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आजादी के अमृत महोत्सव और 75 वीं बर्ष गांठ के बावजूद दलितों पर अत्याचार से गंभीर चिंता और राष्ट्रीय बहस जरुरी।

आलोक कुमार , मुख्य संपादक सह निदेशक , खबर सुप्रभात

15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिल्ली में लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे। प्रधानमंत्री का संबोधन कोई खास लोग नहीं बल्कि पुरे देश सुन रहा था। संबोधन के क्रम में देश के लगभग ढेर सारी मुद्दों पर चर्चा किया गया जिसमें परिवार वाद पर भी महत्वपूर्ण रुप से फोकस था। लेकिन जाती वादी मानसिकता जो आज देश को सभी क्षेत्रों में कमजोर कर रहा है इसके लिए प्रधानमंत्री न तो विशेष बल दिये और नहीं राष्ट्रीय बहस अथवा अन्य उपायों पर ज्यादा फोकस किये।

जबकि यदि बिते तीन महीनों में गौर करें तो दलितों पर जिस तरह से देश के भिन्न भिन्न प्रदेशों में जुल्म और अत्याचार के घटनाएं प्रकाश में आया है उससे रोंगटे हर इंसान को झकझोर कर रख देगा । लेकिन आज तक केवल शासक वर्ग चाहे जो भी हो केवल भाषण और वोट बैंक के लिए दलितों को आधार और औजार बनाते रहे हैं इससे ज्यादा कुछ नहीं। बता दें कि हाल ही में राजस्थान के जालेर में एक दलित छात्र को शिक्षक द्वारा इस लिए बेरहमी से पिटाई किया गया कि वह दलित था और मटकी में रखे पानी को प्यास लगने पर पी लिया। इसके लिए विद्यालय के शिक्षक द्वारा बेरहमी से पिटाई कर दिया गया जिसे इलाज के क्रम में उसे मौत हो गई। इसी तरह 26 जुलाई को मध्यप्रदेश के साजा पुर में 12 वीं के एक दलित छात्रा को स्कूल जाने से रोका गया, राजस्थान में 28 मई को बुंदरी शहर में एक दलित मजदूर राधेश्याम एकबाल को बंधक बना कर 31 घंटे तक पीटा गया , 24 मई को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में चोरी के आरोप लगाकर एक दलित बच्चा को पिटाई किया गया, 26म ई को पंजाब के संगरुर में एक सरपंच के द्वारा दलित के पिटाई किया गया , उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक कार से दलित को रोका गया और कहा गया कि दलित कार से शान के साथ शादी करने कैसे जा सकता है , उतरा खंड में एक स्कूल में दो दो बार छात्रों द्वारा खाना का बहिष्कार इसलिए कर दिया गया कि खाना बनाने वाला दलित था। लेकिन इस के लिए प्रधानमंत्री को विशेष चिंता नहीं है लेकिन परिवार वाद के लिए चिंता है।

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