पटना संवाद सुत्र, खबर सुप्रभात सामाचार सेवा
9 जून को न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून बनाने संबंधी किसानों की मांग को ठुकराने वाले प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर किसानों के हितों पर कुठाराघात करने वाली किसान विरोधी एमएसपी की घोषणा की है।इस घोषणा ने किसानों की आमदनी दोगुनी करने की प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के वादे की भी कलई खोल दी है। हम जानते हैं कि मोदी सरकार एमएसपी नीति को खत्म करने पर आमादा थी लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले चले लंबे किसान आंदोलन के दबाव में सरकार इस नीति को जारी रखने के लिए बाध्य हुई। लेकिन मोदी जी का किसान विरोधी रवैया फिर एक बार उजागर हुआ है। केन्द्र सरकार ने मनमाने और नौकरशाही तरीके से एमएसपी और खरीद नीति का निर्धारण किया है । न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून नहीं होने के चलते मोदी सरकार को यह छूट मिल जाती है कि वह इस मौसम में कितनी खरीददारी करे। एक तरफ त्रुटिपूर्ण एमएसपी की घोषणा की जाती है और दूसरी तरफ कम खरीददारी करने के हथकंडे अपनाए जाते हैं। ऐसे में एमएसपी की घोषणा बेमतलब नहीं तो और क्या है। किसानों के वास्तविक लागत खर्च का आंकलन काफी दोषपूर्ण तरीके से किया गया है। दूसरी बात यह है कि इस खर्च में बढ़ती मंहगाई का हिसाब नहीं लगाया गया है। तीसरी बात है कि मोदी सरकार किसानों के लागत खर्च को राष्ट्रीय औसत के हिसाब से तय करती है जो बिहार और झारखंड जैसे पिछड़े राज्यों के किसानों के हितों के खिलाफ है । क्योंकि तुलनात्मक रूप से बिहार, झारखंड के किसानों का लागत खर्च ज्यादा है। मौजूदा घोषित एमएसपी के मुताबिक धान सामान्य का मूल्य 2183 प्रति क्विंटल और धान- ग्रेड ए का मूल्य 2203 प्रति क्विंटल रखा गया है। एक अनुमान के मुताबिक यहां 3000 रूपये प्रति क्विंटल वास्तविक लागत खर्च पड़ता है। कृषि राज्य अनुसूची में है। लेकिन एमएसपी तय करने के मामले में राज्य सरकार की भूमिका सुनिश्चित नहीं है। इसका खामियाजा बिहार, झारखंड जैसे राज्यों के किसानों को भुगतना पड़ता है। यह हमारे संविधान की संघीय ढांचे का भी तकाजा है कि बिहार, झारखंड जैसे पिछड़े राज्यों के किसानों के हितों का संरक्षण हो सके। मोदी सरकार की अधिप्राप्ति अथवा खरीद नीति भी बिहार, झारखंड के किसानों के खिलाफ है। एक तो बिहार, झारखंड के किसानों से कितने प्रतिशत धान अथवा अन्य खरीफ फसलों की खरीद की जाएगी, यह सुनिश्चित नहीं है। नतीजा है कि बिहार झारखंड से नगण्य खरीद की जाती है। बिहार झारखंड के किसानों को कोई खास लाभ नहीं होता है।
इस स्थिति का नाजायज़ फायदा व्यापारी उठाते हैं। बिहार, झारखंड के किसान मजबूरी में व्यापारियों को एमएसपी से काफी कम दामों पर धान, गेहूं बेचने को विवश हैं। यही धान, गेहूं व्यापारियों के द्वारा दूसरे राज्यों में ले जाकर एमएसपी के दाम पर बेच दिया जाता है।
बिहार, झारखंड में अधिकतर छोटे और सीमांत किसान हैं। इनकी केन्द्र सरकार में कोई लॉबी नहीं है। राज्य सरकारों की भी आवाज नहीं है। ऐसी स्थिति में बिहार झारखंड के किसानों के साथ भेदभाव बरता जाता है। यहां के किसानों के धान की गुणवत्ता को कम करके आंका जाता है और यही बहाना बनाकर अधिप्राप्ति एजेंसियां खरीद से इंकार करती हैं अथवा नाजायज़ तरीके से पेश आती हैं। लोकतांत्रिक जन पहल सरकार से मांगा करती है कि एमएसपी के निर्धारण में बिहार, झारखंड जैसे पिछड़े राज्यों के छोटे
और सीमांत किसानों के वास्तविक
लागत खर्च को आधार बनाया
जाय। राज्यवार एमएसपी की
घोषणा की जाय।, एमएसपी और अधिप्राप्ति नीति के
निर्धारण में राज्य सरकार को
शामिल किया जाय।, बिहार, झारखंड जैसे पिछड़े राज्यों
से अधिप्राप्ति का अधिकतम कोटा
निर्धारित किया जाय, कृषि बाजार को व्यवस्थित किया
किया जाय।