आलोक कुमार संपादक सह निदेशक खबर सुप्रभात समाचार सेवा
बिहार मे सभी को न्याय विश्वास और सब विकास के सरकारी दावे का असलियत क्या है यह तो अब जगजाहिर हो चुका है। प्रदेश में कोई ऐसा विभाग नहीं है जहां सरकारी योजनाओं में लूट और मनमानी अपने सीमा का प्रकाष्ठा पार नहीं कर चुका है। जब योजनाओं में लूट और मनमानी व्याप्त है तो इस स्थिति में विकास हो रहा है इस दावा में कितना दम

है यह भी प्रदेश वासियों को समझने में कोई कठिनाई नहीं होना चाहिए। जहां लूट और मनमानी हो और शिकायत के बावजूद जांच के नाम पर लिपापोती और दोषियों को बचाने का खेल होता है तो निश्चित रूप से विकास नहीं बल्कि विनाश का अध्याय कहने में किसी को गुरेज नहीं होना चाहिए। सभी को न्याय दिलाने के प्रति सरकार कितना गंभीर है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य मानवाधिकार आयोग में फैसलों की रफ्तार थम – सी गई है। आयोग की तीन बेंच में दो बेंच काम नहीं कर रही है। सिर्फ एक बेंच ही कार्य कर रही है।दो बेंच के सदस्य पद एक वर्ष से अधिक समय से रिक्त है। नतीजतन आयोग में 9300 से भी अधिक मामले लंबित है। जस्टिस ( सेवा निवृत्त ) अनंत मनोहर बदर को महाराष्ट्र मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष लगभग दो माह पहले नियुक्त कर दिया गया है।तब से आज तक नये अध्यक्ष का नियुक्ति नहीं होने के कारण वे अभी अतिरिक्त प्रभार के रूप में बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष का जिम्मेवारी संभाल रहे हैं। ऐसे में पीड़ित पक्ष को न्याय मिलना अधर में लटका हुआ है तो फिर सभी को न्याय मिलने का दावा का असलियत क्या है यह उजागर हो रहा है।रही बात सभी को विश्वास का तो फिर सरकार एक नहीं अनगिनत योजनाओं का घोषणा और शिलान्यास भी कर चुकी है लेकिन धरातल पर अभी तक अमलीजामा नहीं पहनाया गया है। इससे विश्वास के जगह अविश्वास पैदा होना लाजिमी है। सरकार के नौकरशाहों का स्थिति यह है कि ग्रामीणों का फर्ज़ी हस्ताक्षर बनाकर माननीय उच्च न्यायालय पटना में गलत हलफनामा ( एफड्वीट) तक करने का दुस्साहस कर रहे हैं। औरंगाबाद जिले के कुटुम्बा प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा ग्रामीणों का फर्ज़ी हस्ताक्षर बनाकर माननीय पटना उच्च न्यायालय में पीछले वर्ष हलफनामा ( एफड्वीट ) कर सभी को चौंका दिया है। शिकायत के बावजूद अभी तक कोई जांच और कारवाई नहीं होना एक ज्वलंत उदाहरण है।