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दलित बस्ती में आग, सुशासन पर दाग, क्या प्रशासनिक तंत्र का एकबाल समाप्त हो गया प्रदेश में? जिला प्रशासन के दावे पर भी उठ रहा सवाल


नवादा से डीके अकेला की रिपोर्ट


पिछले दिनों नवादा मुफ्फसिल थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्रामपंचायत दिदौर में कृष्णा नगर ( महादलित टोला) में अपराधियों द्वारा 80 घरों को आग के हवाले कर देने के बाद प्रदेश में सियासत थमने का नाम नहीं ले रहा है। वहीं

स्थानीय पुलिस के लापरवाही पर भी पीड़ित लोगों का सवाल उठ रहा है। पक्ष – विपक्ष के छोटे बड़े नेताओं से लेकर सरकार के मंत्री घटना स्थल का दौरा कर रहे हैं। और बड़े बड़े दावे और आश्वासन का झडी लगा रहे हैं। इस बीच नवादा के जिलाधिकारी आशुतोष कुमार वर्मा, एसपी अभिनव धीमन

द्वारा संयुक्त रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर घटना के संबंध में बड़े खुलासा करने और पीड़ित लोगों के बीच राहत कार्य चलाने का दावा कर रहे हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बाया कर रहा है। यदि पीड़ित लोगों को मानें तो काफी इंतजार के बाद भुख से बिलखते बच्चे, जवान और वृद्ध लोगों को चुडा दिया जा रहा है। यदि और कुछ खाने को मिल रहा है तो कुछ लोगों को मिल रहा है तो कुछ लोग छुट जा रहे हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि जिला प्रशासन द्वारा अभी तक राहत और बचाव कार्य के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति किया जा रहा है तथा सस्ती लोकप्रियता मिडिया के माध्यम से हासिल करने में जुटी है।प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक द्वारा कहा गया है कि मामले को लेकर अफवाह फैलाने वालों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जायेगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि घटना के बाद से ही केंद्र सरकार में मंत्री और सुबे के पूर्व मंत्री द्वारा एक जाति विशेष पर घटना के लिए आरोप लगाया जा रहा है। जिन जातियों पर आरोप लगाया जा रहा है और मामले में दर्ज प्राथमिकी का यदि इमानदारी पूर्वक अवलोकन किया जाए तो क्या यह समझ जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को समझ नहीं आ रहा है कि केन्द्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा अफवाह फैलाया जा रहा है। तथा घटना के असली जिम्मेवार नंदु पासवान एवं अन्य लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से बचाने का सोची समझी षड्यंत्र कर रहे हैं। यदि जिला प्रशासन को समझ आ भी रहा है तो उनके विरुद्ध अभी तक कोई कार्रवाई आखिर क्यों नहीं हो सका है। यदि नहीं तो क्यों? एक और सवाल जिला प्रशासन और राज्य सरकार से है कि जब सरकार और जिला प्रशासन द्वारा समयानुसार बचाव और राहत कार्य समयानुसार चलता तो फिर हिसुआ विधायिका द्वारा आखिर बस्त्र बांटने की नौबत फीर कुछ उद्योग जगत से जुड़े लोगों द्वारा राहत पहुंचाने और नवादा के एक एनजीओ द्वारा पीड़ित लोगों को खाना खिलाने का ब्यवस्था क्यों करना पड़ रहा है? उसका मतलब कि जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक का प्रेस कॉन्फ्रेंस में किये गये सभी दावे सच से कोशों दुर है और मिडिया के माध्यम से सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का मात्र एक उद्देश्य है? घटना का विश्लेषण से क्या यह जाहिर नहीं होता है कि राज्य और खासकर नवादा में प्रशासनिक तंत्र का एकबाल फेल हो चुका है तथा राज्य सरकार के सुशासन पर दाग है? जिला प्रशासन के दावे पर भी सवाल उठ जनमानस में दबे आवाज से उठ रहा है।