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नक्सलियों ने पोस्टर लगा कर कराया उपस्थिति का एहसास, पुलिस मुखबिरों को जन अदालत में सज़ा देने का किया फरमान जारी, अज्ञात नक्सलियों के विरुद्ध प्राथमिकी हुई दर्ज


औरंगाबाद खबर सुप्रभात समाचार सेवा


औरंगाबाद जिले के अति नक्सल प्रभावित टंडवा थाना क्षेत्र में प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा ( माओवादी ) ने पुलिस मुखबिरों के विरुद्ध पोस्टर लगाकर अपनी उपस्थिति का एहसास कराया है तथा अपनी खोई हुई जनाधार को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया है। नक्सलियों द्वारा पोस्टर लगाने का जानकारी मिलते ही स्थानीय थाना टंडवा के

थानाध्यक्ष रामजी प्रसाद दल – बल के साथ पहुंचे और पोस्टर को पुलिस द्वारा उखाड़ दिया गया है। मामले में थानाध्यक्ष के फर्द ब्यान पर अज्ञात नक्सलियों एवं सहयोगियों के विरुद्ध टंडवा थाना कांड संख्या 129/2024 के तहत सुसंगत धाराओं में प्राथमिकी दर्ज किया गया है। दर्ज प्राथमिकी में उल्लेख है कि औरंगज़ेब ख़ान, रौशन ख़ान एवं पूर्व आनंदी सिंह पुलिस का मुखबिर हैं तथा एसपीओ हैं। इस लिए जन अदालत में सज़ा दें। पूर्व में कुख्यात भाकपा ( माओवादी) नेता रहे ऐनूल हक के परिजनों से सतर्क रहने का भी पोस्टरों में उल्लेख रहने का दर्ज प्राथमिकी में लिखा गया है। प्राथमिकी के अनुसार एक भी स्थानीय नागरिक पुलिस के कहने पर भी गवाह नहीं बनने के स्थिति में पुलिस के जवान ही गवाह बनाये गए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भाकपा ( माओवादियों) का खौफ अभी भी बरकरार है तथा पुलिस बलों पर आम नागरिकों को अभी भी भरोसा नहीं है। पुलिस द्वारा गुड़ पुलिसिंग का दावा करने तथा नक्सलियों का कमर तोड़ देने का दावा पर स्थानीय नागरिकों को आखिर भरोसा नहीं होने का कारण क्या है यह एक गंभीर जांच और विष्लेषण का विषय है। इस संबंध में अपना नाम नही छापने के शर्तों पर कई लोगों ने बताया कि गुड़ पुलिसिंग का केवल प्रचार मात्र है जबकि असलियत यह है कि आज भी स्थानीय पुलिस का संबंध दलालों एवं भ्रष्ट सफेदपोशों से है और उनके इशारे पर आम गरीब जनता पर ज़ुल्म ढाया जा रहा है और फर्जी मुकदमा तथा टेबल वर्क अनुसंधान हो रहा है। इतना ही नहीं ग़रीब एवं कमजोर वर्गों के उत्थान एवं विकास के लिए सरकारी योजनाओं की राशि में लूट और गरीबों तथा कमजोर लोगों के साथ हकमारी और शिकायत के बाद भी जांच के नाम पर लीपापोती तथा लूटने वालों को बचाने से लोगों में असंतोष व्याप्त है। फलस्वरूप आम लोगों के बीच शासन – प्रशासन से विश्वास समाप्त हो गया है। यही कारण है कि नक्सलियों को फिर से फैलने का मूल कारण बन सकता है।