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संवेदना को संवेदना ही रहने दें..जातीय रंग देना निंदनीय : पुरूषोत्तम

अम्बुज कुमार खबर सुप्रभात समाचार सेवा

भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष पुरूषोत्तम सिंह ने कहा कि होली के रंग उस वक़्त फीके पड़ गए, जब औरंगाबाद शहर में एक दुखद हादसे में एक किशोरी की जान चली गई। परिवार गम में डूबा है, लेकिन कुछ लोग तो जैसे इस मौके की तलाश में ही बैठे थे. राजनीति की रसोई जलाई, आग तापी और अब मुद्दे की रोटियां सेंकने लगे। कोई संवेदना जताने आता है, तो

कोई वीडियो बनवाने। ढांढस बंधाने के नाम पर कैमरों के आगे बयानों की आतिशबाजी हो रही है। अब तो हाल ये है कि कौन पीड़ित है और कौन ‘पीड़ित नेता’—समझना मुश्किल हो गया है! हालांकि जिले के अन्य जगहों पर भी दुःखद घटनायें हुई है लेकिन न तो कोई उन पीड़ित परिजनों से मुलाक़ात के लिए जा रहा और न ही उन घटनाओं को लेकर किसी की आंखों से आंसू ही निकल रहे। लेकिन यही काफी नहीं था। कुछ लोगों ने सोचा, “सिर्फ राजनीति क्यों करें, जातीय तड़का भी मार देते हैं!” सो, अब समाज को बांटने का भी एक नायाब अवसर खोज लिया गया। इस हादसे को जातीय रंग दिया जा रहा है। मुद्दा क्या था, इससे किसी को मतलब नहीं, बस अपने-अपने चश्मे से रंग देखने का हुनर आजमाने लगे। पुलिस प्रशासन अपना काम कर रहा है। पूरी उम्मीद है निष्पक्ष तरीके से जांच करते हुए उचित कार्रवाई की जाएगी। कम से कम तब तक के लिए लोगों को शांति बनाये रखना चाहिए। लेकिन यहां लोग खुद जज बन गये और फैसला सुनाने लगे। यही सही नहीं है। भारतीय जनता पार्टी पूरी ताकत के साथ आज पिछड़ों, दलितों को मुख्यधारा में लाने में लगी है। पूरा शहर इस घटना से दुखी है और न्याय चाहता है। पर जो कुछ तथाकथित नेता एक बेटी की मौत में भी वोट की फसल काटना चाह रहे हैं। वे कभी सफल नहीं होंगे। बस यही अपील है कि कृपया संवेदना को संवेदना ही रहने दें, इसे सनसनी में न बदलें। परिवार पहले ही दुःख में डूबा है, उन्हें बस साहस दें। धैर्य दिलाएं।
भगवान पीड़ित परिवार को दुख सहने की उन्हें शक्ति प्रदान करे।