गाजियाबाद से निर्मल शर्मा का आलेख
“फर्ज करो कोई “मुल्क ” न हो
न हो कोई ” मजहब “
फर्ज करो दुनिया में कहीं भी
ना हो कोई “सरहद “
फर्ज करो “इंसा ” को न हो
“तेरा-मेरा ” कहने की आदत
जो “धरती ” है वो सबकी हो
पानी – जंगल – पर्बत
फर्ज करो “बंदूक” न हो
और न हों “बम ” के गोले
फर्ज करो न उठते हों
ख्यालों में “नफरत के शोले “
फर्ज करो ना “जात-पात ” हो
ना ” रंग – रंग ” का भेद
फर्ज करो ना ” पैसा ” हो
ना “काला ना सफेद “
फर्ज करो न “जुर्म ” हो कोई
ना “पुलिस का डंडा” , ना “कैद “
फर्ज करो फर्ज करो
इस सपने को जरा “मर्जी ” दो
अपने ही जेहन को “प्यार ” सीखने की
एक जरा – सी अर्जी दो
मैं नहीं अकेला पगला यहीं
मुझ जैसे यहाँ “हजारों ” हों
फर्ज करो जो ना भी हों
वो सारे अपने “हमारे ‘ हों। “
धुंधले नीले बिंन्दु या Pale dot Blue के बहाने महान वैज्ञानिक और कालदृष्टा कार्ल सागन का एक कालातीत महान संदेश निम्नवत् है..
पूरे ब्रह्मांड में अरबों जीव-जंतुओं के सांसों के स्पंदन से युक्त इस एकमात्र धरती पर विश्वशांति,अमन-चैन,सुख-सूकून,अहिंसा, दया,परोपकार,मानवता,भाई-चारा,सहयोग, परस्पर प्रेम आदि सद् गुणों को समाहित करने वाली,सुप्रसिद्ध मानवतावादी युवा कवि,स्वानन्द किरकिरे लिखित इस मार्मिक कविता से भाव प्रवण कोई अन्य कविता शायद ही कोई अन्य लिखी गई होगी,लिखी भी गई होगी तो उसकी जानकारी मुझे अभी तक नहीं है !
इस ब्रह्मांड में जीवन के स्पंदन से युक्त इस धरती के अलावा इस पूरे ब्रह्मांड में रेडियो टेलिस्कोपिक यंत्रों द्वारा भी हमारी धरती के उस सहोदर ग्रह की खोज के लिए वैज्ञानिक दिन-रात एक किए हुए हैं,अनवरत अपनी आँखें इस अनंत ब्रह्मांड के सूदूरवर्ती स्थानों को खंगालने में लगे हुए हैं,जहाँ हमारे जैसे जीव-जन्तु और मनुष्य हों लेकिन अभी तक निराशा ही हाथ लगी है। इतना जरूर हुआ है कि सूदूर अंतरिक्ष में ऐसे तारामंडल जरूर मिले हैं,जो हमारे सौर मंडल से मिलते-जुलते जरूर हैं,वहाँ के ग्रहों की स्थितियां भी हमारी पृथ्वी जैसी ही हैं,जो अपने तारे की परिक्रमा ठीक उतनी ही दूरी से कर रहे हैं,जितनी दूरी से हमारी पृथ्वी अपने तारे मतलब सूर्य की परिक्रमा कर रही है,इसलिए इस धरती के वैज्ञानिक ये संभावना जरूर व्यक्त कर रहे हैं कि संभवतया वहाँ भी हमारी पृथ्वी जैसे जीवन हो ! बस इतना ही। लेकिन हमारे इस आधुनिकतम् विज्ञान के द्वारा बनाए तीव्रतम अंतरिक्ष यानों के लिए भी यह कभी संभव ही नहीं है कि वे वहाँ तक कभी भी पहुंच सकें,क्योंकि वे ग्रह हमारी धरती से लाखों-करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर हैं ! इसलिए इस पूरे ब्रह्मांड में हमारी धरती जैसी सभ्यता से मिलती-जुलती कोई सभ्यता से हमारी मुलाकात की संभावना फिलहाल असंभव है या बहुत ही क्षीण है !
सुप्रसिद्ध भौतिक और रसायन विज्ञानी तथा खगोलशास्त्री स्वर्गीय कार्ल सैगन के विशेष अनुरोध पर 14 फरवरी 1990 को वॉयेजर प्रथम अंतरिक्षयान द्वारा जब वह हमारी पृथ्वी से 6अरब किमी की दूरी पर था और तेजी से अनन्त ब्रह्मांड की अतल गहराइयों में सदा के लिए खो जाने के,विलीन हो जाने के लिए जा रहा था,उसी समय और उस स्थान से पृथ्वी की यह तस्वीर ली गई थी,जिसमें हमारी पृथ्वी एक अत्यंत धुंधली सी नीली सी,अत्यंत छोटे एक धूल के कण जैसे दिख रही है,इस फोटो में इस अकथनीय और अनंत बड़े तथा अतिविशाल ब्रह्मांड के बनिस्बत हमारी पृथ्वी एक नन्हीं,धुंधली बिन्दु के रूप में सूर्य के प्रकाश में पीली,हरी,लाल पट्टियों के बीच दिख रही है,ये रंगीन पट्टियाँ कैमरे के लेंस पर पड़ रही सूर्य की किरणों के प्रभाव से ऐसे दिख रहीं हैं,उस दृश्य को देखकर सुप्रसिद्ध भौतिक और रसायन विज्ञानी तथा खगोलशास्त्री स्वर्गीय कार्ल सैगन ने फरवरी 1990 में यह निम्नलिखित कालजयी वक्तव्य दिया था !
‘ब्रह्मांड इतना बड़ा है कि अगर सोचें कि ये केवल हमारे लिए है तो यह सोचकर मायूस हो जाएंगे कि हम बहुत सारी जगह का प्रयोग ही नहीं कर पा रहे ! उस बिंदु पर फिर से एक नज़र डालिए,वह हमारा घर है,हमारी धरती है,हर इंसान जिसे तुम प्यार करते हो,जिसे तुम जानते हो, जिसके बारे में तुमने सुना है,वह जो कभी पैदा हुआ है,उसने इसी बिंदु पर पूरा जीवन बिता दिया,हमारे सारे सुख-दुःख,हजारों धर्म और मान्यताएं,हर एक शिकारी,जांबाज़ और कायर, राजा और किसान,प्रेम में डूबा हर जवान जोड़ा, हर माता और पिता,उम्मीदों से भरा हुआ हर बच्चा और वैज्ञानिक,पढ़ाने वाला हर शिक्षक,हर भ्रष्ट नेता,हर सुपरस्टार,हमारे इतिहास का हर संत और पापी वहीं जीया,इस धरती पर मौजूद बड़े से बड़े शहर आदि सभी कुछ सूर्य की एक किरण में तैरते हुए धूल के उस कण पर ! इस विशाल ब्रह्माण्ड में हमारी पृथ्वी एक बहुत ही छोटी जगह है !
अनगिनत इंसानों की उन हत्याओं के बारे में सोचिए जो उन सेनापतियों और शहंशाहों ने की,ताकि अपनी शान और जीत में वे इस बिंदु के किसी छोटे से हिस्से के कुछ पलों के लिए मालिक बन सकें ! उन अनगिनत घोर और अकथ्य और क्रूर अत्याचारों के बारे में सोचिए जो इस बिंदु के एक कोने में रहने वाले लोगों ने किसी दूसरे कोने पर रह रहे अपने ही जैसे लोगों पर किए ! हमारी कितनी गलतफहमियां हैं,एक दूसरे को मार डालने का कितना उतावलापन है ! दूसरे इंसानों के प्रति कितनी नफरत है ! हम इंसानों के ढकोसले,हमारा घमंड,हमारा यह भ्रम कि समूचे ब्रह्मांड में हम लोगों का एक ख़ास स्थान है ! इन तमाम बातों को यह धुंधला प्रकाश बिंदु चुनौती देता है ! जबकि हकीकत और वास्तविकता यह है कि हमारा ग्रह ब्रह्माण्ड के इस घने से अंधेरे कोने में छोटा सा अकेला एक धब्बा मात्र है !
ब्रह्माण्ड की इस विशालता में ऐसा कोई संकेत नहीं है कि हमारी दुनिया को हमारी बुराइयों से बचाने के लिए दूसरे ग्रह से कोई अन्य सभ्य और समझदार प्राणी आएगा !अभी तक इस ज्ञात संपूर्ण ब्रह्मांड में अरबों तारों,ग्रहों और उपग्रहों में केवल पृथ्वी ही ऐसी एकमात्र ग्रह है जिसमें सांसों के स्पंदन से युक्त भरपूर जीवन है ! ऐसी दूसरी कोई जगह है ही नहीं,जहां निकट भविष्य में हम रह सकें !
शायद अभी यह भी संभव नहीं कि हम दूसरे ग्रहों को देखने भी जा पाएं ! तो उस स्थिति में वहां बसना फिलहाल हमारी पहुंच से अभी बहुत-बहुत दूर है ! या एकतरह से हम कह सकते हैं,यह बिल्कुल असंभव ही है ! हमें अच्छा लगे या न लगे,परन्तु अभी के वर्तमान समय के लिए केवल और केवल पृथ्वी ही वह जगह है,जहां हम रह सकते हैं,ऐसा कहा गया है कि खगोलविज्ञान एक विनम्र करने वाला और बेहतर इंसान बनाने वाला अनुभव होता है,हमारे घमंडों की,मूर्खता की हमारी इस छोटी सी दुनिया की इस तस्वीर से बेहतर शायद ही कोई और सबूत हो !यह मुझे एक दूसरे के प्रति और अधिक दयालु होने की जिम्मेदारी की याद दिलाता है और हमारे इस धुंधले नीले धब्बे को बचाने और संवारने की भी है,जो हमारा एकमात्र घर है। ‘

जीवन परिचय, वैज्ञानिक उपलब्धियां और कार्य
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कार्ल सैगन एक सुप्रसिद्ध खगोल शास्त्री,खगोल रसायनज्ञ और भौतिक विज्ञानी थे,उनका जन्म 9 नवम्बर 1934 को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर के ब्रुकलिन नामक जगह पर हुई थी। वे पृथ्वी से इतर ब्रह्मांड में जीवन की खोज के लिए सेटी नामक संस्था की स्थापना किए थे। वे अपने जीवन काल में विज्ञान संबंधित इंटेलिजेंस लाईफ इन द यूनिवर्स,यूएफओ ‘जः ए साइंटिफिक डिबेट,कम्युनिकेशन विद एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल इंटेलीजेंस,मार्स एंड द मांइड ऑफ मैन,कॉस्मिक कनेक्शनः ऐन एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल पर्सपेक्टिव, मर्मर्स ऑफ अर्थः द वायेजर इंटरस्टेलर रिकॉर्ड्स,द ड्रैगन ऑफ इडेनः स्पेकुलेशन ऑन द इवोलुशन ऑफ ह्यूमन इंटेलिजेंस ।
कॉसमॉस,द न्यूक्लियर विंटरः द वर्ल्ड आफ्टर न्यूक्लियर वार,कॉमेट,ए पाथ ह्वेयर नो मैन थॉटः न्यूक्लियर विंटर ऐंड इंड ऑफ आर्म्स रेस,पेल ब्लू डॉटः ए विजन ऑफ ह्यूमन फ्यूचर इन स्पेस जैसी आज से हजारों साल बाद आनेवाले भविष्य की सोच रखनेवाली 20 से ज्यादे अत्यंत परिष्कृत वैज्ञानिक शोधपरक, अन्वेषणात्मक पुस्तकों के लेखक तथा 600 से भी अधिक वैज्ञानिक शोधपत्र और लोकप्रिय लेख लिखे थे। उन्होंने 1980 के दशक में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बहुत ही लोकप्रिय टेलिविजन कार्यक्रम ‘कॉसमॉसः ए पर्सनल वॉएज यानी ब्रह्मांडः एक निजी यात्रा ‘नामक प्रोग्राम के प्रस्तुतकर्ता भी थे,जिसके इस दुनिया में अरबों की संख्या में श्रोता और दर्शक थे ! वे इस कार्यक्रम आधारित कॉसमॉस नामक अत्यंत लोकप्रिय व वैज्ञानिक आधार पर एक पुस्तक भी लिखे हैं।
उन्होंने शुक्र ग्रह के सतह का तापमान 500 डिग्री सेल्सियस होने की भविष्यवाणी रेडियों तरंगों की गहन जाँच करके बहुत पहले ही बता दिया था,जो 1962 में मेरिनर-2 अंतरिक्ष यान की शुक्र ग्रह पर पहुँचने पर बिल्कुल सही पाया गया,कार्ल सैगन ने ही सबसे पहले पता लगाया कि शनि ग्रह के चन्द्रमा टाइटन पर यौगिकों से निर्मित महासागर हो सकते हैं,आज इसको अंतरिक्ष यानों को शुक्र ग्रह पर भेजकर वैज्ञानिकों द्वारा सत्यापित किया जा चुका है,इसी प्रकार वृहस्पति ग्रह के एक उपग्रह पर पानी के महासागर होने की पुष्टि उन्होंने अपने प्रयोगों से बहुत पहले ही सिद्ध कर दिया था, जो बाद में अंतरिक्ष यान गैलीलियो द्वारा सत्यापित की गई, वे विज्ञान को सदा लोककल्याणकारी बना देना चाहते थे, इसीलिए उन्हें लोक कल्याण पदक पुरस्कार भी 1994 में प्रदान किया गया।
पुरस्कार
उनके अकथनीय वैज्ञानिक कार्यों के लिए सारे विश्व के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक,एकेडमिक व उच्चतम् शोध विश्वविद्यालयों व संस्थानों द्वारा 28 पुरस्कार प्रदान किए उदाहरणार्थ अपोलो एचिवमेंट पुरस्कार, होमर पुरस्कार, जॉन एफ केनेडी एस्ट्रोनॉट पुरस्कार, जोसेफ प्रिस्टले पुरस्कार, कोन्टास्टिन त्सोलोवस्की पुरस्कार, सोवियत कॉस्मोनॉट्स फेडरेशन पुरस्कार, पुलित्जर पुरस्कार,99वाँ ग्रेटेस्ट-अमेरिकन डिस्कवरी चैनल पुरस्कार आदि विश्व के सर्वोच्च लब्धप्रतिष्ठत पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया गया।
महामानव कार्ल सागान का इस धरती के समस्त मानव प्रजाति को एक संदेश संदेश
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ऐसे महान वैज्ञानिक ने इस अनंत और मनुष्य की कल्पना शक्ति से भी बड़े और विस्तार वाले ब्रह्मांड में एक अंधेरे कोने में एक धूल के कण सी भी छोटी पृथ्वी पर बसनेवाले मनुष्यप्रजाति के मिथ्या अहं,घमंड,दर्प,अभिमान, एक-दूसरे को मारने,हत्या करने के कुकृत्यों के लिए हजारों धार्मिक युद्धों,दो-दो विश्वयुद्धों को करने के बाद पचासों करोड़ों बच्चों, महिलाओं, सैनिकों और आमजन को मौत के घाट उतारने वाले राष्ट्राध्यक्षों को आइना दिखाने के लिए इस धरती से 6 अरब किलोमीटर की दूरी से 14 फरवरी 1990 को वॉयेजर प्रथम अंतरिक्षयान में लगे शक्तिशाली कैमरों का मुँह पृथ्वी की तरफ करने का अंतरिक्ष वैज्ञानिकों से अनुरोध किया, ताकि इतनी ही दूर से पृथ्वी की एक धुंधली छविवाली एक तस्वीर लेकर इस पर रहनेवाले आत्ममुग्धता के शिकार उन मनुष्यों को दिखाया जाय ताकि उन्हें समझाया जा सके कि जिस पृथ्वी पर तुम रहते हो,वह तक समूचे ब्रह्मांड की तुलना में कितनी निस्तेज और बौनी है !

कार्ल सैगन जैसे इस धरती पर कुछ दशकों के लिए आए महामानव ने इसीलिए इस धरती के एक अत्यंत धुंधले नीले बिंन्दु या Pale dot Blueधूल के कण जैसे फोटो खींचकर इस धरती पर बसे अरबों मानवों को ये विराट संदेश देना चाहते हैं कि तुम सभी धन के लिए,संपत्ति के लिए,अपने अहं के लिए,अपने राज्य के विस्तार के लिए,अपने कथित धर्म के विस्तार के लिए,अपनी शक्ति के मिथ्या प्रदर्शन के लिए इस धरती के दूसरे देश के या दूसरे छोर के ठीक अपने जैसे मानवों को भी,जो शांतिपूर्वक रह रहे थे,हत्या करने को उतावले हो रहे हो,वह सब कुछ व्यर्थ की बात है। क्या तुम इस धरती पर बसे सभी मानव धरतीपुत्र बनकर बगैर किसी धर्म, जाति,नस्ल,देश,राष्ट्र या राज्य की सीमा द्वारा विभाजित हुए ही इस ब्रह्मांड में बिल्कुल इकलौती अपनी माँ सदृश्य प्यारी,शस्य -श्यामला इस धरती पर बगैर लड़ाई-झगड़े के बगैर युद्ध के सुख-शांति से नहीं रह सकते !