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विपक्षी एकता पुरी तरह बिखर रहा है फिर भी एनडीए सरकार को आगामी लोकसभा चुनाव में हराना विपक्ष का दिवा स्वप्न नहीं तो और क्या ?

संपादक के कलम से

देश में विपक्षियों का एकता राष्ट्रपति का चुनाव में पुरी तरह से बिखर चुका और अब उपराष्ट्रपति का चुनाव भी 6 अगस्त को होगा। उपराष्ट्रपति का चुनाव में विपक्षियों का एकता झलकते दिखाई दे रहा है। तृणमूल सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 35 सांसदों का नेतृत्व कर रही है और उन्होंने साफ कह दिया है कि उप राष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनकड़ और नहीं विपक्षियों का उम्मीदवार अल्वा का समर्थन करेंगे इससे साफ जाहिर होता है कि उप राष्ट्रपति चुनाव में भी विपक्षी एकता का हवा निकल रहा है और इसके लिए विपक्ष खुद जिम्मेवार है।

ऐसा कुछ पहली बार नहीं की विपक्षियों का एकता ध्वस्त हुआ है बल्कि देखा जाए तो एक दो चुनावों को छोड़कर प्रायः सभी चुनावों के एन वक्त पर विपक्षी एकता बिखरते रहा है और इसका लाभ आसानी से एनडीए को मिलता रहा है। बिहार, उत्तर प्रदेश , झारखंड के विधानसभा चुनाव में भी अक्सर ऐसा ही देखने को मिलता रहा है और लोकसभा के आम चुनाव में भी देखने को मिला है। आपसी सहमति नहीं बनने और विपक्षी दलों को अपनी डफली अपनी राग अलापने के कारण जब विपक्ष चुनाव में हारता है तो हार का ठिकरा चुनाव आयोग, एवीएम मशीन तो सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय तथा आयकर विभाग पर फोड़ते हैं। हां मैं भी समझता हूं कि उक्त आयोग और एजेंसियों का दुरपयोग सत्तारूढ़ दल चाहे जो भी दल रहा हो करते रहा है लेकिन हार का सबसे मुख्य वजह विपक्षियों को आपस में बिखरने और अलग अलग रास्ते बनाने से होते रहा है और इसके बावजूद भी यदि विपक्ष एनडीए सरकार को आगामी लोकसभा चुनाव में हराने का बात कर रही है तो मुंगेरी लाल का हसीन सपना नहीं तो और क्या हो सकता है?

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