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आजादी के 75वें साल के प्रोपेगंडा बनाम आज की जमीनी हकीकत

गाजियाबाद से निर्मल शर्मा के कलम से

_भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। यह अजीब संयोग और विडंबना है कि स्वतंत्रता आंदोलन से विरत रहने वाले,आजादी के आंदोलन की नकारात्मक तस्वीर प्रस्तुत करने वाले तथा भारत में स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान विकसित हो रही सामाजिक सांस्कृतिक राजनीतिक और राष्ट्रीय चेतना और राष्ट्र निर्माण की परियोजना से पूर्णतया असहमत और विरोधी विचारधारा वाले लोग आज भारत की सत्ता पर अपनी कुटिलता, जोड़तोड़,जमलेबाजी और चालबाजी से काबिज हैं। वह आजादी के 75 वर्ष को अपनी सांस्कृतिक दरिद्रता की प्रकृति के अनुसार ‘अमृत काल ‘ कह रहे हैं !_
           _लफ्फाजी और शब्दों के दुरुपयोग के मास्टर माइंड आजादी के संघर्ष के सम्पूर्ण विमर्श को तिरंगा झंडा फहराने के कारोबारी इवेंट में बदल कर स्वतंत्रता की पूरी अवधारणा को ही सीमित करने की कोशिश में लगे हैं ! इसलिए आज भारत में आजादी और लोकतंत्र का यथार्थ के मायने क्या हैं ? भारतीय लोकतंत्र में चल रहे खेल की अंतर्वस्तु क्या है ? तथा हमारा लोकतांत्रिक भारत किस दिशा में जा रहा है ? आदि-आदि बहुत से अनुत्तरित और यक्षप्रश्न मुंह बाए खड़े हैं,आज इनको ठीक से समझने की बहुत सख्त जरूरत है। आइए सिलसिलेवार इस पर चर्चा करते हैं।_

    
*_बौद्धिक, लोकतांत्रिक नागरिक समाज के प्रति वर्तमान सत्ता का क्रूर व्यवहार !_*
     
              
             _छात्र जीवन में एक कहानी पढ़ाई जाती थी। राजा भोज के दरबार में एक प्रसिद्ध महात्मा एक कविराज को लेकर उपस्थित होते हैं। चक्रवर्ती सम्राट भोज से निवेदन करते हैं कि महाराज आपके राज्य में यह कवि जी आश्रय चाहते हैं । इनकी उत्कट इच्छा है कि आपके साम्राज्य  “जिसका गौरव पूरी दुनिया में फैल रहा है ” में ये अपना शेष जीवन व्यतीत करें,इसलिए महाराज अपने राज्य की तरफ से इन विद्वत जन के लिए आश्रय स्थल की व्यवस्था करा दें। जिससे यहां कवि श्री निवास करें और आप के साम्राज्य की कीर्ति और यश संपूर्ण धारा पर और फैले । राजा भोज यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने महात्मा को आदेश दिया कि राज्य में कोई अज्ञानी हो तो उसके घर को खाली कराकर यहां पधारे इन कवि जन के निवास की व्यवस्था की जाए। मंत्री गण सारे राज्य में किसी मूर्ख की खोज में निकल पड़े। संपूर्ण राज्य में उन्हें कोई अज्ञानी या अनपढ़ नहीं मिल रहा था। मंत्री गण मूर्ख मनुष्य की तलाश करते हुए एक जुलाहे के घर पहुंचे। उन्हें लगा कि जुलाहा निश्चय ही अज्ञानी होगा। मंत्रियों ने समझा कि अपने कर्म के कारण यह साहित्य कला संस्कृति से अनभिज्ञ होगा। ज्ञान कला साहित्य के रसास्वादन की क्षमता इसमें नहीं होगी !_
             _महामंत्री ने फरमान सुनाया कि जुलाहे तुम अपना घर काली करो,क्योंकि तुम्हारे घर में बाहर से पधारे एक विद्वान कवि जन रहेंगे। तुम्हें पता है न महाराज भोज की राजधानी उज्जयिनी विद्वत जनों का वासस्थल है। महाराजा भोज के साम्राज्य में विद्वानों, कवियों कला साहित्य प्रेमियों को समाज में उच्च स्थान प्राप्त है । इसलिए तुम्हें अपना आवास खाली करना ही होगा ! उस गरीब  बुनकर ने विनम्रता से महात्मा से आग्रह किया कि आप सही कह रहे हैं,लेकिन मुझे राज दरबार ले चलिए और मैं महाराज के समक्ष अपनी व्यथा और कथा सुनाऊंगा ।_
             _महामंत्री ने कहा ठीक है चलो। राज दरबार में तुम्हें अपना पक्ष प्रस्तुत करना होगा। वह जुलाहा राजा भोज के दरबार में उपस्थित हुआ। उसने कहा कि महाराज मैं पेशे से बुनकर हूं ।लेकिन अगर मैं यत्न करू तो कविता की भी रचना कर सकता हूं और उसने अपना पक्ष इस प्रकार प्रस्तुत किया।_
*_‘काव्यमं करोति नहि चारू तरमं करोति।_*
*_यत्नामि करोमि,चारूतरमं करोति।_*
_भूपाल मौलि मणि मंडित पाद पीठ :_*
*_हे ! शाहशांक कवियामि वयामि यामि। ‘_*
               _राजा भोज यह सुन अति प्रसन्न हुए ।और आदेश दिया कि इतने विद्वान जुलाहे के निवास को खाली न कराया जाय और ये अपने ही निवास स्थान पर रहेंगे।_
              _यह प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक अनूठा दृष्टांत है । जहां श्रम, बुद्धि, ज्ञान और कला आपस में समाहित होकर एक महान राष्ट्र और साम्राज्य की रचना करती थी !_
              _लेकिन_ *_आज स्वतंत्रता के इस कथित अमृत काल में भारत में अगर कोई सबसे लांछित उपेक्षित उत्पीड़ित और दमित समूह है। जिसे राज्य और उसके तथाकथित राष्ट्र भक्तों द्वारा अपमानित और उत्पीड़ित किया जा रहा है,तो वे हैं कवियों, कलाकारों, साहित्यकारों, संस्कृत कर्मियों प्रबुद्ध तार्किक वैज्ञानिक सोच वाले नागरिकों और विद्वानों का है।_*
             *_जितनी गालियां लांछन और यातनाएं आजादी के इस 75 वें वर्ष में भारत में इस वर्ग को दी जा रही हैं शायद ही दुनिया में कहीं भी ऐसा देखने को नहीं मिला रहा है !संभवत एडोल्फ  हिटलर और बेनिटो मुसोलिनी के काल में ही जर्मनी और इटली में भी बुद्धिजीवियों, लेखकों,कवियों और समाज के हितरक्षकों की इतनी दुर्गति नहीं हुआ होगा !_*
             _आज हम आजादी के जब 75 वर्ष पूर्ण करने जा रहे हैं,तो यह यक्षप्रश्न बार-बार मस्तिष्क में घुमड़ रहा है कि आखिर हम भविष्य में कैसा राष्ट्र बनाना चाहते है ?भारतीय सांस्कृतिक परंपरा से किस धारा को ग्रहण करना चाहते हैं ?आज हमें भारतीय इतिहास के अतीत से लोकपक्षीय बौद्धिक और लोकतांत्रिक परंपरा का चयन करना होगा। तभी भारतीय राष्ट्र राज्य की सकारात्मकता और लोकतांत्रिकता की रक्षा की जा सकती। साथ ही स्वतंत्रता संघर्ष  के उच्चतम मूल्यों वाली परंपरा को आगे बढ़ाया जा सकता है। जिसका सार तत्व है_ *_” सर्वे भवंति सुखिन: सर्वे संतु निरामया “।_*
_आज के लोकतांत्रिक वैज्ञानिक समय में अगर कहें तो हमें स्वतंत्रता समानता, बंधुत्व और न्याय की उच्चतम मानवीय परंपरा को आगे ले जाने के लिए इस खूंखार अंधकार काल से बाहर आना ही होगा ! जो निश्चित रूप से भारत के ज्ञान परंपरा की सर्वथा विरोधी है। प्रतिकूल वातावरण का सृजन कर रही है। और हमारी लोकतांत्रिक तर्क वादी बौद्धिक महान परंपरा से डरकर उसके दमन पर उतारू है। जो “वादे वादे जायते तत्व बोध :” के निषेध पर जीवित है।_
                *_इसलिए इन ताकतों से संघर्ष करना ही आज एकमात्र विकल्प है, जो भारत में बौद्धिक  तार्किक और वैज्ञानिक समाज को सबसे ज्यादा  लांछित करने में लगी हैं। जो हमारे नागरिक समाज से डरती है ! जो मानवाधिकार का नाम सुनकर कांपने लगती है और हमारे राष्ट्रीय आंदोलन से निकली और निर्मित समता स्वतंत्रता बंधुता की परियोजना से आतंकित है और उसे मिटा देने पर आमादा है ! यानी हमारे संवैधानिक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र  के खिलाफ खुले रुप से आजादी के 75 वें वर्ष में आ खड़ी हुई है।इसलिए हमारे समक्ष संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के साथ हमारी बौद्धिक लोकतांत्रिक परंपरा को सुरक्षित रखने का कठिन कार्यभार है। हमें आजादी के हीरक जयंती वर्ष में इस महान कार्य को अवश्य पूरा करना होगा । तभी हमारा लोकतांत्रिक गणराज्य दुनिया के उच्चतम मानवीय मानक पर खरा उतर सकेगा !_*

           

       

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