आलोक कुमार संपादक सह निदेशक खबर सुप्रभात के कलम से
दो हजार के दशक तक जिस विद्यार्थी का प्रवेश (इंटरमीडिएट) साइंस कालेज पटना ,पटना कालेज पटना में हो जाता था उसकी धमक होती थी की इसका नामांकन इस कालेज में हुआ है ।फिर A N कालेज पटना का भी एक स्थान होता था ।प्रत्येक जिला / प्रमंडल में ख्याति प्राप्त कालेज होते थे जिसका अपना वैभव होता था ।पटना के शैयदपुर हॉस्टल सहित कई छात्रावास गुलजार हुआ करते थे ।कालेज में शिक्षक शिक्षकेतर कर्मियों से परिसर गुलजार

हुआ करता था ।विद्यार्थी स्नातकोत्तर,वाचस्पति उपाधि लेकर विद्वता की अपनी पहचान बनाते थे फिर सुरू हुआ सुशासन की बेला ! व्याख्याता , शिक्षकेतर सेवा निवृत होते गए पद खाली होते गया नियुक्ति बंद कर दी गई विद्यार्थी विहार छोड़कर बाहर जाने लगे छात्रावास खाली होते गया जहां पर शिक्षा की विद्यार्थी हुआ करते थे वहां पर अवैध कब्जा करके अन्य लोग रहने लगे ।गांव गांव के प्राथमिक विद्यालय को मध्य ,मध्य को उच्च विद्यालय में कागज़ पर उत्क्रमित किया जाने लगा पर उसमे शिक्षक और शिक्षकेत्तर कर्मी की व्यवस्था नही की गई गांव के गरीब और मध्यम वर्ग तक के बच्चे साइकल ,पोशाक में छात्रवृति के चक्कर में अपनी पढ़ाई को समाप्त करने लगे ।
नियुक्ति बंद कर दी गई अतिथि शिक्षक,टोला शिक्षक,नियोजित शिक्षक की प्रक्रिया आरंभ की गई वेतन के नाम पर झुनझुना धरा दी गई और मांगने गए तो लाठी से स्वागत की गई. शिक्षक के खिलाफ नकारात्मक वातावरण आमलोगों में बनाई गई की शिक्षक को बहुत पैसा मिलता है और पढ़ाते नही है जिससे शिक्षको की मूल भावना को तेजी से अतिक्रमण हुआ परिणाम स्वरूप जो भी मेधावी छात्र हुए वें बिहार में शिक्षक नही बनने हेतु विचार किया और सभी बाहर की रुख कर लिए । शिक्षा शास्त्र महाविद्यालय धन पतियों द्वारा थोक भाव में खोला जाने लगा और पैसे के बल पर नामांकन होने लगा ,जो उच्च विद्यालय ,महाविद्यालय गुलजार हुआ करता था वहा बिरानगी छाने लगा ।जो महापुरुष अपनी जमीन धन दौलत लगाकर शिक्षा का मंदिर का निर्माण किए थे उनके सपना को दफन कर दिया गया ।चारो तरफ अराजकता का माहौल बनते गया जिसका परिणाम सामने है की बिहार के नौजवानों को न पढ़ाई मिल रही न रोजगार मिल रही दूसरे प्रदेशों में जाने के लिए अभिशप्त है ।बिहार की बदहाली में पिछले कई दशकों से समाजवादियों की सरकार है जिसमे कांग्रेस ,भाजपा,कौमनिष्ट सभी बिहार के राजनैतिक दल सामिल रहे है ।बिहार की बदहाली में कोई दल अछूता नहीं है तो फिर इसके साथ ही यह भी दृष्टब्य है कि सामान्य शिक्षा के अतिरिक्त टेकनीक शिक्षा को बिहार में सदा से उपेक्षा किया गया जिसके फलस्वरुप जो जागरुक थे वे अपने बच्चों को बीएड,बीपीएड,इन्जिनियरिंग के लिए दक्षिण भारत के ऐसे संस्था को अपना खेत बेचकर समृद्ध किया.और आज भी वही स्थिती है.
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