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औरंगाबाद में बीआरबीसीएल में महाघोटाला का सीबीआई जांच प्रारंभ

औरंगाबाद खबर सुप्रभात समाचार सेवा

भारतीय रेल बिजली कंपनी लिमिटेड(बीआरबीसीएल) के बिहार के औरंगाबाद के नबीनगर स्थित देश के एकलौते पावर प्लांट में एक बड़ा घोटाला सामने आया है। कंपनी के कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व(सीएसआर) फंड के तहत शौचालय निर्माण में करोड़ों का घोटाला हुआ है। आरोप है

कि वित्तीय वर्ष 2015-16 में अपर महाप्रबंधक(कमीशनिंग) राकेश कुमार उपाध्याय ने अपने कार्यकाल के दौरान इस घोटाले को अंजाम दिया है और घोटाले में कंपनी के कई छोटे-बड़े अधिकारी भी शामिल हो सकते है। मामले की शिंकायत केंद्रीय जांच ब्यूरो(सीबीआई) तक पहुंची है और एजेसी ने जांच भी शुरू कर दी है।बीआरबीसीएल में सीएसआर फंड से टॉयलेट निर्माण में हुए करोड़ों के घोटाले की जांच करने के लिए सीबीआई के संयुक्त सचिव राजीव रंजन के नेतृत्व में एजेंसी की टीम कंपनी के औरंगाबाद के नबीनगर स्थित पावर प्लांट पहुंचे। टीम द्वारा घोटाले से जुड़ी सभी फाइलों को 12 घंटे से अधिक समय तक खंगाला गया। मामले में अबतक 230 टॉयलेट निर्माण में घोटाले की जांच चल रही है। मामले में सीबीआई ने बीआरबीसीएल के तत्कालीन एजीएम आरके उपाध्याय को मुख्य आरोपी बनाया है, जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के सिंगरौली में एनटीपीसी के पावर प्लांट में पदस्थापित है। घोटाले में शौचालय निर्माण का कांट्रैक्ट लेने वाली कोलकाता की कंपनी इंडिकॉन इंटरप्राइजेज और सब कांट्रैक्टर रोहतास श्री जी इंटरप्राइजेज के सुशील कुमार पांडेय को भी आरोपी बनाया गया हैं। सूत्रों के मुताबिक टायलेट घोटाले के तार औरंगाबाद, अरवल, रोहतास और जहानाबाद जिले से जुड़े है। इन्ही जिलों में कंपनी के सीएसआर फंड से शौचालय निर्माण होना था, जिसमें घोटाला हुआ है। मामले में सीबीआइ की टीम एजीएम और उनके रिश्तेदारों से जुड़े खातों व उनमें हुए ट्रांजेक्शन की भी जांच की है। मामले में संलिप्त ठेकेदार के साथ हुए लेनदेन से जुड़ी जानकारी भी ली है। जांच में यह उजागर हुआ कि सीएसआर फंड रो बनाए जाने वाले 230 में से तो कुछ टॉयलेट बने ही नहीं। जो बनाए भी गए, वह भी बेहद खराब ढंग से बनाए गए। कई स्कूलों में दो की जगह मात्र एक टॉयलेट का ही निर्माण एजेंसी के द्वारा कराया गया। टायलेट निर्माण के ठेकेदार सुशील कुमार पांडेय ने भी जांच में यह स्वीकार किया है कि 30-40 टॉयलेट इलाके के दूरदराज में होने के कारण नहीं बन सके। पहले मामले में एनटीपीसी की निगरानी शाखा में शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी। शिकायत के आलोक में एनटीपीसी के चीफ विजिलेंस ऑफिसर(सीवीओ) ने जांच की। जांच में मामला सत्य पाए जाने के बाद सीवीओ ने शिकायत को गंभीर माना। इसके बाद सीबीआई को बीआबीसीएल के एजीएम(कमीश निंग) रहे राकेश कुमार उपाध्याय द्वारा अवैध संपत्ति एकत्रित करने की शिकायत को एजेंसी के हवाले लिया। मामले में 17 फरवरी 2022 को सीबीआइ ने पीइ दर्ज की। मामले की प्राथमिक जांच के बाद सीबीआइ जबलपुर के एसआइ जुगल किशोर ने इसकी लिखित शिकायत दर्ज कराई। केस को एसीबी पटना को ट्रांसफर करते हुए 20 मई 2024 को इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई। साथ ही मामले में एनटीपीसी की ओर से कार्रवाई करते हुए घोटाले के आरोपी एजीएम को दो साल के लिए वेतनमान में एक स्तर की कटौती भी कर दी गई।
दरअसल मामले में एजीएम राकेश कुमार उपाध्याय के भाई उमेश कुमार उपाध्याय ने भी सीबीआई के समक्ष शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत के अनुसार राकेश ने अपने सगे भाई के खाते में 2002 से 2004 के बीच 5.5 लाख, 2010 से 2014 के बीच 50 लाख और 2014 से 2015 के बीच 35 लाख की राशि डलवाई। वहीं मामले में टायलेट घोटाले के आरोपी सब कांट्रैक्टर सुशील कुमार पांडेय ने सीबीआई को दिए बयान में कहा है कि राकेश उपाध्याय के कहने पर उसने उसके भाई उमेश उपाध्याय के खाते में 15 लाख रुपये डाले और राकेश को पांच लाख कैश में दिया। बहरहाल मामले में सीबीआई ने जांच तेज कर दी है। संभावना जताई जा रही है कि जांच की आंच बड़े अधिकारियों तक भी पहुंच सकती है।