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पुरे बिहार भयंकर सुखाड़ की चपेट में : डॉ सुरेश पासवान

औरंगाबाद खबर सुप्रभात


बिहार सरकार के पूर्व मंत्री एवं राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश उपाध्यक्ष डा सुरेश पासवान ने कहा है कि एक तरफ आजादी का अमृत महोत्सव देश भर में खासकर मोदी सरकार के द्वारा बड़े जोर शोर से मनाया जा रहा है, दुसरी तरफ पुरे देश के किसान त्राहिमाम कर रहे हैं कहीं बाढ़ से तो कहीं सुखाड़ से। आजादी के पचहत्तर वर्षों में नहरें सुखी पड़ी हुई है, नदियां खुद प्यासी है और सरकार ढिंढोरा पीट रही है कि हम तो विश्व गुरु बनने के क़रीब पहुंच गए हैं।
मैं खासकर बिहार की दशा दिशा पर और विशेषकर खेती किसानी पर ही निर्भर किसानो मजदूरों की वर्तमान हालात पर सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। बिहार सरकार के घोर उदासीन रवैया के चलते समझौता के अनुसार रिहंद डैम और बाण सागर परियोजना से बिहार को पानी नहीं मिलने से साहाबाद और मगध प्रमंडल को सिंचित करने वाली सोन नदी में पानी की जगह केवल बालू ही बालू नजर आ रहा है। पुनर्वसु नक्षत्र समाप्त हो गया औरंगाबाद जिला में धान की रोपाई मात्र 1% जो सरकारी आंकड़ा है वैसे पुरे बिहार की स्थिति भी कमोबेश यही है, उसमें भी दरार पड़ा हुआ है। बिजली कटौती जारी है, पंपिंग सेट भी बेकार साबित हो रहा है चूंकि भारी बिजली की किल्लत और पानी का लेयर नीचे चला जाना। डबल इंजन वाली सरकार कुंभकर्णी नींद में सो रही है, खेती किसानी की चिंता से दूर अमृत महोत्सव के आयोजन में व्यस्त हैं जैसे अमृत पीने में पीछे न रह जाए ।
कृषि रोड मैप इनका ध्वस्त हो चुका है, आज भी हम आसमान पर ही निर्भर है की कब बदरा बरसेगा,75 साल में हमने खेती किसानी के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं खड़ा कर पाए जो हमारे देश के लिए विडंबना है।
डॉ पासवान ने कहा है कि चाहे हम कितना भी उच्ची उच्ची आवाज में बड़ी बड़ी घोषणाएं कर दे लेकिन धरातल पर हम कहां खड़े हैं आज सबके सामने है। प्रकृति का जब डंडा चलता है तो ढपोरसंखी सरोकारों की पोल पट्टी खुल जाती है,बिचलीत करने वाला नतीजा सबके सामने है।आज जितना छेड़छाड़ पर्यावरण एवं प्रकृति से किया जा रहा इस तरह का परिणाम तो आना ही था जिसके जद में पुरा देश है एक तरफ अति वृष्टि तो दूसरी तरफ अनावृष्टि का तांडव जारी है। इसलिए इन हालातों से खासकर सरकारों को सबक लेकर दृघकालिक योजना बनाने पर जोर देना चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह के महा संकट के समय कुछ भी तो मुकाबला किया जा सके। नहीं तो आने वाले समय में खेती के लिए नहीं पीने के पानी के लिए महायुद्ध छिड़ सकता है।

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