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मालो – माल हो गए नेता जी, जांच एजेंसियों का आखिर चुप्पी का मतलब? जांच एजेंसियां आखिर चुप क्यों? क्या अधिकारियों का भी है मिली भगत?

अम्बा खबर सुप्रभात समाचार सेवा

कुटुम्बा प्रखंड में एक छुटभैय्ए नेता जी का स्थानीय थाना और ब्लाक स्तर से नेतागिरी राजद के शासन काल 1990 से प्रारंभ हुआ। देखते ही देखते आज वे मालो – माल हो गए। सफेद कुर्ता – पैजामा और टोपी देखने में तो बड़े राजनेता और समाज सेवी लगते हैं। हैरत तो यह है कि 1990 के पहले (जब नेता गीरी) नहीं करते थे तो उनके पास संपत्ति न के बराबर था। उनके पूर्वज गांव घर में मजदूरी करते और

किसी तरह अपना जीवन यापन करते तथा घर परिवार संभालते रहे। लेकिन जब कांग्रेस विरोधी लहर पुरे देश में हावी हुआ तो बिहार में भी राष्ट्रीय जनता दल के सरकार बना। बिहार के एक मंत्री जी और तत्कालीन कुटुम्बा के एक अधिकारियों का सेवादार के रूप में वफादारी करते करते नेता जी आज मालो -माल हो गए। नेता जी को विरासत में एक झोपड़ी नुमा घर मिला था और इसके अलावा शायद कुछ भी नहीं था। लेकिन आज तो कहना नहीं, नेता जी के पास सब कुछ हो गया। शहर से लेकर गांव तक भव्य मकान, घूमने के लिए कार और न जाने क्या क्या? इसकी जानकारी तो ईडी और निगरानी टीम ही पता लगा सकता है। नेता जी आज तो पंचायत के चुनाव भी जीत गए इस उम्मीद के साथ की शायद अब कुछ गरीबों के लिए सोचेंगे और गरीबों को भी विकास कराएंगे। लेकिन नेता जी तो अभी तक अपना ही विकास में लगे हुए हैं। उनके पास अपना विकास करने से ज्यादा समय कहा कि उन गरीबों के लिए सोचें कि आखिर पैसा लेकर ही सही लेकिन मेरे लिए जो सोचा और अपना बहुमूल्य वोट बेचकर भी वोट दिया उसका जिवन स्तर भी सुधारने का प्रयास कर सकें। अपना विकास में नेता जी इतना मशगूल हैं कि जो लोग उनपर आसिम कृपा कर वोट बगैर पैसा लिए दिया और जो पैसा लेकर दिया उसे भी पता नहीं की गांव गरीब का विकास के लिए जो पैसा सरकार बोरा से भेज रही है आखिर उस पैसा से क्या हो रहा है और कहां और किसका विकास हो रहा है? गांव के शोषित, बंचीत व असहाय लोगों से यदि पुछे तो बतलाते हैं कि गांव और गरीब का विकास के लिए ग्राम सभा का आयोजन कर सभी के राय से योजना का चयन किया जाता है लेकिन यहां तो नेता जी के कृपा से पता भी नहीं चल पाता है कि आखिर ग्राम सभा होता है या नहीं और यदि होता है तो कब और कहां। आबादी के कितना प्रतिशत लोग आम सभा में उपस्थित रहते हैं। गरीबों को तो पुछने का हिम्मत इसलिए नहीं कि वह अपने को कमजोर समझता है और डरता है। लेकिन जो लोग सक्षम है वे इस लिए नहीं पुछते की नेता जी कहीं हरिजन एक्ट में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष ढंग से फसा न दें। चुके नेता जी का कुछ कहानी और कारगुज़ारी भी इसी तरह का रहा है। अब सवाल यह है कि आखिर निगरानी और ईडी भी चुप्पी साधे हुए हैं आखिर क्यों?

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