केन्द्रीय न्यूज डेस्क खबर सुप्रभात समाचार सेवा
हमीदनगर पुनपुन बराज परियोजना के अवर प्रमंडल पदाधिकारी को बधाई। आपने मुझपर फर्जी मुकदमा कर अपनी नौकरी बचा ली। हंसता-खिलखिलाता आपका परिवार तो आनंदमय जीवन जी लेगा। इसलिए कि आपकी आमदनी में मासिक वेतन के अलावा ……..जुड़ा है। लेकिन मेरा और मेरे परिवार का क्या होगा, कभी सोचा है आपने।
मेरा परिवार ना तो कमीशन पर जीता है और ना ही मासिक

वेतन पर। फिर भी, सच की आवाज दबाने के लिए फर्जी मुकदमा। इस मुकदमें से मुझे जो शारीरिक, मानसिक क्षति होगी, उसकी भरपाई कैसे होगी? लोकतांत्रिक हूं। संवैधानिक मूल्यों पर भरोसा है। लडूंगा। जीतूंगा।
किसान हूं। हर संकट में जीना जानता हूं। मेरी मुस्कुराहट किसानों को हौंसला देता है और किसानों का समर्थन मुझे संघर्ष करने की ताकत। बहरहाल, उपहारा थाने में मुकदमा दर्ज कराते ही आपका काम खत्म। पुलिस जांच करेगी और न्यायालय इंसाफ। बावजूद इसके आपसे जानना चाहता हूं कि जिन सवालों के साथ परियोजना का काम रोका गया था, क्या उसका समाधान हो गया? बिना समस्या का समाधान किये किस आका के इशारे पर आपने काम शुरू करवा दिया। जिलाधिकारी तो गोह और हमीदनगर में आयोजित कैंप में आये थे। उस कैंप में हुआ क्या? क्या उन समस्यायों पर विचार हुआ, जिसकी वजह से परियोजना 20 वर्षों से लंबित है? किसान क्यों नहीं पहुंचे?
28 अप्रैल को नीरपुर में कैंप आयोजित हुआ। दिनभर किसान कैंप में बैठे रहे। आपको इस बात की जानकारी है कि बिना कागजात के भूअर्जन अधिकारी नीरपुर पहुंच किसानों का समय बर्बाद किये! क्या परियोजना के नाम पर खानापूर्ति करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई सुनिश्चित करवायेंगे आप? अब देखना है तीन मई को हमीदनगर में आयोजित कैंप में क्या होने वाला है? नहीं जानकारी है तो मैं आपको बताता हूं। यहां भी खानापूर्ति ही होगी। किसानों के बीच त्रुटिपूर्ण भुगतान सुधारने का आश्वासन दिया जायेगा। आज के सर्किट रेट से चार गुणा अधिक दाम देने पर कोई विचार नहीं होगा। हिम्मत तो बकाश्त जमीन का रैयतीकरण ही उस दिन करवा दें। किसानों का सरकार के प्रति भरोसा जागेगा। परियोजना का काम 20 वर्षों से लंबित है। गुनाहगार कौन है-“आप जैसा निर्लज्ज अधिकारी या फिर हम जैसा किसान!” जिस बागीचा का दाम अधिकारियों ने करीब तीन लाख रुपये लगाया, उसी बागीचा का दाम प्राधिकार 93 लाख लगाता है। फिर भी शर्म नहीं आती, मुझपर मुकदमा दर्ज करवाने में। क्या हर किसान प्राधिकार जायेगा, तभी उसे न्याय मिलेगा? लंबे समय से लंबित परियोजना, फिर भी पुनर्वास का अबतक निर्णय क्यों नहीं? क्या उन लोगों को पुनपुन के पानी में डूबाकर मार देंगे, तब आपका कलेजा शांत होगा। हमीदनगर के एक किसान को सात लाख रुपये मुआवजा देकर सात बीघा जमीन कब्जा लिया गया है। क्या इस बात की जानकारी आपको नहीं है? सरकारी दस्तावेज में वर्ष 1981 से पूरा इलाका सिंचित है, फिर भी बंजर जमीन पर बना NTPC की तरह हमीदनगर परियोजना के लिए अधिग्रहित जमीनों का दाम क्यों नहीं लगाया गया? क्या अपनी ही जमीन के दाम के लिए किसानों को पुलिस की गोलियां खानी पड़ेगी?
एकतरफा कानून रौंदने वाले सत्ता संरक्षित अपराधियों!
धरती का सीना चीरकर अन्न उपजाते हैं किसान। इन्हें मत छेड़ना। महंगा पड़ेगा। मामले को लेकर कोर्ट चला गया तो मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगे। ठेकेदारों से मिलकर परियोजना लंबित करने वाले बेशर्म अधिकारियों से मेरा सवाल है कि वर्ष 2005 में जिस परियोजना का प्राक्कलित राशि मात्र 98 करोड़ रूपये थी, उसी परियोजना को मात्र पांच वर्ष बाद ही मार्च, 2010 में करीब छह सौ करोड़ रुपये कैसे हो गया? फिर किसानों के जमीन के दाम क्यों नहीं बढ़े?
बहरहाल, किसान हित की बात करना सरकारी काम में बाधा डालना है तो डंके की चोट पर कहता हूं-“हां, मैंने काम रुकवाया है तटबंध का।” आज के सर्किट रेट से किसानों को मुआवजा नहीं दिया गया, त्रुटिपूर्ण भुगतान का समाधान नहीं हुआ, बकाश्त जमीन की रैयतीकरण नहीं हुआ तो आगे भी काम शुरू नहीं होने दूंगा।
मैं चुनौती देता हूं जिला प्रशासन को कि हिम्मत है तो दिखाइये जज्बा। जिस तन्मयता के साथ ठेकेदारों के लिए प्राक्कलित राशि बढ़ाई जा रही है, उसी तन्मयता के साथ किसानों का सर्किट रेट से चार गुणा अधिक प्रपोजल सरकार को भेजने की हिम्मत दिखायें। ठेकेदारों के लिए महंगाई, महंगाई होती है और किसान के लिए….. यह दोहरी नीति नहीं चलने देंगे। मुझे तो पता ही है कि आतताइयों ने महात्मा गांधी को गोलियों से भूना। संवैधानिक हक मांग रहे बिहार लेनिन अमर शहीद जगदेव बाबू को भरी सभा में गोलियों से छलनी कर तड़पा-तड़पाकर मारा गया। धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की बात करने वाले आदरणीय लालू जी को फर्जी मुकदमों में फंसाकर संसदीय राजनीति से दूर किया गया। इंसानियत, करूणा और मानवता का पाठ पढ़ाने वाले ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया। सुकरात को बिष पिलाकर मारा गया। फिर मैं किस खेत की मूली हूं कि यह बेईमान व्यवस्था मुझे परेशान नहीं करेगी! मैं सत्ता संरक्षित हर तरीके के अपराध का विरोधी रहा हूं, आगे भी रहूंगा। सरकार के पास एक ही रास्ता है या तो गुंडों से मिलकर मेरी हत्या करवा दे या फिर फर्जी मुकदमों में फंसाकर जेल में डाल दे। गलत का विरोध करता रहूंगा।इधर बिहार सरकार में पूर्व राज्यमंत्री रहे रामेश्वर यादव ने मुकदमा का उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग बिहार सरकार से किया वहीं पीयूसीएल के गया जिला महासचिव वेदप्रकाश ने किसानों पर दमनकारी नीतियों के तहत किसानों पर दर्ज मुकदमा को वापस लेने के लिए जिला प्रशासन व राज्य सरकार से किया है।