गाजियाबाद से निर्मल शर्मा
_एक्टिविस्ट हिमांशु कुमार ने जजों को लिखा खुला खत, कहा_ *_– ‘आप अन्यायियों के साथ खड़े हैं !’_*
*_(सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा को बरी किए जाने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को कल सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने के बाद जजों के नाम एक खुला खत लिखा है। इसमें उन्होंने इस दौर में न्यायपालिका के अपनी भूमिका से पीछे हटने के तमाम उदाहरणों के साथ ही उन पर खुला अन्याय करने का आरोप लगाया है। और उन्होंने यहां तक कहा है कि वह इस कार्य के लिए अवमानना के दोषी हैं और वह चाहते हैं कि इसके लिए उन्हें जेल की सजा दी जाए। पेश है उनका पूरा पत्र )_*
जज साहब
आपको यह खुला ख़त लिख रहा हूँ क्योंकि मैं चाहता हूँ कि इस ख़त को देश के सभी अरबों लोग भी इसे पढ़ें !
मेरे माता पिता और ताऊजी इस देश की आज़ादी की लड़ाई लड़े थे जैसे उनकी पीढ़ी के लाखों लोग लड़े ।
उन सभी का सपना था एक ऐसे भारत का निर्माण जिसमें किसी के साथ अन्याय नहीं होगा सभी के साथ न्याय होगा ।
हमारी इस पीढ़ी ने अपने पुरखों के न्याय युक्त भारत के सपनों की धज्जियां उड़ते हुए देखा है ।
इस देश में सरकारें मुसलमानों के घरों पर बिना किसी कार्यवाही के बुलडोज़र चला देती हैं लेकिन किसी अदालत को अपनी यह बेइज्ज़ती महसूस नहीं होती कि सरकार बिना अदालती फैसले के किसी को सज़ा नहीं दे सकती ।
अगर सरकारें ऐसा कर रही हैं तो यह न्यायालय की अवमानना है लेकिन आपको बुरा नहीं लगता ।
इस देश में जज लोया की हत्या एक गुंडा भाजपा नेता और मंत्री कर देता है लेकिन किसी जज को कोई गुस्सा नहीं आता कि आखिर किसी जज की हत्या करने के बाद वह गुंडा जेल जाए बिना बच कैसे गया ?
लेकिन जज की हत्या के सबूत मिटाने उस गुंडे मंत्री के साथ एक जज ही जाता है और बाद में ईनाम के तौर पर ऊंची अदालत में प्रमोशन पाकर जज बन जाता है !
आदिवासी इलाकों में सुरक्षा बल आदिवासी महिलाओं से नियमित बलात्कार कर रहे हैं लेकिन अदालतें पूरी बेशर्मी से उन महिलाओं की शिकायतों को उठा कर कचरे के डब्बे में फेंक रही हैं।
आपके समर्थन से बलात्कारी मूछें मरोड़ते हुए नई महिलाओं से बलात्कार कर रहे हैं ।
आदिवासी बच्चों, औरतों और बुजुर्गों की हत्याओं के 519 मामले मैंने कोर्ट को सौंपे हैं, लेकिन अफ़सोस दर अफ़सोस किसी भी मामले में आपने इन्साफ नहीं दिया ।
इस देश की जनता की सेवा करने वाले बेहतरीन बुद्धि वाले देशप्रेमी सामाजिक कार्यकर्ता जेलों में डाल दिए गये हैं ।
भीमा कोरेगांव मामले में साढ़े चार साल बीतने के बाद भी सरकार चार्ज शीट तक फ़ाइल नहीं कर पाई है ! करेगी भी कहाँ से मामला ही पूरा फर्ज़ी है |
लेकिन आप इन बुज़ुर्ग सामाजिक कार्यकर्ताओं को ज़मानत नहीं दे रहे हैं !
जीएन साई बाबा और उनके अन्य साथियों वाले मामले के फैसले में जज ने लिखा था इनका अपराध यह है कि इन लोगों के करण भारत का विकास रुकता है इसलिए मैं इन्हें उम्र कैद देता हूँ !
और विकास का मतलब हम सबको पता है कि आदिवासियों के जंगल पूंजीपतियों को सौंपना ही आपकी नज़र में विकास है ।
सोनी सोरी के गुप्तांगों में थाने के भीतर पत्थर भर दिए गये !
मेडिकल कालेज ने उसके शरीर से निकाले गये वो पत्थर आपकी टेबल पर रख दिए लेकिन आपने ग्यारह साल के बाद इन्साफ को ठोकर मारते हुए उसकी याचिका ही ख़ारिज कर दी।
बिलकीस बानों के बलात्कारियों और उसकी बेटी के हत्यारों को रिहा करने के गुजरात सरकार के अमानवीय फैसले को आपने जायज़ कहा !
माफ़ कीजिये आपने अदालत को न्याय नहीं अन्याय करने की जगह में बदल दिया है !
करोड़ों लोग एक राष्ट्र के रूप में एक साथ रहने का फैसला इस भरोसे पर करते हैं कि उनके साथ कोई अन्याय नहीं कर पायेगा।
लेकिन आप रोज़ अन्याय करने वालों का साथ दे रहे हैं और न्याय मांगने वालों को ही अपराधी घोषित कर रहे हैं , मोटा जुर्माना ठोकते हैं और जेलों में बंद कर रहे हैं !
जज साहब आप खुद अदालत की अवमानना कर रहे हैं !
माफ़ कीजिये आप बहुत कमज़ोर और डरे हुए हैं !
हालांकि आपको सरकार से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है संविधान ने आपको सरकार से आज़ाद रखा है !
आपको देख कर मुझे उस कुत्ते की याद आती है जिसके सामने कोई डंडा लेकर खड़ा हो और कुत्ते ने डर कर अपनी पूँछ अपनी पिछली टांगों के बीच में दबा रखी हो !
हम चाहते हैं आपको कुत्ते से फिर इंसान बना दें !
आप ना सिर्फ इन्साफ का क़त्ल कर रहे हैं बल्कि आप इंसानियत लोकतंत्र कानून,
संविधान सबके क़त्ल के ज़िम्मेदार हैं !
और अंत में यह बताना चाहता हूँ कि यह खत मैंने आपकी अवमानना करने के लिए ही लिखा है क्योंकि मैं जनता के साथ अन्याय करने वालों की इज्ज़त नहीं कर सकता !
आपकी अवमानना के इलज़ाम में कृपया मुझे जेल में डालने का हुकुम दीजिये जहां मेरी वैसे ही हत्या की जा सके जैसे आपके सहयोग से सरकार ने फादर स्टेन स्वामी और पांडु नरोटे की हत्या की !
मैं चाहता हूँ कि आने वाले बच्चे कम से कम मुझे एक ऐसे इंसान के रूप में याद करें जो नाइंसाफी के खिलाफ बोला और अपने इंसान होने का फ़र्ज़ निभाया और उसी के लिए कथित न्यायालयों के नंपुसक जजों की कर्तव्यहीनता से मारा गया !
*_साभार -भारत का एक न्यायप्रिय नागरिक सुप्रसिद्ध समाजसेवी व बहादुर व्यक्तित्व श्री हिमांशु कुमार जी_*
_संकलन व संपादन -निर्मल कुमार शर्मा गाजियाबाद