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हाँ ! मैं मौजा सहियारी हूँ, मैं भरथौली स्टेट हूँ ।मेरा कचहरी का निशान अभी भी खड़ा है ।( मौजा सहियारी स्थित भरथैली स्टेट की आत्मकथा )

मदनपुर ( औरंगाबाद ) से सुनील कुमार सिंह की ग्राउंड रीपोर्ट


मदनपुर थाना क्षेत्र के सुदूर दक्षिण में बढ़की पहाड़ के उत्तर तथा केशहर नदी से पुरब, आंजन निवासी स्व. भरथ सिंह के सहजपुर मौजा से पश्चिम एवं गुर्मी डीह से दक्षिण के इलाका में मेरा साम्राज्य फैला है। सैंकडों एकड़ भूभाग में फैला भरथौली साम्राज्य हजारों गरीब मजदुर एवं मजदुर किसानों का जीवन – यापन एवं भरण – पोषण करने में सहायक था।

कचहरी का अवशेष

मेरे मालिक एवं उनके परिजन गया शहर मुख्यालय में रहा करते हैं। यहाँ की कृषि व्यवस्था देख -रेख का जिम्मा खानदानी बराहील स्व. उदय पासवान एवं उनके पिता तथा दादा के उपर क्रमानुसार रहा है । मेरे कचहरी में कृषि कार्य के लिए 40 मजबुत बृषभ हुआ करते थें। शेष की जुताई – बुबाई छोटे – छोटे रैयतों के जिम्मे होता था। कचहरी की शोभा में एक विशाल हाथी बरगद के पेड़ के नीचे बँधा रहता था। मालिक फसल लगाने एवं तैयार फसल को संगह करनें हेतु निजी जीप से मौजा सहियारी आकर हप्ता – परवबारा रुका करते थें। जहाँ जीप का रास्ता नहीं होता था, वहाँ हाथी पर सवार होकर मालिक कृषि कार्य का जायजा लेनें जाया करते थें। तैयार अनाज ट्रकों में भरकर गया स्थित कोठी पर पहुंचा दिया जाता था।
मेरी सल्लतनत का काला अध्याय 1970 की दशक से शुरू होना चालु हो गया। भाकपा – माओबादी पार्टी का जन्म हुआ। मेरे स्टेट की कुछ जमीनों पर लाल झंडा गाड़कर जोत – कोड़ पर रोक लगा दिया गया। लेकिन फिर भी मेरे कर्मी एवं मजदुर कृषि कार्य करते रहे । नतीजन 1981 – 82 में मेरे कचहरी भवन को ही प्रतिबंधित संगठन के द्वारा विस्फोटक लगाकर धवस्त कर दिया गया । कृषक मजदुरों को कहा गया कि फसल का आधा हिस्सा मालिक को नहीं देकर संगठन को दिया जाय। मेरी लाज लुटती रही, पुलिस प्रशासन मुकदर्शक बना रहा। आज भी उसी हाल में टुटे -फुटे खंडहर के रूप में मेरा बजुद खड़ा है। हाँ ! मैं मौजा सहियारी हूँ, मैं भरथौली स्टेट हूँ ।