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“कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिरू सुमिरु जग उतरन पारा “

सुनील कुमार सिंह खबर सुप्रभात समाचार सेवा

संत शिरोमणी तुलसी दास जी लिखते हैं कि – कलयुग में केवल ‘ राम ‘ नाम ही एक आधार है । जिसको सुमिरण करनें मात्र से जीव इस भव सागर के पार उत्तर जाता है । यानि कि व्यक्ति जो भी कर्म करता हो, सिर्फ ‘ राम ‘ नाम का जप करते ही वह दैहिक, दैविक एवं भौतिक संतापों से मुक्ति पाकर मोक्ष को प्राप्त करता है।
ऐसे प्रभु श्री राम जी का अवतरण भारत देश के अयोध्या नगरी में राजा दशरथ के घर माता कौशल्या के शरीर से होता है।  वाल्मीकि लिखते हैं कि चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथी को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में कौशल्यादेवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्वलोकवन्दित श्री राम को जन्म दिया। वाल्मीकि कहते हैं कि जिस समय राम का जन्म हुआ उस समय पांच ग्रह अपनी उच्चतम स्थिति में थे।
रामपूर्वतापनीय उपनिषद में कहा गया है –
” रमन्ते योगिनोऽनन्ते नित्यानन्दे चिदात्मनि। “
अर्थात् जिस नित्य आनन्दमय परम सत्ता में योगीवृंद रमण करते हैं , उसी सत्ता को ” राम ” कहते हैं।
आदि ग्रंथ में कहा गया है –
” राम हमउ महि रमि रह्यो विसब कुटुंबह माही।”
अर्थात् संसार में वही आनंदमय परम सत्ता हम सबके भीतर भी रमण कर रही है।
इस प्रकार देखते हैं कि जो प्रभु-सत्ता हम सभी में रम रही है और हम सभी जिस प्रभु-सत्ता में रम रहे हैं , उसी परम सत्ता को ‘ राम ‘ शब्द से विभूषित किया गया है। ऐसी प्रभुसत्ता का प्रकटीकरण त्रेतायुग में चैत्र शुक्ल नवमी को पावन अयोध्या में हुआ था।

प्रभु श्रीराम का स्मरण मात्र भी विलक्षण प्रभाव डालता है । इसका सबसे बड़ा प्रमाण रावण के ही जीवन से जुड़ा हुआ है। जब कुंभकर्ण ने रावण से कहा कि तुम तो मायावी हो। तुम राम बनकर कभी सीता के सम्मुख क्यों नहीं जाते ? तो रावण ने कहा –
” रामांग भजतो ममापि कलुषो भावों न सज्जायते।।”
अर्थ – जब मैं राम का रूप धारण करने के लिए श्याम राघवेंद्र के अंगो का ध्यान करने लगा , तब एक-एक करके मेरे हृदय के सारे कालुष्य समाप्त होने लगे। फिर तो सीता को वश में करने का प्रश्न ही समाप्त हो गया।
अब हम समझ गए होंगे कि भक्तों और संतों ने ” राम ” के स्मरण पर जोर क्यों दिया ? केवल नाम-स्मरण से ही मन में निर्मलता एवं पवित्रता आने लगती है।bसमय की कसौटी पर महर्षि वाल्मीकि का यह कथन अक्षरशः खरा उतरता है –
यावत् स्थास्यन्ति गिरय: सरितश्च महीतले।
तावद् रामायणकथा लोकेषु प्रचरिष्यति।।
जब तक धरती पर नदियां और पहाड़ रहेंगे , तब तक इस लोक में रामकथा का प्रचार होता रहेगा।