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मोरबी पुल हादसा,हादसा नहीं,यह एक सामूहिक हत्या है :डा०प्रेफेसर अलमदार

निर्मल शर्मा का रिपोर्ट

आज की तमाम पोस्ट गुजरात हादसे पर हैं, इसे मैं हादसा नहीं मानता अपितु यह सामूहिक हत्या है, नरसंहार की ही एक कड़ी, जो न पहली बार हुई है, न आख़िरी बार हो रही है ! ऐसे मामलों में बारम्बार अपराधियों को बचाया जाता है, क्योंकि वे ख़ास के “खास आदमी ” होते हैं ! सत्ता-साधना में काम आने वाले उपकृत लोग। इसीलिए उनकी गर्दन बच जाती है और उसमें काम करने वाले अधीनस्थ निम्नस्तरीय कर्मचारियों की गर्दन नापकर चौपट राजा मामले को “कुरु कुरु स्वाहा ” कर देता है ! उधर निम्नमध्यवर्गीय कर्मचारी हलाल होता है और दूसरी तरफ़ भी आस्था और अन्धविश्वास में पागल अशिक्षित निम्न तथा मध्यम वर्ग ही बलि चढ़ता है ! साल भर में लाखों लोग नदीस्नान, तीर्थयात्रा, सड़क दुर्घटनाओं, मंदिरों में भीड़ लगने, कुव्यवस्था, ज़हरीले खान-पान और प्रदूषण से मरते हैं या मारे जाते हैं !

             तुरन्त का बना हुआ पुल कभी उद्घाटन का इंतज़ार नहीं करता या कभी उद्घाटन के बाद टूट जाता है, लोगों की जान चली जाती है, किसी पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता यह तो एक ऐसी त्रासदी हैं, जिसकी भरपाई सदियाँ तक नहीं कर सकतीं। यूँ समझिए की अब तनिक भी संवेदना के लिए दिल में जगह नहीं बची है ! मानवता मर चुकी है और मनुष्य ने गिद्धों और चील-कौओं तक को भी बहुत पीछे छोड़ दिया है ! भ्रष्टाचार और अमानवीयता की भेंट चढ़ चुका है हमारा कथित महान भारत ! मातम पसरा है सैकड़ों घरों में, खून के आँसू बह रहे हैं जनता की आँखों से। निकाली गयी सैकड़ों लाशें, बह गये सैकड़ों-सैकड़ों लोग ! हाहाकार, चीख , विलाप और इन सबके बीच हम निर्विकार, अपने को दिखाने-चमकाने में अलमस्त कैसे रह सकते हैं ?
          कल्पना करिए कि यदि हमारे सरदार वल्लभ भाई पटेल होते तो क्या करते !

वैष्नव जन तो तेने कहिए, जे पीर पराई जाने रे।

      

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