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प्रशासनिक विफलता एवं तत्कालीन कांग्रेसी सरकार की नपुंसकता का परिणाम था बिहार का पहला नरसंहार दलेलचक – बघौरा का नरसंहार

मदनपुर (औरंगाबाद) सुनील सिंह का रिपोर्ट

मोदी सरकार में बहुत हद तक नक्सलियों पर कसा नकेल ।या तो कुछ पुलिस मुठभेंड़ में मारे गये या कुछ पकड़ मे आकर भेजे गये जेल ।कुछ नें तो पुलिस के सामनें किया सरेन्डर ।कुछ जो बचे हैं वो पुलिस के भय से जंगलों मेंं छुपकर भागते फिर रहे हैं।हलांकी सरकार नें इनके सरेन्डर के उपरांत पूनर्वास की लाई है आकर्षक योजना। 29 मई 1987 को घटित दलेलचक –बघौरा सामुहिक नरसंहार के एक पखवारा पूर्व मदनपुर के तत् कालिन

बी.डी.ओ.शिवबचन सिंह नें पत्र लिखकर जिले के आलाधिकारियों से लेकर सरकार को कोई अनहोनी घटना घटनें की संभावना से किया था अगाह ।पत्र का सार था उतर कोयल नहर के दक्षिण के गांवो में नक्सलियों का हो रहा है जमाबडा़ ।नहर के आसपास के राजपुत छोड़ दुसरी जातियाँ करनें लगी थी घरों में ताला बंद कर पलायन। आज दलेलचक में तो कुछ लोग अपनें -अपनें घरों में रहते दिखते हैं।लेकिन बघौरा बना है बेचिरागी ।दिखती है गया सिंह के मारे गये परिवारों का नाम लिखा शिलापट्ट एवं मौत का साक्षी कुआँ सहीत दो -चार पेंड़।