पटना संवाद सूत्र खबर सुप्रभात समाचार सेवा
पीयूसीएल सहित प्रदेश के विभिन्न जन संगठन बस्तर में शांति स्थापना के लिए सरकार और माओवादियों से तत्काल युद्ध विराम की अपील कर रहे हैं। शांति वार्ता शुरू करने की दिशा में यह पहला कदम होना चाहिए, ताकि शांति वार्ता के लिए ईमानदार होने के प्रति दोनों पक्षों की ओर से आम जनता में भरोसा पैदा हो सके। बस्तर में शांति स्थापना का मुद्दा केवल सरकार और माओवादियों के बीच का आपसी मामला नहीं है। आम जनता इसका प्रमुख पक्ष है, जो माओवादियों और सरकार प्रायोजित दमन-उत्पीड़न, दोनों का शिकार है और उनकी मांगों को ध्यान में रखे बिना और उनकी समस्याओं को हल किए बिना कोई भी वार्ता सार्थक नहीं हो सकती। हम पीयूसीएल और छत्तीसगढ़ के अन्य जन संगठनों के प्रतिनिधि बस्तर में निर्दोष आदिवासियों की हत्या, दमन और फर्जी मामलों में उनकी गिरफ्तारियों की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए पीड़ित परिवारों की ओर से न्याय की मांग करते हैं l छत्तीसगढ़ के विभिन्न जन संगठनों ने आम जनता की ओर उपरोक्त मुद्दों को पुरजोर ढंग से उठाने का फैसला किया है। इस संबंध में एक प्रतिनिधि मंडल शीघ्र ही राज्यपाल महोदय से मुलाकात कर आम जनता की भावनाओं से अवगत कराएगा। हमारा मानना है कि माओवादी उन्मूलन के नाम पर बस्तर को सैन्य छावनी में तब्दील कर दिया गया है। सैनिक कैम्पों की स्थापना इसलिए की जा रही है कि बस्तर की अकूत खनिज संपदा को कार्पोरेटो को सौपने की कार्यवाही को तेजी से आगे बढ़ाया जा सके। इसलिए, राज्य और केंद्र सरकार अगर वास्तव में बस्तर में शांति स्थापना करना चाहती है तो कार्पोरेट लूट के लिए जंगल जमीन को खाली करवाने की प्रक्रिया को उन्हें रोकना चाहिए l बस्तर में कॉरपोरेट लूट की नीतियां ही वहां शांति स्थापना की प्रक्रिया में असली बाधा हैं। माओवादियों द्वारा वार्ता की पेशकश के बारे में हमारा मानना है कि उन्हें किसी भी तरह की हिंसात्मक गतिविधियों से अपनी दूरी बनानी चाहिए ताकि आदिवासियों को दो पाटन के बीच में और न पीसना पड़े।गौरतलब है कि पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों की ग्रामसभाओं की सहमति के बिना ही खनिज संसाधनों की नीलामी की जा रही है, जो पूर्ण रूप से पेसा कानून में उल्लेखित आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। मौजूदा परिस्थिति में देश का हर जिम्मेदार नागरिक बस्तर में चल रहे खूनी संघर्ष और अशांति के दमघोंटू माहौल में वहां की जनता विशेषकर आदिवासियों के जीवन,आजीविका और सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित हैं।क्योंकि सरकार और माओवादियों के बीच संघर्ष का सबसे ज्यादा खामियाजा बस्तर के आम नागरिक बरसों से भुगत रहे हैं।इसीलिए यदि राज्य और केंद्र सरकार को बस्तर में शांति की स्थापना करनी ही है, तो सरकार के लिए पहली प्राथमिकता होनी चाहिए कि वो अविलंब युद्धविराम और शांति वार्ता के लिए पहल करे।क्योंकि सरकार,जो कि कानून और संविधान का शासन चलाने के लिए प्रतिबद्ध है के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता तुरंत बस्तर में मार काट को रोकना और अपने नागरिकों के प्राण बचाना होना चाहिए।सरकार को निर्दोष आदिवासियों के खिलाफ दमन चक्र को रोकना चाहिए। सरकार को आदिवासियों के अधिकारों को मान्यता देनी चाहिए। साथ ही आदिवासी कानूनों को पर्याप्त इच्छाशक्ति के साथ सरकार लागू करे यह बहुत आवश्यक है ।व इस क्षेत्र में मानवाधिकार संगठनों एवं नागरिकों की स्वतंत्र आवाजाही की अनुमति देनी चाहिए।ताकि बस्तर क्षेत्र की जनता का आपस में बेहतर तादात्म्य स्थापित हो सके।और भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुसार बस्तर क्षेत्र के नागरिकों को लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन करने की अनुमति देनी चाहिए।बस्तर में सरकार की नीतियों के विरोध को अपराध या देशद्रोह नहीं माना जाना चाहिए।हम आशंकित हैं कि जैसा सरकार की नीतियों की आलोचना करने के कारण मूल निवासी बचाओ मंच को प्रतिबंधित किया गया है यह संविधान के मूल्यों का उल्लंघन है।ऐसा किसी भी लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने वाले संस्था के साथ नहीं होना चाहिए। हमारी मांग की है कि बस्तर की कॉर्पोरेट लूट को बंद करने के लिए भूरिया समिति कि अनुशंसा पर आधारित पेसा कानून सम्मत “स्वाशासी जिला परिषद्” कि व्यवस्था के जरिए स्थानीय स्वशासन लागू किया जाएं। माओवादी हिंसा के नाम पर पुलिस और माओवादियों के द्वारा मारे गए निर्दोष लोगों की पहचान कर उन्हें न्याय देने की कार्यवाही की जाए । इस दिशा में सद्भावना प्रदर्शित करते हुए पहले कदम के रूप में सरकार द्वारा जेलों में बंद निर्दोष गरीब आदिवासियों की रिहाई की जाए तथा विभिन्न आयोगों और जांच समितियों की सिफारिशें को लागू किया जाए। राज्यपाल, भारत के राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में संविधान सम्मत रूप से छत्तीसगढ़ के विशेषकर बस्तर के आदिवासियों के मुख्य संरक्षक और अभिभावक हैं।हमारी उनसे गुज़ारिश है कि बस्तर में अविलंब और स्थाई शांति कायम करने,हिंसा और रक्तपात पर अंकुश लगाने तथा आदिवासियों समेत बस्तर के नागरिकों के जीवन ,सुरक्षा व आजीविका के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए अपने स्तर पर प्रभावी हस्तक्षेप करें।
जारीकर्ता
छत्तीसगढ़ पीयूसीएल , छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, जन संघर्ष मोर्चा, छत्तीसगढ़ मुक्ती मोर्चा, गुरू घांसीदास सेवादार संघ (GSS),लोक सिर्जनहार संगठन ( LSU),नगरीय निकाय जनवादी सफाई कामगार यूनियन, छत्तीसगढ़ मुक्ती मोर्चा मजदूर कार्यकर्ता समिति, प्रदेश किसान संघ, आदिवासी भारत महासभा,क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच, जाति उन्मूलन आंदोलन, अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा छत्तीसगढ़ी लोक कला मंच नवां अंजोर,रेला,छत्तीसगढ़ महिला मुक्ती मोर्चा, मेहनतकश आवास अधिकार संघ