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भाई वहन के प्रेम का प्रतिक है रक्षा वंधन I आपके समक्ष रक्षा वंधन से जुडी महत्वपूर्ण विवरण प्रस्तुत कर रहे हैँ I
*सनातन संस्कृति एवं महत्व-
९ अगस्त २०२५
श्रावण मास, पूर्णिमा
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रक्षा बंधन का महत्व सनातन संस्कृति में केवल एक भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संरक्षण, वचनबद्धता, धर्मपालन और शुभ संकल्प का प्रतीक है।


इसका संबंध कई पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक प्रसंगों से जुड़ा है।
इसका विस्तार से तीन भागों में उल्लेख करूँगा-
१. सनातन संस्कृति में दार्शनिक और धार्मिक महत्व1. संरक्षण का व्रत • “रक्षाबंधन” शब्द का अर्थ है रक्षा का बंधन। इसका तात्पर्य है कि कोई व्यक्ति या शक्ति किसी अन्य की रक्षा का संकल्प ले। • यह केवल भाई-बहन के बीच नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य, राजा-प्रजा, देवता-भक्त या मित्रों के बीच भी हो सकता है। 2. *संकल्प और विश्वास* • इसमें धागा (राखी) संकल्प सूत्र का प्रतीक है।
जैसे यज्ञ में संकल्प करते समय सूत्र बाँधा जाता है, वैसे ही रक्षा सूत्र बाँधना एक धार्मिक वचन है।• यह सूत्र मन, वचन और कर्म से रक्षा का वादा करता है। 3. *ऋतुओं और पर्वों का संकेत* • यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को आता है, जो वर्षा ऋतु के मध्य में है।
यह समय नवीन ऊर्जा, शुद्धिकरण और रक्षा के संकल्प के लिए उपयुक्त माना जाता है।• वैदिक काल में इस दिन ब्राह्मण यजमान की कलाई में रक्षा सूत्र बाँधकर उसका कल्याण और आपदा से सुरक्षा का आशीर्वाद देते थे।
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२. पौराणिक मान्यताएँ और कथाएँ-
(क) इन्द्र-इन्द्राणी की कथा –
ऋग्वैदिक प्रसंग
• भविष्य पुराण और ऋग्वेद के कुछ सूक्तों में उल्लेख है कि जब देवराज इन्द्र असुरों के साथ युद्ध में कमजोर पड़ गए, तब उनकी पत्नी इन्द्राणी (शची) ने रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बनाया और इन्द्र के हाथ में बाँधा।• इस सूत्र में मंत्रोच्चार के साथ शक्ति और विजय का आशीर्वाद निहित था।
इसके बाद इन्द्र ने युद्ध में विजय पाई।• यह बताता है कि रक्षा सूत्र आध्यात्मिक शक्ति और दिव्य संकल्प का प्रतीक है।
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(ख) श्रीकृष्ण-द्रौपदी की कथा – महाभारत
• हरिवंश पुराण और महाभारत के कुछ अंशों में उल्लेख है कि एक बार श्रीकृष्ण के हाथ में शिशुपाल वध के समय चोट लगी और रक्त बहने लगा।• द्रौपदी ने अपनी साड़ी का किनारा फाड़कर कृष्ण के हाथ में बाँध दिया। • श्रीकृष्ण ने इसे रक्षा बंधन का रूप मानकर जीवनभर द्रौपदी की रक्षा का वचन दिया। • इसी का परिणाम था कि चीरहरण के समय कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाई।
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(ग) राजा बलि और लक्ष्मीजी की कथा – भागवत पुराण व पद्म पुराण• वामनावतार की कथा के अनुसार, जब भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग भूमि माँगी और फिर उसे पाताल भेजा, तब लक्ष्मीजी ने ब्राह्मणी वेश में जाकर बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधा। • बदले में बलि ने उसे भाई के रूप में वरदान दिया और भगवान विष्णु को लौटने की अनुमति दी। • इससे स्पष्ट होता है कि रक्षा बंधन धर्म, वचन और बंधुत्व का भी प्रतीक है।
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(घ) यम और यमुनाजी की कथा• भविष्य पुराण में कथा है कि यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने हर वर्ष आते थे।
यमुनाजी ने उनके हाथ में रक्षा सूत्र बाँधा और यम ने वचन दिया कि जो भी बहन अपने भाई को इस दिन राखी बाँधेगी, उसका भाई दीर्घायु और सुखी रहेगा।• इस कथा से रक्षा बंधन दीर्घायु, सुख और समृद्धि का प्रतीक बन गया।
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३ .वर्तमान सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व1. *भाई-बहन का संबंध मजबूत करना — यह प्रेम, विश्वास और कर्तव्यबोध पर आधारित है।* 2. *समाज में आपसी सौहार्द — पहले यह केवल परिवार तक सीमित नहीं था; पड़ोसी, मित्र और गुरु-शिष्य भी यह बंधन बाँधते थे।* 3. *स्त्री-पुरुष के बीच सम्मानजनक संबंध का प्रतीक — यह बताता है कि समाज में स्त्री की रक्षा केवल रिश्तेदार ही नहीं, बल्कि सभी धर्मपरायण पुरुष का दायित्व है।* 4. *सैन्य और राजकीय परंपरा — पुराने समय में महिलाएँ सैनिकों और राजाओं को भी रक्षा सूत्र बाँधकर आशीर्वाद देती थीं।*
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का संक्षेप कहना है की रक्षा बंधन सनातन संस्कृति में एक सुरक्षा, वचनबद्धता और पवित्रता का उत्सव है, जिसकी जड़ें वैदिक मंत्रों, पुराणों की कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं में हैं
यह केवल भाई-बहन के बंधन का पर्व नहीं, बल्कि धर्म और रक्षा के सार्वभौमिक सिद्धांत का उत्सव है।