खबर सुप्रभात सामाचार सेवा
किसान संघर्ष समिति आज 6 अगस्त को भू-अर्जन पदाधिकारी औरंगाबाद , अमित कुमार से उनके द्वारा ‘वाराणसी-कोलकाता ग्रीनफिल्ड एक्सप्रेसवे’ में किए गए प्रशासनिक हिटलरशाही और जमीन के भू-प्रकृति में भारी गङबङी को लेकर उनकी इस्तीफा की मांग करती है। किसान संघर्ष समिति यह मांग करती है कि वो इस्तीफा देकर अपने गाँव जाकर अपना खेती-बाङी संभालें ताकि उन्हें भूमि का वास्तविक मुआवजा और किसानों की पीङा समझ आ सके।
किसान संघर्ष समिति पिछले कई महीनों से आवासीय भूमि, सर्विस रोड और एमवीआर अपडेट(अधतन) करने को लेकर भू-अर्जन विभाग औरंगाबाद के सामने प्रार्थना और याचना करती रही है लेकिन तमाम प्रार्थनाओं और निवेदन को प्रशासनिक प्रतिनिधि भू-अर्जन पदाधिकारी अमित कुमार ने न सिर्फ अनसुना किया है बल्कि उन्होंने भ्रष्ट नीतियों के तहत एनएचएआई और टेंडर कंपनी के साथ सांठ-गांठ कर किसानों की भूमि को अधिग्रहण करने की प्रक्रिया तेज कर दी है। भू-अर्जन पदाधिकारी अमित कुमार ने किसानों के द्वारा भू-प्रकृति सुधार पर न सिर्फ हिटलरशाही का रास्ता अख्तियार किया है बल्कि उन्हें प्रखंड कुटुम्बा के महसू और बरवाडीह गाँव के 12 घर के दलितों की विस्थापित आबादी के पुनर्वास का भी अता-पता नहीं है। उन दलित परिवारों के पास घर के अलावे कोई भूमि भी बसने के लिए नहीं है।
¤ पूर्व डीएम सौरभ जोरवाल के साथ मिलकर किसानों को भू-अर्जन पदाधिकारी ने गुमराह किया।
किसान संघर्ष समिति का 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल जब पूर्व डीएम सौरभ जोरवाल के साथ मिलकर भू-प्रकृति और एमवीआर पर रास्ता निकालना चाहती थी उससमय भू-अर्जन पदाधिकारी ने पूर्व डीएम के साथ मिलकर एमवीआर/सर्कल रेट पर किसानों के साथ सरेआम छल-कपट का सहारा लेकर अपनी संवैधानिक पद की गरिमा को कलंकित करने का प्रयास किया है। उन्होंने बा7र-बार किसानों को गुमराह करते हुए विभिन्न सवालों पर न ही जवाब दिया है और न ही खुले तौर पर औरंगाबाद जिले के सभी मौंजों की मुआवजा दर को उन्होंने प्रकाशित करवाया है। जिसकी मांग संघर्ष समिति बार-बार करती आ रही है। प्रशासनिक हिटलरशाही के साथ वो हर समय किसानों के समक्ष प्रस्तुत आ रहे हैं और इसी दिशा में उन्होंने एक पहल और करते हुए बिना मुआवजा दर बताए सभी गाँवों के रैय्यतों का अवार्ड बनाना शुरू कर दिया है।
¤ किसान संघर्ष समिति की क्या है मांग?
किसान संघर्ष समिति, कुटुम्बा औरंगाबाद स्पष्ट तौर पर पिछले 8 वर्षों के दौरान हुए जमीन खरीद- ब्रिकी के स्थायी एमवीआर पर अपना विरोध जताते आई है। महंगाई बढ़ने के बावजूद प्रशासनिक उदासीनता और कर्त्तव्यहिनता के कारण पिछले 8 वर्षों से अधिग्रहित की जाने वाली मौंजो का एमवीआर जस-का तस बना हुआ है जिसके कारण मुआवजा की राशि न्यूनतम दर पर पहुंच चुकी है। यह सरेआम भू-राजस्व और भू-अर्जन विभाग के घोर लापरवाही का नतीजा है। प्रशासन ने जब प्रत्येक वर्ष एमवीआर अपडेट ही नहीं किया तो किस मुख से वो सही मुआवजे की बात कह रहे हैं!
दूसरी बात है सङक के किनारे की भूमि जिसकी प्रकृति आवासीय है उसे भी आम धनहर के तहत् वर्गीकृत करते हुए अधिग्रहण करने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। यह घोर प्रशासनिक लापरवाही और तानाशाही है जिसका किसान संघर्ष समिति पुरजोर विरोध करती आई है।
इसके अतिरिक्त किसान संघर्ष समिति ने एक्सप्रेसवे के दोनों किनारों के तरफ सर्विस रोड की मांग की थी जिसे देश के एक्सप्रेसवे में वरन् बंगलुरू-मैसूरू एक्सप्रेसवे में दिया भी गया है लेकिन इसपर भी एनएचएआई के पदाधिकारी और स्थानीय प्रशासन न सिर्फ मौन है बल्कि सैकङों आवेदन के बावजूद गुंगे और बहरे की तरह व्यवहार कर रही है। इस बहरेपन के कारण 20 फीट की ऊंचाई से गुजर रहे इस एक्सप्रेसवे से किसानों को कोई लाभ होता नहीं दिख रहा है।
¤ भू-अर्जन पदाधिकारी का व्यवहार स्पष्ट और पर अंग्रेजों जैसा
किसान संघर्ष समिति के सैकङो आवेदन पर उदासीन भू-अर्जन पदाधिकारी अमित कुमार अंग्रेजों के जैसा व्यवहार करते दिख रहे हैं। इनकी भी नीति डलहौजी की तरह हङप की नीति है। अंग्रेजों ने भी नील की खेती पर बिहार में मौन साधे रखा था ठीक उसी तरह भू-अर्जन विभाग भी हमारी मांगों पर मौन साधे रखा है। यह कैसी स्वतंत्रता और लोकतंत्र है! यह कैसी संवैधानिक आजादी है जब किसानों के गले को भारतमाला परियोजना में फुलों की माला की जगह फाँसी का फंदा पहनाकर खुदीराम बोस और तिलका मांझी के जैसा सरेआम क्रुरता करते हुए फाँसी पर लटकाया जा रहा है।