औरंगाबाद, खबर सुप्रभात
इन दिनों बाम दल अपने नीतियों को तिलांजलि देकर भटकाव के रास्ते पर चलते दिख रहा है। मार्क्सवाद लेनिन वाद और माओवाद का विश्वास वर्ण संघर्ष में नहीं बल्कि वर्ग संघर्ष में रहा है। लेकिन आज देखा जा रहा है कि बाम दल भी वर्ग संघर्ष के रास्ते को छोड़कर वर्ण संघर्ष के धार को मजबूती प्रदान करने में किसी से कम नहीं भुमीका अदा कर रहा है।बाम दलों का यह अवधारणा रहा है कि समाज में गरीबी और अमीरी के बीच बढ़ रहे खाई को पाटने के लिए तथा इसके विरुद्ध वर्ग संघर्ष को धार दिया जाए। लेकिन 8सीतम्बर को भाकपा (माले) ने राज्यब्यापी आह्वान पर पुरे प्रदेश में प्रतिवाद मार्च निकाल कर वर्ण संघर्ष के रास्ते चलने लगा है और वर्ग संघर्ष को परित्याग करने के दिशा में आगे बढ़ रही है। 8 सितम्बर को ही औरंगाबाद में आयोजित अति पिछड़ा अधिकार मंच के बैठक में भाकपा कार्यकर्ताओं को शामिल होना भी यह साबित करता है कि बाम दलों में भी अब सत्ता के मलाई चाटने का लत लगने लगा है और किसी तरह सता के नजदीक पहुंच कर सत्ता के दलाली कर वर्ण संघर्ष को हासिया पर रखा जाए।
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