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समाज का उत्थान उनके हितों से संभव है न कि बड़बोली से

अनिल कुमार मिश्र, प्रभारी दैनिक समाज जागरण, मगध प्रमंडल, गया, बिहार के कलम से

कविता के माध्यम से.अपनी बातों को पंड़ित समाज के बीच रखने के लिए बहुत -.बहुत धन्यवाद
कविता को पहुँचाने से सफलता हासिल होना, संभव नहीं हैं,
हमें पंड़ित के भेस मे मदारियों व भुखे भेड़ियों का पहचान कर पंड़ितों की पंक्ति से बाहर का रास्ता दिखाना पड़ेगा और वैसे लोगों को नसीहत नहीं, सजा देना होगा, तभी उद्देश्य विहिन पंड़ितों के मर चुके जमीर में जागृति संभव है, जैसे:- आम की टोकरी में सड़े हुए आम को टोकरी से बाहर निकालकर ही आम को सड़ने से बचाया जा सकता है, वैसे ही किसी समाज को चलाने के लिए उद्देश्य विहिन समाज के लोगों को समाज से बाहर के रास्ता दिखाकर ही समाज के

स्वच्छ और जल की तरह निर्मल व कंजल बनाया जा सकता है।
अगर मेरे शब्दों से किसी को कष्ट पहुंचा हूं तो क्षमा करेंगे, लेकिन समाज के नाम पर बड़बोले पन से किसी भी समाज का उत्थान नहीं हो सकता है जिसमें थोड़ा भी समाज के लिए दर्द व पीड़ा न हो और और जिनके जमीर मर चुके हैं वैसे लोगों से समाज को कभी भी भला नहीं हो सकता हैं।

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