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जंगल का राजा शेर बनाम चूहा !
( एक प्रेरणादाई मार्मिक कहानी )

गाजियाबाद से निर्मल शर्मा का आलेख

पुराने समय की बात है एक जंगल में जंगल का राजा शेर और उसकी पत्नी शेरनी के साथ अपनी मांद में अपने बच्चों को अकेला छोड़ कर शिकार के लिये दूर तक चला गया
जब वे दोनों अपनी मांद में देर तक नहीं लौटे तो उनके बच्चे भूख से छटपटाने लगे.
               उसी समय एक बकरी उधर आई उसने शेर के बच्चों को भूख से तड़पते देखा उस बकरी को इन नन्हें शावकों पर बहुत दया आई और बकरी ने अपनी थन से शेर के उन भूख से व्याकुल बच्चों को भरपेट दूध पिलाया फिर बच्चे मस्ती करने लगे.
           तभी शेर शेरनी वहां आ गए. बकरी को देख लाल पीले होकर शेर बकरी पर हमला करने वाला ही था ,उससे पहले उनके बच्चों ने अपने मम्मी पापा से कहा कि हम दोनों को भयावह भूख से तड़पते देखकर इसी बकरी ने अपने थन से हमें भरपेट दूध पिलाकर हमारा बड़ा उपकार किया है नहीं तो हम मर ही जाते।
               अब शेर खुश हुआ और कृतज्ञता के भाव से बोला,बकरी रानी ! हम तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूलेंगे,अब जाओ आजादी के साथ जंगल में घूमो – फिरो मौज करो। अब तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है !
             अब बकरी जंगल में निर्भयता के साथ रहने लगी यहाँ तक कि कभी-कभी शेर के पीठ पर बैठकर भी पेडों के पत्ते खाती थी।
             यह दृश्य चील ने देखा तो उसने हैरानी से बकरी से पूछा तब उसे पता चला कि उपकार का कितना महत्व है।
          चील ने यह सोचकर कि एक प्रयोग मैं भी करती हूँ,उसने देखा चूहों के छोटे छोटे बच्चे दलदल मे फंसे थे निकलने का लाख प्रयास करने के बावजूद उनकी कोशिश बेकार हो रही थी।
         चील ने उनको पकड़ पकड़ कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया.
          बच्चे भीगे थे सर्दी से कांप रहे थे तब चील ने अपने पंखों में छुपाया,बच्चों को बेहद राहत मिली.
               काफी समय बाद चील उड़कर जाने लगी तो हैरान हो उठी चूहों के बच्चों ने उसके पंख अंदर से कुतर डाले थे !
           चील ने यह घटना बकरी को सुनाई तुमने भी उपकार किया और मैंने भी फिर यह फल अलग-अलग क्यों ?
        बकरी हंसी फिर गंभीरतापूर्वक बोलते हुए कहा चील से कहा….
*_‘ उपकार करो,तो शेरों पर करो,चूहों पर नहीं।_*
*_क्योंकि कायर कभी उपकार को याद नहीं रखते और बहादुर कभी उपकार को भूलते नहीं! ‘_*

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