तजा खबर

इतिहास बनकर रह गई कजरी के गीत , पश्चिमी सभ्यता का विकास तोड दिया हमारे समाजिक ताना बाना संस्कृति को।

सुनिल सिंह का रिपोर्ट

आरे -आरे ओ कारी बदरीआ…….साबन मास के चढ़ते ही गाँव की बालाऐं सामुहिक रूप से आम के बगीचे में झुला लगाकर झुला झुलनें लगती थी ।लम्बा -लम्बा पेंग मारकर आसमान को मानों छु लेना चाहती हो ।सहेलगयाँ जोर -जोर से बारी -बारी झला झुलाती थी एवं झुलती थी ।शेष सखिंयाँ पारंषरिक लोकधुन पर कजरी की गीत गाया करती थी ।मानों इंद्र देव को ग्रसन्नकर बर्षा बरसनें को मजबुर कर रही हो ।वैसी सखी जिनकी हाल में ही शादी हुई हो ,वो झुला झुलतेहुए कारी बदरिया से अपनें आँगन में बरसनें का निहोरा भी गीत गाकर करतीहै–आओ -आओ रे कारी बदरिया ,परदेश गये हैं सांवरिया ।आज बरसो रे मोरी नगरिया ।अब यह बीते दिनों की याद बनकर रह गयी है ।अब न साबन मास में झुले ही दिखाई देते हैं ,न सुनाई पड़ती है कजरी के वो गीत ही ।

गांवों में बुजुर्ग बताते हैं कि कजरी के गीत भारतीय संस्कृती का झलक आज भी जब याद आती है तो लगता है हमारा देश का समाजिक ताना बाना दुनिया में सर्वश्रेष्ठ था। लेकिन आज देश में बढ़ रहे तेजी से पश्चिम सभ्यता का विकास हमारे देश का हजारों साल पुरानी समाजिक ताना बाना एवं संस्कृति को ध्वस्त कर दिया है।

2 thoughts on “इतिहास बनकर रह गई कजरी के गीत , पश्चिमी सभ्यता का विकास तोड दिया हमारे समाजिक ताना बाना संस्कृति को।”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *