केन्द्रीय न्यूज डेस्क खबर सुप्रभात समाचार सेवा
मुस्लिम तुष्टीकरण हेतु राजकरण में शामिल सभी पार्टियों के नेता अफ्तार आयोजन की होड़ में लग चुके हैं। कभी कांग्रेस तो कभी राजद तो कभी जदयू तो कभी और दलों की आफ्तार पार्टियाँ रोज आयोजित हो रही हैं। लगता है पुरे भारत की राजनीतिक पार्टियाँ चुनाब रूपी समुद्र को पार

उतरनें के लिए अफ्तार रूपी नाव की सवारी करना जरूरी समझ रहे हैं। लेकिन उन्हें यह भी तो पता होना चाहिए कि विशाल एवं गहरे समुद्र में ऊँच्ची -ऊंच्ची लहरें भी उठती रहती है, जो सफर को मुश्किल भी बना देती हैं । अभी हाल में ही कई इस्तामिक संगठनों के उल्ले माओं नें व्यान देकर नितीस कुमार, चिराग पासवान एवं चंद्र बाबू नायडू को इफ्तेहार पार्टी में शामिल नहीं करनें की खुलेआम ऐलान भी किया है। कारण बताया गया है संसद के अगामी सत्र में बफ्फ बोर्ड से संबंधित विधेयक को पास नहीं होने देने के पक्ष में वोट करनें की । एन.डी.ए. में शामिल ये तीनों घटक दल बफ्फ बिल के पास होने में बिरोध करेंगें, तो इफ्तेहार पार्टी में शामिल होंगे और यदि समर्थन करेंगे तो इफ्तेहार पार्टी में इन तीनों दलों को शामिल नहीं किया जायेगा ।
अब भारत की राजनीतिक संदर्भ में एक बात तो पक्की हो गयी कि सत्ता की कुर्सी यदि चाहिए तो मुस्लिम वोट साधने के लिए इन्हीं के हिंसाब से ही चलना होगा। वर्ना सता लुड़ो का खेल बन चुका है । अफ्तार की सीढ़ी से उपर चढ़ना है कि बिरोधी बनें साँप के डसने से नीचे उतरना है। भारत की एक सौ चालिस करोड़ की आबादी में से सिर्फ आधी से कम आबादी लगभग 40 करोड़ की मुस्लिम आबादी ही राजकरण के नेताओं को अपने मक्कड़जाल में फंसा कर रखनें की मंशा पाल चुके हैं। उन्हें यह समझ में आना चाहिए कि बहुसंख्यक आबादी का प्रतिनिधित्व हिन्दू जाति करता है जो एक सौ करोड़ के आस – पास है। हिन्दूओं का भी कई पवित्र त्यौहार गणेश उत्सव, होली, दशहरा, दिपावली, रामनवमी, मकर संक्रांति भी साल में आते रहते हैं। किसी भी राजनीतिक दल के जातिय सियासी खिलाड़ियों नें ये तो कभी भी नहीं सोंचा होगा कि इनके त्यौहार पर भी इफ्तेहार की तरह दाबत देकर सरीक करें। आखिर भारत का राजनैतिक दशा – दिशा किन परिस्थितियों से गुजर रहा है यह काफी विचारणीय एवं चिंताजनक है।