नवादा संवाद सूत्र, खबर सुप्रभात
भारत कृषि प्रधान देश है। करीब 70 प्रतिशत लोगों का जीवन कृषि पर निर्भर है। भारतीय किसान सरकारी उपेक्षा का दंश झेलने के कारण आज जलालत की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। अगर यह कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं की असली भगवान देश के अनदाता किसान ही है। खुन-पसीना बहा कर पूरे सृष्टि को जिंदा रखने का काम कर रहे हैं। भारत में सरकार की जनविरोधी नीतियों और नकारात्मक रवैये के चलते किसानों की परेशानी में गुणात्मक बढ़ोतरी हुई है। किसानों की बिगड़ती दुर्दशा के लिए जिम्मेदार केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों का होना है। आज सुनियोजित तरीके से किसान सरकारी उपेक्षा का दंश झेलने के लिए लाचार हैं ।
किसानों की दुर्दशा के मूल कारण है कि सिचाई का उतम प्रबंध न होना। बरसात पर आधारित कृषि व्यवस्था का होना। समय पर बीज, खाद और कीट नाशक दवाईयों का उपलब्ध नहीं होना। साथ ही उपज के यानी उत्पादन के लाभकारी मूल्य से बंचित रहना। किसानों के कृषि में लागत मूल्य की वापसी व भरपाई न होना। सरकार की किसान विरोधी नीति व षड्यंत्र के चलते आज कृषि कार्य एक कृत्रिम संकट के भ्रमजाल में जकड़ा है। कृषि घाटे के सौदेबाजी में तब्दील हो चुका है। यही मूलतः वजह है कि आजकल धनी किसान मध्यम, मध्यम किसान गरीब और गरीब किसान भूमिहीन होते जा रहे हैं। य़ह सिलसिला जारी है।
सरकारी और महाजनी कर्जा व सूद की बोझ से किसान आज बेहद नाकोंदम है। सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत में तकरीबन साढ़े 4 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इतना ही नही,बल्कि लाखों-करोड़ों किसान आत्महत्या करने के कगार पर खड़े हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था विकसित नहीं होने के पीछे मूलतः कृषि क्षेत्र का पिछड़ापन है। भारत को खुशहाल और विकसित राष्ट्र बनाने के लिए कृषि उत्पादन ओर वितरण में पारदर्शिता का होना लाजिमी है। भारत में प्राथमिकता के बतौर कृषि व्यवस्था को सुव्यवस्थित और सुदृढ़ करना चाहिए। आज भारतीय किसान प्राकृतिक आपदा का शिकार नहीं, बल्कि सरकारी कृत्रिम संकट के मकड़जाल में फंसा कराह रहा है।