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किसान नेता राकेश टिकैत के ब्यान पर प्रतिक्रिया

सुनिल सिंह का रिपोर्ट।

प्रेस विज्ञप्ति
(दैनिक समाचार पत्र को
प्रकाशनार्थ प्रेषित)
बिहार है नेतृत्व का विपुल भंडार, किसी अन्य का नेतृत्व स्वीकार नहीं–राणा आशुतोष!
राष्ट्रीय संस्था सैल्यूट तिरंगा, बिहार के प्रदेश महामंत्री राणा आशुतोष कुमार सिंह ने राकेश टिकैत के उस बयान पर प्र

राणा आशुतोष कुमार सिंह नें टिकैत के बयान के जवाब में कहा है कि राकेश टिकैत जी को संभवत बिहार का इतिहास और भूगोल नहीं पता है। इन्हें शायद इतना भी ज्ञान नहीं है कि बिहार दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का अधिष्ठान है ।लोकतंत्र का सृजन भी बिहार के जनपद से हुआ है। बिहार का नेतृत्व संपूर्ण देश दुनिया को प्रभावित करता है। बिहार पूरी दुनिया की दिशा और दशा का सूत्रधार है। टिकट को शायद यह भी नहीं पता की राजकरण की परिभाषा का प्रयोगशाला रहा है बिहार। जिसके जनक रहे हैं आचार्य चाणक्य। संपूर्ण भारत में बिहार त्याग, तपस्या और ज्ञान की भूमि है। यह गौतम बुद्ध की धरती है। जहां का संदेश पूरी दुनिया में जाता है। दुनिया जिनकी अनुसरण करती है। उसे नेतृत्व का पाठ पढ़ाने राकेश टिकैत आए हैं, यह अत्यंत हास्यास्पद है।

आशुतोष ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में महात्मा गांधी का प्रयोगशाला भी बिहार ही था। बिहार के चंपारण से ही महात्मा गांधी ने दांडी मार्च का शंखनाद किया था और अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश कर दिया था। भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद भी इसी बिहार के भूमि पुत्र थे। टिकैत को शायद यह नहीं पता कि आपातकाल के समय में पूरा भारत जब घुटन महसूस कर रहा था , तत्कालीन व्यवस्था से त्रस्त था तो इसी बिहार की धरती से संपूर्ण क्रांति का उद्घोष किया गया था जिसके सूत्रधार थे जयप्रकाश नारायण, जो इसी बिहार की धरती के लाल थे। जीवन की सांध्य बेला में भी फिरंगीओं से लोहा लेने वाले बाबू वीर कुंवर सिंह इसी बिहार की धरती के क्रांतिवीर योद्धा थे। भगवान बिरसा मुंडा से लेकर सिद्धू कान्हू जैसे क्रांतिवीरों की धरती है बिहार। बिहारी क्रांतिवीर नेतृत्व कर्ताओं का नाम की सूची यदि लिपिबद्ध करने लग जाएंगे तो अध्ययन करने में संभवतः टिकैत की उम्र कम पड़ जाएगी।

राणा आशुतोष ने राकेश टिकैत को तथाकथित किसान नेता बताते हुए कहा कि बिहार स्वयं नेतृत्वकर्ता का धनी राज्य है। इसलिए राकेश टिकैत उस राज्य क्षेत्र में जाकर अपने नेतृत्व का खोखला प्रदर्शन करते रहे जहां कि लोग उनके अनुयाई हैं। राकेश टिकैत को यह समझ लेना चाहिए कि बिहार के गांव की गलियों में रहने वाला किसान न सिर्फ खेत खलिहान में काम करता है बल्कि टिकैत जैसे लोगों को अपने खेत खलिहान में बैठा कर आंदोलन की परिभाषा को पढ़ा सकता है।

आशुतोष नें राकेश टिकैत को सलाह देते हुए कहा है कि बिहार की धरती पर किसान नेतृत्व कि दुकान तो खोल सकते हैं किंतु दुकानदारी चलेगी नहीं। क्योंकि बिहार अपने आप में नेतृत्व का विपुल भंडार है। किंतु टिकैत यदि नेतृत्व की परिभाषा सीखने बिहार आए हैं तो उनका स्वागत है। कुछ दिन बिहार में रहें ।बिहार के शहरों में नहीं बल्कि बिहार के ग्रामीण गलियों में घूमें तो संभवत इनको यह पता चल जाएगा कि यहां गांव का एक अंतिम छोर पर खड़ा किसान जिसके पास डिग्री भले ना हो लेकिन नेतृत्व का अपने आप में यूनिवर्सिटी है। सुनील कुमार सिंह, क्षत्रिय मीडिया प्रमुख (बिहार ,झारखंड ) सैल्यूट तिरंगा, बिहार

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