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कम्युनिस्ट वर्तमान के आंदोलन में भविष्य के आंदोलन का प्रतिनिधित्व करते हैं : नंदकिशोर सिंह

पटना खबर सुप्रभात समाचार सेवा


फासिस्ट ताकतों की पराजय की चाहत हम सभी जनपक्षधर , जनवादी , प्रगतिशील एवं वामपंथी संगठनों से जुड़े कार्यकर्ता एवं नेता करते हैं। लेकिन सिर्फ अकर्मक चाहत से कुछ नहीं होता। वर्तमान समय में जो आप कर सकते हैं , वह नहीं करके सिर्फ गोल-गोल बात को घुमाने से फासीवाद विरोधी संघर्ष को विकसित करने में मदद नहीं मिलती है। सभी सच्चे क्रांतिकारी यह मानते हैं कि इस मानवद्रोही शोषणकारी समाज व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव के बिना फासीवाद जैसे गैर जनतांत्रिक , जनविरोधी एवं दमनकारी विचार, प्रवृत्ति एवं शासन व्यवस्था को जमींदोज नहीं किया जा सकता। अपने इस दूरगामी लक्ष्य को एक मिनट के लिए भी आंख से ओझल करना हमारी भूल होगी। लेकिन सर्वहारा वर्ग के महान शिक्षक ब्लादिमीर इल्यीच लेनिन की उस महान सीख का क्या करें जो उन्होंने हम क्रांतिकारियों को दिया है – “ठोस परिस्थितियों का ठोस विश्लेषण मार्क्सवाद की जीती-जागती आत्मा होती है।”


यक्ष प्रश्न यह है कि हमारे देश में पिछले 10 वर्षों से एक फासिस्ट विचारधारा में यकीन करने वाली पार्टी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार एवं राज्य मशीनरी का संचालन हो रहा है। देश तेजी से फासीवाद के आगोश में समाता जा रहा है। देश में लागू पूंजीवादी संविधान प्रदत्त जनतांत्रिक अधिकारों , नागरिक स्वतन्त्रताओं , सर्वधर्म समभाव वाली धर्मनिरपेक्षता सभी पर तेजी से हमले किये जा रहे हैं। आधे-अधूरे पूंजीवादी जनतंत्र का बधियाकरण करने की साजिशें रची जा रही हैं। तमाम पूंजीवादी जनतांत्रिक संस्थाओं में फासीवादी बजरंगियों को बैठाया जा रहा है। मजदूरों , किसानों , मेहनतकशों, दलितों, आदिवासियों , धार्मिक अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों , महिलाओं , प्रगतिशील एवं वामपंथी सोच के बुद्धिजीवियों को विशेष दमन का‌ शिकार बनाया जा रहा है। देश में एक नंगी फासीवादी तानाशाही व्यवस्था थोप देने की तैयारी जोरों से चल रही है। ऐसी परिस्थिति में हमारे समक्ष इस लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को हराने और उसके खिलाफ खड़े विपक्षी गठबंधन के प्रभावी एवं सशक्त प्रत्याशी को वोट देने के अलावा विकल्प क्या है ? कम्युनिस्ट क्रांतिकारी तात्कालिक नारे को अमली जामा पहनाने के मौके पर दीर्घकालीन नारे का उद्घोष करके चुप नहीं बैठ जाते। तात्कालिक नारे और दूरगामी लक्ष्य के नारे का समुचित समन्वय करते हुए वर्तमान समय के दायित्व का निर्वहन करते हैं। यदि हम ऐसा करने में विफल साबित होते हैं तो हम कोरी लफ्फाजी कर रहे होते हैं। और माफ करेंगे लफ्फाजी से न तो फासीवादी शक्तियों का बालबांका होगा और न इस आदमखोर शोषक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन का रास्ता प्रशस्त होगा। कम्युनिस्ट वर्तमान के आन्दोलन में भविष्य के आन्दोलन का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए उनका तात्कालिक हित हमेशा दूरगामी हितों के मातहत रहना चाहिए। आज देश में जो साम्प्रदायिकता , अंधराष्ट्रवाद और फासीवाद का खतरा लगातार बढ़ता दिखाई पड़ रहा है और लोगों में इस विश्वास की कमी हो रही है कि इन विजातीय कुरीतियों पर समय रहते अंकुश लगाया जा सकता है या उसे परास्त किया जा सकता है, मेरी समझ से इसका मुख्य कारण यह है कि जनविरोधी एवं गैर जनवादी उक्त विचारों को वैचारिक एवं सैद्धांतिक रूप से परास्त करने की क्षमता जिस वैज्ञानिक समाजवादी व मार्क्सवादी – लेनिनवादी विचारधारा में है , उस विचारधारा की विरासत सम्हालने वालों ने ही पस्तहिम्मती का परिचय दिया है। वैचारिक संघर्ष की सरजमीं पर पूरी इच्छाशक्ति और ऊर्जा के साथ हमने मानवद्रोही उन कुविचारों को शिकस्त देने का मनोबल असीम धैर्य के साथ अभी धारण ही नहीं किया है। हल्के फुल्के अंदाज में इस जीवन-मरण के संघर्ष को नहीं चलाया जा सकता। देश को तबाही और बर्बादी के रास्ते पर ले जाने वाली फासीवादी व साम्प्रदायिक शक्तियों को एकजुट होकर हमें पराजित करना ही होगा। यह काम सिर्फ और सिर्फ जनपक्षधर,जनतांत्रिक, प्रगतिशील, वामपंथी एवं कम्युनिस्ट क्रांतिकारी शक्तियों की एकता और मेहनतकश अवाम की मजबूत गोलबंदी के आधार पर ही किया जा सकता है।