औरंगाबाद ख़बर सुप्रभात समाचार सेवा
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर गोह विधानसभा क्षेत्र में भी सरगर्मी तेज होने लगी है। जबकि अभी कुछ वैसा देखने के लिए नहीं मिल पा रहा है, पर छोटे छोटे कार्यक्रमों के माध्यम से संभावित उम्मीदवार अपना प्रचार प्रसार तो कर ही रहे हैं। उनलोगों की मनोभावना को जनता भी महसूस करने लगी है। वैसे तो चाहे गोह विधानसभा क्षेत्र से जितने भी

उम्मीदवार मैदान में आ जाएं, परंतु यह स्पष्ट है कि यहां मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के उम्मीदवारों के बीच ही होना तय है। विशेष परिस्थिति में ही त्रिकोणात्मक मुकाबला की संभावना बन सकती है। शेष जो भी उम्मीदवार चुनाव मैदान में आएंगे, उनको तो जमानत बचाने के भी लाले पड़ जाएंगे। उन्हें तो बस अपनी अपनी जाति के ही कुछ वोटों से संतोष करना पड़ेगा। वैसे अभी इस विधानसभा क्षेत्र पर महागठबंधन की ओर से राजद का कब्जा है। जिसके विधायक भीम सिंह यादव हैं। वैसे इस बार भी भीम सिंह यादव को ही चुनाव मैदान में उतरने की प्रबल संभावना है। जबकि अन्य राजद कार्यकर्ता भी तो हाथ पांव मारेंगे ही।भीम सिंह यादव का अपना क्षेत्र तो बारुन रहा है,पर वहां से डब्लू सिंह को आ जाने से भीम सिंह यादव के लिए वहां कठिन हो गया है। वैसे गोह विधानसभा क्षेत्र में यादव जाति की संख्या भी सर्वाधिक है। इसलिए भीम सिंह यादव के लिए यह सुकून भरा ही होगा। अगर भीम सिंह यादव के क्रियाकलापों को देखा जाए, तो चुनाव जीतने के बाद उनके क्रियाकलाप बहुत प्रभावशाली नहीं रहे। वैसे उन्हें कई जातियों के वोट मिले थे, पर सभी जाति के लोगों से वे मेलजोल नहीं रख सके। अपनी जाति में, उसमें भी कुछ नौजवानों के ही चंगुल में फंसे रहे।इनका लाभ कुछ लोगों को ही मिलता रहा। जिससे इनकी जाति में भी क्षोभ है। अगर यादव जाति में बिखराव हो जाता है, तो भीम सिंह यादव के लिए रास्ता कठिन हो सकता है। परन्तु वैसा लग नहीं रहा है।यह सच है कि भीम सिंह यादव को जिन्होंने भी वोट दिया था, वे स्वाभाविक रूप से एनडीए के विरोधी थे। अगर वैसे लोग इस बार भीम सिंह यादव के विरोध में एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में वोट कर देंगे, आने वाले एनडीए उम्मीदवार उन्हें अपना पक्ष में करने में कितना सफल हो पाते हैं,यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
एनडीए गठबंधन से दो दिग्गज उम्मीदवार हैं—-भाजपा से मनोज कुमार और रालोमों से डॉ. रणविजय कुमार। दोनों एक ही जाति से आते भी हैं और दोनों इस क्षेत्र के लिए प्रबल दावेदार भी हैं ।क्योंकि दोनों इस क्षेत्र से विधायक भी रहे हैं। इस क्षेत्र के सिवा उन दोनों के पास भी कोई विकल्प नहीं है। परंतु टिकट तो एक ही को मिलेगी। वैसे यह कहा जा रहा है कि अगर भाजपा के मनोज कुमार को टिकट मिल जाती है, तो रालोमो के डॉ. रणविजय कुमार किसी भी कीमत पर मानने वाले नहीं हैं। भले उन्हें फिर पार्टी बदलनी क्यों न पड़े।पिछली बार जैसे वे पार्टी बदलकर चुनाव मैदान में कूदे थे,उसी प्रकार इस बार भी किसी न किसी रूप में वे तो चुनाव मैदान में कूदेंग ही। क्योंकि उनके लिए राजनीति मर जाने का डर सता रहा है। दूसरी तरफ अगर डॉ. रणविजय कुमार को टिकट मिल जाती है, तो संभव है कि मनोज कुमार को भाजपा कहीं दूसरी जगह एडजस्ट करने का आश्वासन देखकर मना लेगी।पर यह लगता नहीं है। अगर मुकाबला त्रिकोणीय होगा, तो महागठबंधन की जीत तय मानी जाएगी। नहीं तो फिर महागठबंधन और एनडीए के बीच कांटे का टक्कर देखने के लिए मिल सकता है। वैसे गोह विधानसभा क्षेत्र से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भाकपा माले वाले भी दावेदारी पेश कर सकते हैं, यह बात अलग है, परंतु उनकी कोई संभावना दिखाई नहीं देती।क्योंकि दोनों का जनाधार बहुत अच्छा नहीं है। जहां तक अन्य राजनीतिक पार्टियों का सवाल है, तो जिसने भी छोटी बड़ी राजनीति पार्टी बनाई है, वह तो अपना उम्मीदवार देंगे ही। जो कुछ कुछ वोट काट सकेंगे। जिनका कोई असर मुख्य प्रतिद्वंद्वियों पर पड़ने वाला नहीं है। वैसे फिलहाल जनसुराज पार्टी की चर्चा चारों तरफ के चल रही है, तो निश्चित रूप से जनसुराज पार्टी से भी यहां उम्मीदवार आएंगे ही ।वैसे मुख्य चेहरा तो अभी सामने नहीं आए हैं, परंतु गोह के ही डॉ. आर यू कुमार जिनके अंदर बहुत सालों से विधायक बनने की बेचैनी हिचकोले मार रही है। उसी की आस में वे कभी राजद में रहे, तो कभी जदयू में रहे। जब उधर से उम्मीद समाप्त हो गई, तो फिलहाल जन सुराज पार्टी में आ गए हैं। इसलिए अधिक उम्मीद यही की जा रही है कि डॉक्टर आर यू कुमार को टिकट मिल सकती है। लेकिन दावेदारी पेश करने वाले तो उस पार्टी में भी अन्य लोग होंगे ही। बहुजन समाज पार्टी का कोई वैसा वजूद नहीं है। सिर्फ एक ही जाति के अंदर सिमटी हुई है। बीच में उनके कोई कार्यकर्ता भी चुनाव की तैयारी नहीं करते हैं। लेकिन नामांकन की घड़ी उनके भी उम्मीदवार टपक ही जाते हैं। तो संभव है, उस पार्टी से भी कोई न कोई उम्मीदवार होंगे ही। चुनाव मैदान में जो भी आएंगे, आना तो सबका अधिकार है। परंतु सच यह है कि मुख्य मुकाबला है एनडीए और महागठबंधन के बीच ही होना तय है।