नवादा लोकसभा के अंतर्गत 6 विधानसभा क्षेत्र में से दो नवादा एवं वरसलीगंज विधानसभा की चुनावी समीक्षा सह विश्लेषण अवलोकनार्थ प्रस्तुत किया जा चुका है

डीके अकेला का रिपोर्ट


नवादा जिले केअंतर्गत वारसलीगंज विधानसभा में सीधे पक्ष और विपक्ष के बीच में कांटे की लड़ाई जबर्दस्त आमने-सामने होने से दुनिया की कोई भी ताकत नहीं रोक पायेगी. यहाँ से दो अंडरवर्ल्ड के सरगना बाहुबली रंगदार व सरदार अखिलेश सिंह व अशोक महतो की धर्मपत्नी अरुणा देवी व कुमारी अनीता चुनावी महा-भारत के मैदान कमर कसके पुरे तामझाम के साथ मुस्तैदी से डटे हैं.कौन बाजी मार लेगा,यह कहना अभी मुश्किल है व बचकाना मर्ज के शिकार ही जैसा है. विगत हो,आजादी के बाद 90 के दशक तक वारसलीगंज विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस और सीपीआई के ही योग्य व सभ्य विचारधारा के प्रत्याशी विजयी होते रहे हैं. वारसलीगंज क्षेत्र में उस अंतराल में सिर्फ शांति सदा बरकरार नहीं रहा,बल्कि विकास को भी तेज गति प्रदान की गई. बेहद दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि 90 के दशक के बाद वारसलीगंज विधानसभा क्षेत्र शातिर अपराधियों और पेशेवर लम्पटों चंगुल में बुरी कैद हो सिसकियाँ भरने लगा.यहाँ जातीय उन्माद की धधकती ज्वाला में पुरे क्षेत्र धुं-धुं कर जलने लगा. इसकी लपट पूरे जिले को अपने आगोश में ले लिया. अगड़ी जाति के सरदार अखिलेश सिंह और पिछड़ी जाति के सरदार अशोक महतो के बीच जानी दुश्मनी के नाम पर दोनों के लम्पट गिरोहों की ओर से ख़ूनी जनसंहार का क्रूर अमनवीय खेल शुरू हो गया.इस दौर में तकरीबन दर्जनों जनसंहार हुए. उक्त दोनों अपराधी लम्पट गिरोहों के ख़ूनी टकराव में सैकड़ों निर्दोष बेकसूर, निरीह मासूमों की हृदयहीनता से मौत के घाट उतार दिया गया. सैकड़ों माँ – बहनों की मांग की अनमोल सिंदूर को उजाड़ डाला. हजारों नौजवानों को फर्जी मुकदमा में वर्षों जेल की घोर क्रूर यातनाएं झेलनी पड़ी. खेती चौपट हो गई.व्यवसाय ठप हो गया. दहशत के साये में लोग जीने को मजबूर हो गये थे.सूर्यास्त के बाद सड़क या बाजार में सिर्फ सन्नाटा पसरा दिखता था. उक्त ख़ूनी खेल में सैकड़ों निर्दोष लोगों की सिर्फ जान ही नहीं गई, बल्कि अरबों -खरबों रूपये की क्षति के साथ भयंकर मानसिक उत्पीड़न के शिकार भी होना पड़ा.उपरोक्त तमाम जघन्य घृणित काले करनामों के हिस्सेदार या कसूरवार कमोवेश अखिलेश और अशोक सरदार दोनों ही हैं.जनसंहार और लूट के मामले में ये दोनों गिरोह तटउपट नहले पे दहले हैं.सावन से भादो दुबर नहीं है.
बीजेपी और राजद प्रत्याशी


अरुणा देवी निवर्तमान विधायक अंडरवर्ल्ड के सरगना बाहुबली अखिलेश सरदार की घर्मपत्नी हैं. राजनीति इन्हें पूर्वजों की विरासत में नहीं मिली है.ठीक उसी तरह कुमारी विनीता अपराध जगत के सरगना अशोक महतो की घर्मपत्नी हैं. इन्हें भी कहीं विरासत में राजनीति नहीं मिली.अखिलेश और अशोक को राजनीति में पिछले दिनों किये गये ख़ूनी जनसंहार और काले कुकृत्यों के उपहार स्वरूप दोनों सरगनाओं को हिस्सेदारी मिली.दोनों के दामन में लगे नेकों काले दाग वाले लम्पट अपराधी को पार्टी बेहद बेशर्मी से उम्मीदवार बनाती है. सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की ढिंढोरा पीटने वाली भाजपा ने पोशपुत्र की तरह अखिलेश सिंह को गोद लेकर उसकी पत्नी को पार्टी टिकट देकर नमाजा.वहीं सामाजिक न्याय की दुहाई देने वाली राजद ने भी मात्र शक्ति संतुलन की दृष्टिकोण से या अपने बर्चस्व को स्थापित करने की वजह से पालतू कुत्ते की तरह अशोक महतो की पत्नी कुमारी अनीता को राजद की सिंबल देकर सुशोभित किया.हमाम में सबके सब नंगे मुंहवाये खड़ी है.इस परिस्थिति में मतदातागण काफ़ी धर्मसंकट में फंसे हैं. दोनों अपराधी एवं लम्पट चरित्र हैं,जो जगजाहिर और कड़वी सच है.इसी धर्मसंकट में फंसे मतदातागण ओहपोह पड़े मकर जाल में बुरी तरह फंसकर राहत की सांस लेने से बंचित हैं.इसके बावजूद इसी सांपनाथ और नागनाथ में से किसी एक को चुनना तो कोई शौक नहीं, बल्कि लाजमी या मजबूरी है.
दोनों प्रत्याशियों का जनाधार
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1.भाजपा प्रत्याशी अरुणा देवी : –
अरुणा देवी का मूल जनाधार अगड़ी समाज है. लम्बे समय तक राजनीति से जुड़े रहने के कारण समाज के हर तबके,जाति,वर्ग व संप्रदाय के बीच असर,प्रभाव व पकड़ से इंकार नहीं किया जा सकता है.साथ ही भाजपा व जदयू के प्रति प्रतिबद्ध लोगों का थोक वोट मिलेगा.वहीं पर कुमारी अनीता पिछड़ी जाति,राजद के प्रति जिनकी प्रतिबद्धता के अलावे महा- दलितों के बहुतायक वोट मिलने की पक्की उम्मीद है.अभी दोनों प्रत्याशी तटउपट नजर आ रहा है. हलांकि अशोक महतो द्वारा भूरा बाल को साफ कर देने और उसके भतीजे पूर्व विधायक द्वारा एक जाति विशेष को केंद्रित कर हथियारों की कमी नहीं रहने जैसी हिट स्पीच सिर्फ देकर मानवाधिकार विरोधी ही नहीं,बल्कि आदर्श चुनाव अचार संहिता का भी सरासर घोर उलंघन है.यह फिर से बुझी आग को सुलगाकर जातीय उन्माद भड़काकर अपने स्वार्थ हेतु निदोष मासूमों की बलि चढ़ाकर राजनीति की रोटी सेंकने के लिए आमानुषिक घटिया हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं. हलांकि इससे फायदा की जगह काफ़ी नुकसान ही उठाना पड़ेगा. इसका अवैध फायदा तत्काल अखिलेश सिंह को ही होगा. क्योंकि अखिलेश सिंह से विक्षुब्ध व विरोधी लोगों से लाभ उठाने के सुनहरे मौके से बंचित होकर हाथ धो बैठने के आलावा दूसरा कोई भी सार्थक विकल्प ही नहीं बचेगा.क्या भूराबाल साफ करने और हथियारों के बल फरिया लेने की चैलेंज देकर आपके गठबंधन के ही पार्टनर सतीश सिंह उर्फ़ मंटन सिंह को अपने पक्ष में क्या ला पाओगे ? तो क्या इसका अवैध फायदा अरुणा देवी को नहीं तो किसको मिलेगा ? आ बैल हमें मार वाली कहावत को चरितार्थ करके बड़प्पन का नहीं, बल्कि विशुद्ध मूर्खता का ही परिचायक है.
वारसलीगंज में दरअसल आज जीत की चाभी अब जिन्हें टिकट देकर छल प्रपंच के सहारे बैठा दिया गया वो सबसे बढ़िया कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी सतीश सिंह ऊर्फ मंटन सिंह के हाथों में है.अगर दिल एवं ईमानदारी से गठबंधन धर्म का पालन किया तो कुमारी अनीता की जीत की डंका बजेगी.वहीं अगर कहीं जाति-समाज के चक्कर,मोह या पचड़े में फंस गये तो अरुणा देवी की जीत को कोई नहीं टाल सकता है.फिर पुट्ठा पर हाथ भी रखने का साहस किसी के पास नहीं बचेगा.
नोट : – (” यह क्रम धारावाहिक जारी रहेगा.कल 25 अक्टूबर 25 को हिसुआ विधानसभा क्षेत्र का चुनावी समीक्षा सह मूल्यांकन प्रस्तुत किया जा रहा है. सच या अच्छा लगे तो इसे शेयर करना न भूलें.”)