कुटुम्बा (औरंगाबाद) चिडैया टांड से राजकुमार सिंह
हां यह सच है और इस चोरी को इस बार अखिलेश यादव या सपाइयों नें नहीं बल्कि भाजपाइयों ने किया है ! हां, हां उन्हीं भाजपाइयों ने किया है जो अपने को दिनरात राष्ट्रवादी, देशभक्त, भ्रष्टाचार मुक्त और ईमानदार कहते नहीं अघाते।
चलिये दिखाते हैं कहां चोरी हुई और जिस टंकी की चोरी हुई वह कितने का है। 1972 में बिहार के औरंगाबाद, गया और
झारखंड राज्य के पलामू जिले के किसानों को सिंचाई हेतु नहर से पानी देने का तत्कालीन केंद्र सरकार एक योजना बनाई और नहर, बांध तथा डैम बनाने का काम शुरू हुआ।
अक्सर जब किसी नदी को बांधकर नहर निकाला जाता है तब नदियों को दो जगह बांधा जाता है। एक जगह वहां बांधते हैं जहां से नहर को निकालते हैं और दूसरी जगह जहां पानी का बड़ा स्टॉक रखते हैं।
यदि आप दक्षिण बिहार के निवासी हैं तो एक आसान उदाहरण से समझ सकते हैं कि जैसे रोहतास जिले को सिंचित करने के लिये डेहरी ऑन सोन के पास सोन नदी को बांधा गया और फिर वहां नहरों का जाल फैलाया गया है। वर्षा अभाव की स्थिति में नहर में कभी पानी का अभाव न हो जाये इसके लिये डेहरी ऑन सोन से बहुत आगे रेहन्डम नामक जगह पर एक विशाल डैम का निर्माण किया गया है। नहरों में जब कभी खासकर रबी फसल के समय पानी की जब कमी हो जाती है तब रेहन्डम डैम से पानी छोड़ दिया जाता है और वह पानी नदी के रास्ते नहर तक आ जाता है।1972 में गया, औरंगाबाद तथा पलामू के खेतों की सिंचाई के लिये जो परियोजना बनी उसका नाम था उत्तर कोयल सिंचाई परियोजना। इस परियोजना में झारखंड के पलामू जिलान्तर्गत मोहम्मद गंज में कोयल नदी पर बांध का निर्माण अर्थात बैराज का निर्माण किया गया और वहां से नहर की खुदाई कर पलामू जिले के कुछ हिस्से से लेकर बिहार के औरंगाबाद और गया में नहरों का जाल बिछाया गया। गौरतलब बात यह है कि इसका जल संचय के लिये झारखंड के ही लातेहार जिले में बरवाडीह से 30 किलोमीटर आगे मंडल नामक जगह में वृहत्त डैम का निर्माण किया गया। नाम रखा गया, “मंडल डैम” ।
अस्सी के दसक आते आते नहरों का खुदाई हो गया और अस्सी के दसक में ही कुछ गांवों तक पानी पहुंच भी गया।
दुर्भाग्य यह रहा कि नहर बनने 40 साल बाद तक भी खेतों को भर पेट पानी नहीं मिल सका। भर पेट पानी की बात छोड़िये, अबतक इस नहर से औरंगाबाद के पूर्वी हिस्से से लेकर गया जिले के किस एक गांव तक पानी का एक बूंद भी नहीं पहुंच सका। आप कहेंगे, मैं टोंटी चोर के बाद टंकी चोर की कथा सुनाने वाला था और सुनाने कुछ और लगा।
थोड़ा धैर्य रखिये, बस वहीं आपको ले चल रहा हूं।
जब नहर बना, बराज बना तो इसका जल संचय के लिये बरवाडीह से 30 KM आगे बहुत ही सघन जंगल में पहाड़ों के बीच मंडल गांव के पास टंकी अर्थात जल संचय स्थल (डैम) का निर्माण किया गया और इसी टंकी का चोरी हो गया ! दुःखद तो यह है कि इस टंकी का निर्माण बेईमान और भ्रष्ट मानी जाने वाली कांग्रेस की सरकार की थी और टंकी का चोरी उसने किया जो अपने आप को भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्रवादी बताने में नहीं थकती।
1980 से 1984 के बीच डैम का निर्माण तो हो गया पर किसी कारणवश डैम में फाटक नहीं लग सका। अब फाटक नहीं लगा तो पानी का कैसे ठहराव हो, पानी का संचय कैसे हो ? सीधी सी बात है कि डैम में पानी नहीं रहेगा तब नहरों को पानी मिलेगा कैसे ?
अब राजनीति और चोरी यहीं से शुरू होती है। दशकों पहले साहित्य अकादमी से पुरस्कृत एक कहानी पढ़ी थी, “जानकी पुल”। कुछ ऐसी ही कहानी है मंडल डैम की जो उस कहानी को धरातल पर चरितार्थ कर देता है।
जानकी पुल कहानी की पृष्ठभूमि उत्तर बिहार का सीतामढ़ी है और मंडल डैम जो कहानी का जीवंत उदाहरण है वह दक्षिण बिहार आज झारखंड में लातेहार जिले का है।
जानकी पुल, आजादी के साथ ही शुरू हुआ एक सपने का पुल है। जब जब चुनाव आता है नेतावों के भाषण, वादे, गारंटी से लोग वशीभूत हो सपने देखने लगते हैं कि उनके जीवन का सबसे बड़ी समस्या का हल अब कुछ ही दिनों में हो जाने वाला है। लोग विविध प्रकार से खुशियां मानते, नेता जी की जयजयकार करते ढोल नगाड़े के साथ इस उम्मीद के साथ दिल्ली संसद भेज देते हैं कि अब कुछ ही दिन में जानकी पुल बन जायेगा पर आजादी के पचासों साल बीत जाने के बाद भी वह पुल सपना ही रह जाता है।
मंडल डैम की भी वही कहानी है, बस वो कहानी है और यह सच्चाई है। देश के नेता अमृतकाल में अमृत पी रहे है पर किसानों को उनके खेतों के लिये पानी तक नहीं दे रहे हैं।
औरंगाबाद के नेता जी नें किसानों से बधाई लेते संदेशों के साथ शहर को फिर शिलान्यास और जीर्णोद्धार का बैनर पोस्टरों से लाद दिया है। चुनाव आने वाला है। भोले भाले किसान फिर ढोल नगाड़ों के साथ नेता जी को संसद में भेजने की तैयारी कर रहे हैं पर उन्हें इस बात की तो जानकारी ही नहीं है कि बिना पानी टंकी के नलके में पानी नहीं आता ! अर्थात बिना डैम के भर पेट पानी नहीं मिल सकता। 2019 आम चुनाव के पहले 5 जनवरी 2019 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बरवाडीह तथा औरंगाबाद आये थे और दोनों जगह की सभावों में उनहोंने एक साल में फाटक लगाने और खेतों तक प्रचूर पानी पहुंचाने का गारंटी दिया था। गारंटी ही नहीं दिया, सरकार बनाने के बाद 1600 करोड़ रु भी स्वीकृत कर दिया।
1600 करोड़ रु स्वीकृत किया जिसमें 900 करोड़ रु की निकासी भी हो गई।
भारत सरकार की अधीनस्थ या कहें अपनी एक संस्था है ‘वैपकोस’ जो जमीन पर निर्माण कार्य करती है। वैपकोस को 1600 करोड़ में 900 करोड़ रु कब का मिल चुका पर उस पैसे का क्या हुआ आजतक किसी को कोई पता नहीं। और तो और 1600 करोड़ की योजना को मोदी जी ने 3200 करोड़ कर दिया है पर पता नहीं वैपकोस के रास्ते वह पैसा मंत्री जी के घर पहुंचता है या किसानों के खेतों में ?
टंकी चोरी यहीं हो गया !! अखिलेश यादव ने हजार दो हजार या लाख रु का टोंटी चोरी किया था पर यहां तो पूरा टंकी ही चोरी कर लिया गया वह भी 900 करोड़ का। पैसे का निकासी तीन चार साल पहले ही हो जाना और धरातल पर एक ईंट का न लगना चोरी ही तो है। फिलहाल औरंगाबाद के स्थानीय सांसद के प्रयास से उत्तर कोयल नहर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। किसान खुश हैं कि अब हमारी खेतों को भर पेट पानी मिल सकेगा पर उन्हें कौन बताए कि बिना टंकी के नलके में पानी नहीं आता।