गोरैया दिवस के पूर्व संध्या पर गाजियाबाद से अनुराग भारद्वाज का विशेष रिपोर्ट
यह बात वर्ष 1999 की है जब होली से कुछ दिन पूर्व मैंने हमारे किचन चोंच में सूखी घास लिए गौरैया को आते हुए देखा। उसके घर की कामना को देखकर मन में एक कसक सी उठी की । क्यों नहीं कुछ किया जाए जिससे उसको बसेरा मिल सके जो कि मनुष्यो ने उनसे छीन लिया।

उसी वर्ष पहली बार एक मोटे बांस में छेद करके उचित ऊंचाई पर टांग दिया।
गौरैया ने उसका मुआयना तो किया पर उस वर्ष घोंसला नहीं बनाया। पर अगले साल एक सुखद आश्चर्य हुआ। उन बांस के छेद में से गौरैया के बच्चों की मधुर आवाज़ सुनाई दी। बस यही एक शुरवात थी जिसे धीरे धीरे बढ़ाकर करीब 650 घोंसले किया।
ऐसा प्रयत्न करके गाजियाबाद जैसे शहर में अपने घर की छत पर गौरैया संरक्षण को सफल बनाने वाले श्री निर्मल कुमार शर्मा जी आज हमारे बीच नहीं हैं। ह्रिदय रोग के चलते उन्होंने 23 नवंबर 2022 में आखिरी सांस ली।
उनके जाने के बाद उनकी पत्नी, बच्चे एवं बहू अब बागबानी एवं गौरैया संरक्षण में अपना योगदान करते हैं।
इस शहरीकरण के युग में आइए हम प्रेरणा लेकर अपना योगदान दें।
उनके द्वारा लिखा गया गौरैया संरक्षण पहल पर एक लेख।
मैं, निर्मल कुमार शर्मा, ‘गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा लेखन ‘गौरैयों एवम् अन्य जाति के पक्षियों को संक्षण करना और उनकी सेवा करना मेरे जीवन का परम् और एकमात्र उद्देश्य है,मैं मिनिस्ट्री ऑफ आई.टी एंड कम्यूनिकेशन से सेवानिवृत अधिकारी हूँ । गौरैयों के संरक्षण के लिए मैंने पिछले 20 वर्षों से इनके संरक्षण व संवर्धन के लिए अपनी दिनचर्या और अपने जीवन का अधिकतर समय लगाता रहा हूँ । अब तक मैं वैज्ञानिक तरीके से,शून्य लागत में,प्रयोग किए जा चुके गत्ते के डिब्बों, टिन के डिब्बों या प्लास्टिक के डब्बों से अब तक लगभग 550 घोसले बना चुका हूँ,जिन्हें अपने जीने, बरामदे और छज्जे के नीचे काफी ऊँचाई पर इनके दुश्मनों बिल्ली,गिलहरी,छुछुन्दर और नेवलों की पहुंच से दूर और आंधी-बारिस में भी सुरक्षित स्थान पर टांग दिया हूँ,इनके बैठने के लिए अपनी छत पर सूखी पेड़ की डालियों को लोहे के तार से बाँधकर पेड़ का रूप दे दिया हूँ,उनकी प्यास बुझाने और स्नान करने के लिए मिट्टी और प्लास्टिक के लगभग 10-12 छिछले पात्र अपनी छत पर रख दिया हूँ,गर्मियों में इनको खाने के लिए चावल के टुकड़े और जाड़े के मौसम में बाजरे के दाने बिखेर देता हूँ,छत पर या बारामदे में बिखेर देता हूँ,इनके सबसे बड़े दुश्मन बाज़ से इन्हें बचाने के लिए गुलेल और मिट्टी की सैकड़ों गोलियाँ सुखाकर रख लिया हूँ । मेरे यहाँ इस वर्ष फरवरी से अब तक लगभग 275 गौरैयों के नन्हें-नन्हें बच्चे पैदा हुए हैं , प्रातःकाल के समय में मेरे छत का दृश्य अत्यन्त नयनाभिराम और प्रकृति के मधुर धुन ताल ,गौरैयों की चहचहाहट से भरपूर रहता है,कहीं वे खाना खा रहीं होतीं हैं,कहीं वे अपने बच्चों को खिला रही होती हैं,कहीं स्नान कर रही होतीं हैं ,कहीं आपस में लड़ती-झगड़ती रहती हैं । गौरैयों के अतिरिक्त मेरे छत पर 34-35 अन्य प्रजाति की चिड़ियाँ जैसे हुदहुद,कोयल,डोव,हमिंगबर्ड, खंजन,छोटा बसंत,तोते,भुजंगा,दर्जिन चिड़िया ,तेलिया मुनिया आदि भी नित्य आतीं रहतीं हैं । मैंने गौरैयों के और अन्य पक्षियों की विडिओ ग्राफी,जो अक्सर मेरे छत पर आतीं हैं ,करके यूट्यूब पर अब तक 1180 के लगभग विडिओ अपलोड कर चुका हूँ,जिन्हें देश और विदेश के विभिन्न जगहों के लोग देख रहे हैं और उनसे प्रेरणा लेकर अपने घरों और बारामदों में इस विलुप्ति की कग़ार पर खड़ी हमारी पारिवारिक सदस्या गौरैया को बचाने के पुनीत और पवित्र कार्य को कर रहे हैं । परेशानी होने पर या सलाह के लिए मेरे यूट्यूब ,ईमेल और फोन से सलाह लेते हैं ।