देवरिया (कुटुम्बा) से खबर सुप्रभात का ग्राउंड रिपोर्ट
औरंगाबाद जिले के कुटुम्बा थाना क्षेत्र के देवरिया बाजार में 25मार्च को शाहिद ए आज़म भगतसिंह का शहादत दिवस भाकपा माले के बैनरतले आयोजित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अरवल के माले विधायक महानंद सिंह व कुटुम्बा विधायक सह विधानसभा में सचेतक

सत्तारूढ़ दल राजेश राम मौजूद रहे। राजद के जिलाध्यक्ष सुरेश मेहता देवरिया बाजार पहुंचे लेकिन कार्यक्रम में शामिल हुए बगैर वापस लौट गए जबकि कार्यक्रम में राजद जिलाध्यक्ष सुरेश मेहता के अलावे हुसैनाबाद के पूर्व विधायक शिवपूजन मेहता, कुटुम्बा के पूर्व विधायक व पूर्व पर्यटन रा०मंत्री सुरेश पासवान, औरंगाबाद के पूर्व जिला परिषद् के अध्यक्ष व पूर्व विधायक रेणु देवी के पति पंकज पासवान को भी आने का आयोजन समिति द्वारा प्रचारित किया जा रहा था। सुरेश मेहता तो देवरिया बाजार पहुंचे लेकिन कार्यक्रम में शामिल हुए वगैर वापस लौटे और शिवपूजन मेहता, सुरेश पासवान,पंकज पासवान तो नजर भी नहीं आए। सबसे ज्यादा तो चर्चा का विषय यह रहा कि लगभग चार घंटे तक चले कार्यक्रम में किसी वक्ताओं ने स्थानीय समस्याओं का जिक्र तक करना मुनासिब नहीं समझा जबकि देवरिया बाजार सहित पूरे प्रखंड में जनता समस्याओं से ग्रसित होकर कराह रही है। पेयजल संकट, सुखाड़, राशन वितरण में धांधली व मनमानी, योजनाओं में भयंकर लूट, सुखाग्रस्त ग्रामीणों को राहत के नाम पर आपदा प्रबंधन द्वारा दिए गए राहत राशि का वितरण में भयंकर लूट और उपर से अधिकारियों द्वारा जन शिकायत को नजरंदाज करते हुए बेलगाम अफ्शर शाही से त्रस्त है लेकिन न तो इन सवालों पर स्थानीय विधायक सह विधानसभा में सचेतक सत्तारूढ़ दल राजेश राम और नहीं भाकपा माले के विधायक व नेता गण बोल सके। जबकि कार्यक्रम में उपस्थित जनसमुदाय को काफी अपेक्षा था लेकिन निराशा हाथ लगा। कुछ लोगों से दबे आवाज में यह भी सुनने को मिला की स्थानीय विधायक से काफी उम्मीदें थी लेकिन वे केवल वोट के राजनैतिक आरोप प्रत्यारोप पर ही अपने संबोधन में बोलते रहे यही नहीं उपस्थित लोगों से यह भी कहते दबे आवाज में सुना गया कि भाकपा माले से भी लोगों को सबसे ज्यादा अपेक्षा था कि स्थानीय जनता के सवालों पर बोलते हुए कुछ ठोस बातों को रेखांकित करेगा लेकिन भाकपा माले से भी लोगों को निराशा हाथ लगा जबकि भाकपा माले व अन्य वामपंथी पार्टियों का पहचान भ्रष्टाचार व जनसमस्याओं के विरुद्ध संघर्ष का पहचान रहा है। लेकिन अब वह पहचान नहीं रहा और वामपंथी पार्टियों में भी सत्ता के नजदीक रह कर मलाई खाने का आदत बन रहा है जिससे गरीबों को वामपंथ से भी नफ़रत होने लगी है।