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पानी के जलस्तर नीचे जाने और प्रशासनिक बदइंतजामी , जनप्रतिनिधियों के चुप्पी से जिला मुख्यालय से जिले के दक्षिणी क्षेत्रों में पेयजल संकट लोगों को कर दिया निंद हराम,

आलोक कुमार केन्द्रीय न्यूज डेस्क खबर सुप्रभात

औरंगाबाद जिला मुख्यालय से लेकर जिले के दक्षिणी इलाके खासकर जंगल व पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मी प्रारंभ होते ही पेयजल संकट गंभीर रूप लेने लगा है। बता दें कि जिले के दक्षिणी क्षेत्र खासकर मदनपुर, देव, बालूगंज, अम्बा, कुटुम्बा , नबीनगर का इलाका नक्सलियों का प्रभाव वाला इलाका है।

इन इलाकों में गर्मी प्रारंभ होते ही पेयजल संकट भिषण रुप लेने लगा है। पेयजल के लिए ग्रामीणों को काफी परेशानी से जुझना पड रहा है। यही हाल जिला मुख्यालय में है। जिला मुख्यालय के कई वार्डों में भी जल स्तर नीचे चले जाने से पेयजल संकट से जुझने लगे हैं। स्थिति यह है कि पेयजल संकट के अलावे अन्य बुनियादी सुविधाओं से बंचीत शहर से लेकर ग्रामीण लोग समस्याओं के मकड़जाल में बुरी तरह से फंसे हुए हैं। लेकिन अभी तक यदि इमानदार और पारदर्शिता पूर्ण विश्लेषण करेंगे तो यही स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है कि प्रशासनिक बदइंतजामी जनप्रतिनिधियों का चुप्पी ही सभी परेशानियों का मूल वजह है।देव प्रखंड के दुलारे, बनुआं , वरंडा रामपुर पंचायत में बदहाल शिक्षा, स्वास्थ्य और सिंचाई ब्यवस्था साबित कर रहा है कि जिला में जांच और फ्लोअप मीटिंग के नाम पर खानापूर्ति और सरकार के खजाने का चुना लगाने के अलावे और कुछ भी नहीं है। जनप्रतिनिधियों का चुप्पी साधने का मतलब की इसके लिए कहीं न कहीं ए लोग भी कम जिम्मेवार नहीं हैं।रोम जल रहा था और नीरो बंशी बजा रहा था का इतिहास औरंगाबाद जिले के देव प्रखंड के दुलारे बनुआं वरंडा रामपुर पंचायत के ताजा हालात दुसरा रहा है। नबीनगर के दरमी कला गांव हो या फिर दरमी कला गांव के इर्दगिर्द का इलाका सभी जगह स्वास्थ्य, शिक्षा व सिंचाई ब्यवस्था दम तोड रहा है लेकिन आज यहां के तथाकथित नीरो बंशी बजाने में मश्गूल हैं। मदनपुर के उत्तरी उमगा पंचायत हो या फिर घोड़ा डीहरी पंचायत या फिर डाल्टेनगंज, चरैया अथवा जमुनिया, गुलाब बीगहा का इलाका या फिर खिरियावां तथा सलैया का इलाका सभी जगहों का कमोवेश यही स्थिति है। अब सवाल यह उठता है कि यदि स्थिति यही रहा तो ग्रामीणों के बीच आखिर विकल्प क्या बचेगा और किस रास्ते को चुनेंगे और इसके लिए जिम्मेवार कौन होगा अंदाजा लगाया जा सकता है। सरकार भय और दहशत पैदा कर कुछ समय के लिए जनाक्रोश अथवा जनता की आवाज को दबाया जा सकता है लेकिन आखिरकार एक न एक दिन मुखर होगा और तब एक दिन सरकार और प्रशासन के लिए बड़ी भूल साबित होगा।

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