बंदियों की बदतर स्थिति

खबर सुप्रभात सामाचार सेवा

जेल से बाहर समाजिक एवं राजनैतिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, साहित्यकारों एवं गरीब ग्रामीण जनता जो अपराध, भ्रष्टाचार और तंत्र के विफलताओं , बेलगाम होते पुलिस एवं सिविल सेवा के अधीकारी और कर्मचारी, भ्रष्टाचार के दरिया में गोता लगा रहे छोटे -बडे जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध आवाज बुलंद करने अथवा लिखने पर एक षड्यंत्र के तहत लगातार

आलोक कुमार संपादक सह निदेशक खबर सुप्रभात सामाचार सेवा

हो रहे फर्जी मुकदमा और टेबल वर्क अनुसंधान कर फर्जी गवाह ब्यवस्था कर जेल के सलाखों में भेजने का मानसिकता के बावजूद यदि बिहार सरकार कानून का राज और सुशासन का ढिंढोरा पीट रहा है तो आखिर इस तरह के फर्जी दावे से उब चुके लोगों के पास आखिरी विकल्प क्या हो सकता है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। क्या जब तथा कथित लोकतांत्रिक व्यवस्था और लोक कल्याणकारी राज्य के विरूद्ध आम जनता बागी बनकर हथियार उठाने के लिए बेवस और लाचार नहीं होगा? और जब बेवस और लाचार होगा तो इसके लिए जिम्मेवार कौन होगा इसका भी मूल्यांकन और विष्लेषण करना सत्ताधारी और विपक्ष को मौलिक कर्तव्य नहीं बनता है। क्या सत्ताधारी दल और विपक्षी दलों को केवल वोट बैंक के हिसाब से कार्य करने का जिम्मेवारी है या फिर आम सरोकार से जुड़े मुद्दों पर बहस और कार्यशाला आयोजित करने का भी जरूरत है? यदि सत्ता और अधिकारी निरंकुश हो जाए और विपक्ष भी गुंगा और बहरा बन जाये तो फिर यह नहीं कहा जा सकता है कि राज्य में सिविल वार के लिए एक बेहतर स्पेस तैयार हो रहा है? जेल में बंद एक विधायक रीतलाल यादव ही नहीं बल्कि कई वैसे लोग हैं जिसे वर्तमान ब्यवस्था ने इच्छा मृत्यु और बागी बनने के लिए लचार और बेवस कर रहा है जो सरकार और ब्यवस्था के लिए एक दिन बड़ी भूल साबित हो सकता है। वैसे तो पुरे बिहार प्रदेश में आज तंत्र फेलियर हो चुका है तथा नौकरशाह से लेकर छोटे -बडे जनप्रतिनिधि तक उपरोक्त हालात के लिए जिम्मेवार हैं लेकिन यदि औरंगाबाद में एक नजर देखा जाए तो यह साबित करेगा कि सचमुच में बेहतर बिहार बनाने का दावा और परिकल्पना मात्र छलावा और झांसा है।