सुनील कुमार सिंह खबर सुप्रभात समाचार सेवा
मदनपुर क्षेत्र का उमगा तीर्थ क्षेत्र प्रकृति द्वारा निर्मित पर्यटन का वृहद् विहंगम केन्द्र है। कालांतर में यह क्षेत्र देवमुंगा राज के नाम से जाना जाता था। देवमुंगा राज के अंतिम शासक राजा भैरवेन्द्र नें देव गढ़ को फतह कर अपनी राजधानी देव को बनाया, तथा वहीं से शासन चलाना शुरू किया । लेकिन
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शुरुआत में देवमुंगा राज का शासन उमगा किला से ही चलाया जाता था, जैसा कि इसके इतिहास से ऐसी जानकारी मिलती है। आज भी उमगा पहाड़ के सटे पश्चिम में टीला नुमा किला का खंडहर देखा जाता है जो कि 5 2 बिघा में फैला हुआ है । किला से सटे पश्चिम में विशाल 5 2 विघा का तालाव जल से लबा लब भरा हुआ इस बात की आज भी गवाही देता दिख रहा है।
मेला क्षेत्र में प्रवेश करते ही भैसा सुर का स्थान मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि देवमुंगा राज में दुर्गा पूजा के समय भैंसा की बली यहाँ दी जाती थी। अब यह सांकेतिक बन कर रह गया है । मिट्टी के बना भैंसा की आकृति चढ़ा कर पूजा की जाती है। देव + उमंगा = देवमुंगा राज का निर्माण किया गया था। पर्वत पर सीढ़ियों से थोड़ी दूर चढ़ाई चढ़ने पर त्रेता युगीन विशाल पत्थर से निर्मित सूर्य मंदिर आज भी सीना तानें सनातन परंपरा की गवाही देता दिख रहा है । सूर्य मंदिर पुरब मुखि है । मंदिर के दरवाजे के ठीक सामने सनातन का धर्म प्रतिक गरुढ़ स्तंभ सीना तानें आज भी खड़ा है। सूर्य मंदिर से थोडी दूर तिखी चढ़ाई चढ़ने पर सहस्त्र लिंगी महादेव का मंदिर पश्चिम मुखी है। यहाँ एक विशाल शिव लिंग में एक हजार शिव लिंग निर्मित है जो भारत ही नहीं पुरे विश्व में दुर्लभ एवं एकाकी है।
थोड़ी दूर और उपर चढ़ने पर प्रकृति निर्मित कुंड़ दिखता है जो दर्शनार्थियों को पूजा करने का मुख्य जल श्रोत हुआ करता है । कुंड़ के सटे ही दसभुजी गणेश जी की विशाल प्रतिमा स्थापित है। यहाँ से थोड़ी दूर समतल पूर्व दिशा में जानें पर माँ उमंगेश्वरी भगवती का सिद्ध पीठ हजारो मन विशाल पत्थर के नीचे स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि जो भी व्याक्ति सच्चे मन से पूजा कर मन्नत माँगता है, वह जरूर भगवती पूर्ण करतीहै। यहाँ से सौ मीटर पूरब चलने पर एक छोटा शिव मंदिर ऊँच्चे टीले नुमा पत्थर पर निर्मित है। इसी मंदिर से दो सौ मीटर और पुरब जानें पर फुटलकी मठ में विशाल शिवलिंग स्थापित है।
यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि प्रकृति (ईश्वर) नें स्वयं अपनें हांथों से उमगा तीर्थ की रचना की है। जो भी नर सच्चे मन से बसंत पंचमी के सुअवशर पर आकर उमगा तीर्थ क्षेत्र में इन देवी – देवताओं का दर्शन -पूजन करता है तो वह दैहिक, दैविक एवं भौतिक संतापों से मुक्त होकर जीवन के अंतिम पहर में श्रीधाम में जगह पाता है।