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उन्नत शिक्षा के नाम पर जिले में हो रहा आर्थिक दोहन, जिले में सैंकड़ों विद्यालय वगैर रजिस्ट्रेशन के चल रहा है, शिक्षा विभाग का या तो मिलीं भगत या बेखबर, प्राईवेट स्कूल संचालक किताब से कमा रहे हैं 50-60प्रतिशत कमिशन, आयकर वाणिज्य विभाग को भी किताब दुकान संचालक दे रहे हैं चकमा

औरंगाबाद खबर सुप्रभात समाचार सेवा

औरंगाबाद जिले में इन दिनों उन्नत शिक्षा देने के नाम पर जिला मुख्यालय से लेकर प्रखंड मुख्यालय और ग्रामीण क्षेत्रों में प्राइवेट स्कूलों का बाढ़ है। कुटुम्बा प्रखंड और दाउदनगर प्रखंड इस मामले में किर्तिमान स्थापित कर लिया है। जिला मुख्यालय में तो बड़े बड़े शिक्षा माफिया बैठे हुए हैं और उन्नत शिक्षा देने के नाम पर अभिभावकों का आर्थिक दोहन कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार वगैर रजिस्ट्रेशन के सैंकड़ों प्राईवेट स्कूल का संचालन किया जा रहा है। कुछ वैसे भी प्राईवेट स्कूल चलाए जा रहे हैं जो कहने के लिए रजिस्ट्रेशन तो है लेकिन आहर्ता पुरी नहीं करते हैं। शिक्षा विभाग के आलाधिकारी या तो अनजान बने हुए हैं या फिर उनका अप्रत्यक्ष रूप से मिली भगत है। इस संबंध में जिला शिक्षा पदाधिकारी संग्राम सिंह से जब उनके मोबाइल नम्बर पर सम्पर्क कर जानने का कोशिश किया गया कि आखिर जिले में कितने प्राईवेट स्कूल है जिनका रजिस्ट्रेशन प्राप्त है तो उन्होंने बताया कि इसकी जानकारी स्थापना से मिलेगा, जब स्थापना से संपर्क किया गया तो बताया गया कि इसकी जानकारी सर्व शिक्षा अभियान से मिलेगा जब सर्व शिक्षा अभियान से संपर्क किया गया तो बताया गया कि अभी मीटिंग में है। कुटुम्बा और दाउदनगर प्रखंड तो इस मामले में महारथ हासिल कर लिया है जहां वगैर रजिस्ट्रेशन के अनगिनत प्राईवेट स्कूल जांच के बाद प्रकाश में आएगा लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारी जांच के बदले मेहरबान बने हुए हैं। सूत्रों से जानकारी के अनुसार कुटुम्बा प्रखंड में जांचोपरांत दर्जनों वैसे विद्यालय प्रकाश में आएगा जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं है और यदि कुछ विद्यालयों का रजिस्ट्रेशन है भी तो आहर्ता पुरी नहीं कर रहा है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इन प्राईवेट स्कूल के संचालक हर सत्र में किताबों का प्रकाशन बदल देते हैं इसलिए कि कोई भी बच्चों को पुरानी किताबें उपयोग में नहीं आ सके और प्रत्येक वर्ष नई किताब खरीदने के लिए मजबूर हो जाए। जानकारी के अनुसार विद्यालय संचालकों द्वारा अपने अपने विद्यालय का एक तय किताब दुकान सेट रहा करता है। जहा से विद्यालय संचालक को 50-60 प्रतिशत तक अग्रिम कमीसन किताब दुकान संचालकों से भुक्तान कर दिया जाता है। लेकिन बच्चों तथा अभिभावक को एक रुपए का भी छूट नहीं मिल पाता है सूत्रों का माने तो कुछ वैसे भी प्राइवेट विद्यालय है जिनके संचालक अपने स्कूल से ही बच्चो को किताब उपलब्ध कराते है लेकिन एक रुपए का भी छूट नहीं दे पाते है। इस संबंध में कई प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों तथा अभिबावको से खबरसुप्रभात प्रतिनिधि संपर्क स्थापित कर सचाई को जानने का प्रयास किया लेकिन वे लोग भय वश मुंह खोलना उचित नहीं समझा। एक अभिभावक ने बताया कि हम लोग जब सवाल करते है तो विद्यालय प्रबंधन द्वारा बच्चो को विद्यालय से हटा देने का धमकी दिया जाता है। उन्होंने अपना नाम नही छापने के शर्त पर बताया कि किताब दुकान संचालक द्वारा किताब खरीदने पर कच्चा बिल दिया जाता है जबकि सरकार द्वारा निर्देश प्राप्त है की प्रत्येक किताब दुकानदार पका जीएसटी बिल देंगे लेकिन किताब संचालक द्वारा वैसा नही किया जाता है और टैक्स बचाने का कार्य किया जा रहा है हलाकि जिला में आयकर वाणिज्य विभाग के कई अधिकारी पदस्थापित है लेकिन किताब दुकानों में छापेमारी नही कर पाते है। यदि आयकर वाणिज्य विभाग द्वारा छापेमारी किया जाए तो इस तरह का कई मामले प्रकाश में आएगा। जानकारी के अनुसार कुछ प्राईवेट स्कूल एनसीईआरटी प्रकाशन के किताब अपने स्कूल में चला रहे हैं जहां बच्चे और अभिभावक आर्थिक दोहन से बच रहे हैं।

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