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_डॉक्टर राममनोहर लोहियाः अत्यंत सादगी के प्रतीक बनाम आज के वर्तमान कर्णधार निर्लज्ज विलासिता के प्रतीक !

गाजियाबाद से निर्मल शर्मा का आलेख

जमाना बड़े शौक से सुन रहा था,_*
      *_तुम्हीं सो गए दास्तां कहते-कहते ‘_*
 
                      

             *_स्वर्गीय डॉक्टर राम मनोहर लोहिया जी के बारे में किसी कवि की अन्तरतम् से निकली उक्त यह कविता उनके बारे में बहुत कुछ बयां कर देती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीनकाल में भारत में एक-दो महापुरुष ही हुए हैं,जिनको सर्वगुणसम्पन्न कहा जाता है,एक भगवान कृष्ण तो दूसरे भगवान गौतम बुद्ध,लेकिन आधुनिक काल में अगर ऐसे दो महामानवों का नाम लेने की अनिवार्यता हो,तो निसंदेह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और स्वर्गीय डॉक्टर राम मनोहर लोहिया का ही नाम लिया जा सकता है।_*
            *_आज के आधुनिक नेताओं के राजनीति को ऐश्वर्य,धन,पद और विलासिता के पर्याय मानने के अवगुणों के ठीक विपरीत,विलक्षण प्रतिभा के धनी,युग प्रवर्तक, बाल सत्याग्रही, सादा जीवन, आजीवन संघर्षशील,विद्रोही,धन, सम्पत्ति,ऐश्वर्य, विलासिता से कोसों दूर,भारतीय राजनीति के अद्भुत व्यक्तित्व,सृजनशील,निष्काम कर्मयोगी, नौजवान पीढ़ी के प्रेरणास्रोत,देश के हर नागरिक के समानता के पक्षधर,भारत में जातिविहीन समाज के निर्माण के प्रबल समर्थक,अंतर्जातीय व अंतर्धामिक शादियों के प्रबल पक्षधर,निजी जीवन में सादगीपूर्ण जीवन के जीवंत उदाहरण,हर तरह के अन्याय के खिलाफ,हर तरह की गुलामी तथा गैरबराबरी के जबर्दस्त खिलाफ,विश्वकूटनीति में राष्ट्रीय हितों के संरक्षण और विश्वशांति के लिए परमाणु हथियारों से शुरूकर अंततः हथियार विहीन विश्व की परिकल्पना के जनक,अमेरिका मेंं रंगभेद के खिलाफ लड़ते हुए गिरफ्तार होनेवाले प्रथम भारतीय,जेल में निरपराध लोगों के पक्ष में प्रदर्शन करते हुए पुलिस की लाठियों से बुरी तरह घायल होकर,पहली बार मानवाधिकार की लड़ाई लड़नेवाला पहला अप्रतिम मानवाधिकार कार्यकर्ता, ब्रिटिशसाम्राज्यवादियों की तरह तत्कालीन कांग्रेसी सरकार द्वारा यातनाभरे जेलों में निरपराध कैदियों के ठूंसने के प्रबल विरोधी, भारतीय शिक्षा में अँग्रेजी के वर्चस्व को खत्मकर क्षेत्रीय भाषाओं व हिन्दी के प्रयोग को अधिकतम बढ़ावा देने के सशक्त पैरोकार,नेपाल के राजशाही को खत्म करने के लिए नेपाली दूतावास के सामने प्रदर्शन के दौरान बुरी तरह घायल होकर,अपनी गिरफ्तारी देनेवाले पहले राजनैतिक जननेता, 1942 में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो ‘आंदोलन में भूमिगत रेडियो संचालन के कथित जुर्म में अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लाहौर के उसी बैरक में बंद,जिसमें कभी शहीद-ए-आजम स्वर्गीय भगत सिंह बंद थे,जहाँ अंग्रेजों द्वारा नियुक्त जेलर द्वारा क्रूरतम् अत्याचार उदाहरणार्थ अत्यंत छोटे बैरक में रहना,खाना, नित्यकर्म करना,सब कुछ करने की बाध्यता,जेलर के सामने खड़ा करके घंटों अपनी आँखों के पलक को न झपकाने की सजा,पलक झपकाते ही लाठियों से खूब पिटाई,जेल में रात में सोने न देने के लिए आँखों के ऊपर 500वाट के बल्ब को लगातार जलाए रखना,इनके हाथों-पैरों के नाखूूनों में बांस केे नुुुकीले कील बनाकर उन्हें ठोक देना,इतने कठोर और असह्य पीड़ा को झेलने के बाद भी भारत माँ का यह सच्चा सपूत भारत माँ की अस्मिता व मर्यादा से कभी समझौता नहीं किया !_*
             *_उनके पास कोई बैंक बैलेंस नहीं,कोई घर नहीं,कोई जमीन-जायदाद नहीं,सामान के नाम पर जिनके पास मात्र तीन धोतियाँ, तीन कुर्ते,छः रूमालें,दो जैकेट्स,दो तौलिए,चार टोपियों,एक बिस्तर और एक अदद सूटकेस के अलावे कुछ भी नहीं,उनके अनुसार ‘भारत की आदर्श नारी सीता नहीं,अपितु द्रौपदी है,वायदाखिलाफी व बलात्कार को छोड़,मर्द और औरत का हर रिश्ता जायज,भारत में सर्वव्याप्त यौनकुंठाओं को समाप्त कर नया सुन्दर,प्रेमयुक्त समाज को बनाना। ‘ ऐसे सादगीभरे जीवनशैली के आधुनिक राजनैतिक संत और युगप्रवर्तक,युगपुरुष का नाम था डॉक्टर राम मनोहर लोहिया।_*
             *_डॉक्टर लोहिया, डॉक्टर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के साथ मिलकर, चुनाव लड़कर,संसदीय और लोकतांत्रिक मूल्यों को सम्मान करते हुए भारत के दलितों,महिलाओं व कमजोर वर्गों के लिए उनकी शिक्षा,आर्थिकी व सामाजिक स्थिति में सुधार करना चाहते थे,परन्तु 1956 में डॉक्टर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की ऑकस्मिक मौत से वे अपने जीवन के इस पुनीत उद्देश्य में सफल नहीं हो सके,वे जातिवाद, आर्थिक विषमता व मानव द्वारा मानव के शोषण के घोर विरोधी थे ।_*
             *_इसके लिए वे इस देश से आर्थिक विषमता समाप्त करने के लिए चाहते थे कि यहाँ ऐसी नीतियां बनें,जिसमें लोगों की आमदनी का अनुपात का अन्तर किसी भी तरह 1और 10 से अधिक न हो,उनके अनुसार इससे अधिक अन्तर समाज में शोषण व आर्थिक विषमता को जन्म देती है,वे भारत के सभी लोगों के लिए निःशुल्क शिक्षा और चिकित्सा के प्रबल पक्षधर थे। डॉक्टर लोहिया राजकाज की भाषा को हिन्दी में करने के जबर्दस्त समर्थक थे,उनके अनुसार अंग्रेजी भाषा की वर्चस्ववादी रवैये के कारण ही भारत की दबी-कुचली जनता,गरीबों किसानों, मजदूरों आदि आम जनता का भयंकर और अनन्त शोषण होता है,क्योंकि यहाँ अंग्रेजी जानने वाले,आम भारतीयों को दोयम दर्जे के और जाहिल,गंवार समझकर,उनके साथ गुलामों जैसे व्यवहार करते हैं।_*
                  *_भारतीय संसद में जवाहरलाल नेहरू के सामने और उनको संबोधित करते हुए,भारत में व्याप्त आर्थिक असमानता पर बोलते हुए उन्होंने बहुत ही दृढ़ता और स्पष्टता से कहा था कि ‘भारत में अन्न का उत्पादन कर सबका पेट भरने वाले किसानों और खेतों और फैक्ट्रियों में काम करनेवाले मजदूरों की प्रतिदिन की कमाई मात्र साढ़े तीन आनें है,जिसमें वे किसी तरह अपने परिवार का गुजारा करते हैं,जबकि आपके कुत्ते पर प्रतिदिन 25 रूपये खर्च हो जाता है ! भारतीय राजनैतिक आकाश का यह दैदिप्यमान सितारा 23 मार्च 1910 को फैजाबाद के अकबरपुर में एक शिक्षक के यहाँ पैदा हुआ था। 12 अक्टूबर 1967 को मात्र 57 वर्ष में ही एक मामूली ऑपरेशन के दौरान यह सितारा डूब गया !_*
              *_भारत के करोड़ों लोगों,गरीबों,मजदूरों, किसानों और आमजन का यह हितैषी सितारा अल्पायु में ही असमय काल के गाल में समा गया,अस्त हो गया। यह राजनैतिक सितारा अपने भाषणों में अक्सर कहा करता था कि ‘लोग मेरी बातों को मानेंगे,लेकिन मेरे मरने के बाद। ‘ डॉक्टर लोहिया के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके द्वारा निर्धारित जनोन्मुखी,गरीबोन्मुखी व एक आम आदमी के हित को ध्यान में रखकर नीतियां बनें,ताकि भारतीय समाज के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति के जीवन में भी कुछ मुस्कराहटें और खुशियों तथा सुख का अहसास हो,परन्तु अत्यंत दुःख और अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि वर्तमान मोदी सरकार के समय में इस प्रकार की नीतियों का बनना व उनका क्रियान्वयन करना यह एक दिवास्वप्न ही है।_*

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