गाजियाबाद से निर्मल शर्मा का आलेख
*_( अत्यंत खेदजनक और अफसोस की बात है कि इस सत्यपरक,शोधपरक और मानवीय विचारधारा के लिए प्रतिबद्ध इस लेख को भारत का कोई भी समाचार पत्र प्रकाशित नहीं किया! )_*
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_सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1818 में तेलुगू भाषी नियोगी ब्राह्मण परिवार में हुआ,सर्वपल्ली की उपाधि उन्हें उनके पूर्वजों से मिली। उनके पूर्वज आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले से 15 मील दूर सर्वपल्ली गांव में रहते थे।_ *_सर्वपल्ली राधाकृष्णन को दर्शन के क्षेत्र में प्रसिद्धि 1923 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘भारतीय दर्शन ’ से मिली। इसी किताब पर उन पर साहित्यिक चोरी का इल्जाम भी लगा ! उस वक्त राधाकृष्णन कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे। शोध-छात्र जदुनाथ सिन्हा ने उनके ऊपर साहित्यिक चोरी का आरोप लगाया !_* _मामला यह था कि जदुनाथ सिन्हा ने पीएचडी डिग्री के लिए ‘भारतीय दर्शन ’ नामक अपने शोध को 1921 में तीन परीक्षकों क्रमशः डाॅक्टर राधाकृष्णन, डॉक्टर ब्रजेंद्रनाथ सील व डाॅक्टर बी. एन. सील के समक्ष प्रस्तुत किया। उसके बाद वे अपनी पीएचडी डिग्री की प्रतीक्षा करने लगे। जदुनाथ सिन्हा ने बारी-बारी से तीनों परीक्षकों से संपर्क कर डिग्री रिवार्ड किए जाने पर विलंब होने की वजह जाननी चाही।_
*_कथित शिक्षक ने पहले अपने नाम पुस्तक प्रकाशित कराई उसके बाद शिष्य को पीएचडी प्रदान किया !_*
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_डॉक्टर ब्रजेंद्रनाथ सील व डाॅक्टर बी. एन. सील ने कहा कि धैर्य रखो डाक्टर राधाकृष्णन उसके परीक्षण में व्यस्त हैं। तुम्हारा शोध वृहद् है। दो भागों में लगभग 2000 पृष्ठों का होने की वजह से समय लग रहा है।_ *_इसी बीच डॉक्टर राधाकृष्णन ने आनन-फानन में लंदन से इस पीएचडी शोध पत्र को पुस्तक के रूप में अपने नाम से प्रकाशित करा लिया और पुस्तक छपते ही जदुनाथ सिन्हा को पीएचडी की डिग्री भी उपलब्ध करा दी !_* _पुस्तक जैसे ही बाजार में आई, जदुनाथ सिन्हा को सांप सूंघ गया और वह अपने को ठगा महसूस करने लगे। राधाकृष्णन की किताब उनकी पीएचडी की हूबहू कॉपी थी।_
*_हारने के डर से राधाकृष्णन जी ने कोर्ट से बाहर समझौता किया !_*
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_आर्थिक रूप से गरीब लेकिन सिद्धांत के पक्के शिष्य जदुनाथ सिन्हा भी हार मानने वालों में नहीं थे। वे न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाकर डाक्टर राधाकृष्णन पर 20000 रूपए का दावा ठोक दिया। इसके बदले में राधाकृष्णन ने भी जदुनाथ पर एक लाख रूपये का मानहानि का दावा कर दिया। डाॅक्टर ब्रजेन्द्रनाथ सील राधाकृष्णन की ताकत और प्रभाव से परिचित थे। वे उनके खिलाफ खड़े होने का साहस नहीं जुटा पाए।_ *_परंतु जैसे ही जदुनाथ सिन्हा ने डाॅक्टर बी. एन. सील के यहां 1921 में प्रस्तुत की गई अपने शोध की प्राप्ति रसीद न्यायालय में प्रस्तुत किया, सच्चाई सामने आ जायेगी यह सोच कर डाक्टर राधाकृष्णन घबड़ा गए। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दोनों लोगों के बीच मध्यस्थता किया और न्यायालय से बाहर समझौता कराया। अंत में हारकर डाक्टर राधाकृष्णन ने जदुनाथ सिन्हा को 10000 रूपए देकर समझौता किया ।_*
*_राधाकृष्णन जी अंग्रेजी और संस्कृत दोनों भाषाओं में बहुत कमजोर !_*
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_डॉक्टर राधाकृष्णन ने 1921 में जब मैसूर से आकर कलकत्ता विश्वविद्यालय में कार्यभार संभाला तभी से उनके ज्ञान व प्रतिभा पर उंगलियां उठने लगीं थीं ! उनकी प्रतिगामी सोच छात्रों को पसंद नहीं आती थी।_ *_अंग्रेजी और बांग्ला भाषाओं पर इनकी ढीली पकड़ के चलते उन्हें कक्षा में अपने छात्र –छात्राओं के बीच खूब शर्मिंदा भी होना पड़ता था ! जिस व्यक्ति की सबसे प्रसिद्ध किताब पर ही साहित्यिक चोरी का आरोप लगा हो और वह आरोप न्यायालय में साबित भी हो गया हो,उस व्यक्ति के नाम पर शिक्षक दिवस मनाने का औचित्य क्या है ?_* _जहां तक उनकी दार्शनिकता का प्रश्न है, बाबासाहेब डॉक्टर आंबेडकर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘जाति के विनाश ‘ में डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के दार्शनिक तर्कों के औचित्य पर ही गंभीर प्रश्न उठा दिया है !_
*_ऐसे अपराधिक छवि के राधाकृष्णन के नाम पर शिक्षक दिवस मनाने पर पुनर्विचार होनी ही चाहिए_*
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_अब हर वर्ष ऐसे डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम,जो अपने ही एक छात्र के शोधपत्र को चोरी -छिपे अपने नाम से पुस्तक प्रकाशित करा देनेवाले निकृष्ट सोच के व्यक्ति के नाम पर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। उन्हें महान शिक्षाविद् और दार्शनिक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।_ *_‘भारतीय दर्शन ’ नामक,जिस किताब पर उनकी महानता टिकी है, उसे ही साहित्यिक चोरी माना जाता है ! तो अपने ही छात्र की थीसिस चुराने के आरोपी सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम पर शिक्षक दिवस मनाने का औचित्य क्या है ?_*
_इसलिए डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस पर कथित शिक्षक दिवस मनाने पर ईमानदारी से एकबार पुनर्विचार और समीक्षा जरूर होना चाहिए !_