विष्णु और महालक्ष्मी होली खेल रहे थे। तब नारद मुनि ने इसकी चर्चा भगवान शिव से की थी।
भगवान शिव ने अपने प्रमुख गण बीरभद्र को बताया था कि मंगल का दिन हो और अभिजीत नक्षत्र हो उस दिन यह होली खेलते हैं। बिषुणदेव पाण्डेय ने कहा कि पंचागो में भी बुढबा मंगल का जिक्र मिलता है।बदलते समय के साथ लोग मंगल दिन इन्तज़ार करने बजाय होली के अगले दिन होली धूमधङाके के साथ खेलने लगे।9
हरेक कस्बे , टोले और मुहल्लों होली गाते हैं आम लोग।
देखो तो,मगध मेें जो लोग जो पहले दिन होली नहीं खेल नही खेलते हैं ,उन्हें बुढबा होली के दिन सराबोर होने से कोई नहीं सकता। मुख्य होली के दिन आम तौर पर दोपहर के
पहले कादो और मिट्टी से खेलने की परम्परा।रहीं हैं । समय की आपाधापी
मे लोग शाम की शाम की कि होली से जो बच जाते हैं, उन्हें बुढवा होली बुढ़वा होली बचना मुश्किल हो जाता है। बुढ़वा होली के दिन होली होली गाने वाले की टोली जिसे झूमटा कहते है। अराध्य स्थलों पर निकलकर कस्बे, टीले और मुहल्ले में होली गाते हुए गुजरता है।