आलोक कुमार संपादक सह निदेशक खबर सुप्रभात समाचार सेवा
देश में संसद का शीतकालीन सत्र इस बार फिर हंगामे का भेंट चढ़ कर रह गया। 25 नवम्बर से शुरू शीतकालीन सत्र महज 26 दिन चला लेकिन सभी दिन सत्र हंगामें की भेंट चढ़ते रहा। इसके लिए जिम्मेवार सत्ता और विपक्ष दोनों को माना जायेगा। लेकिन सच्चाई यह है कि विपक्ष से ज्यादा
सत्ता पक्ष को संसद चलाने और देश के मूलभूत सवालों पर बहस कराने का जिम्मेवारी होता है। विपक्ष का दायित्व है कि देश के मूलभूत सवालों पर चर्चा करने से यदि सरकार पीछे हट रही है तो विपक्ष तो इसके लिए सत्ता पक्ष पर हमलावर होगा ही। लेकिन सत्ता पक्ष यदि संसद में टकराव के स्थिति उत्पन्न करता हो तो विपक्ष पर जबरन आरोप भी लगाना लोकतंत्र और संसद का अपमान नहीं तो और क्या कहा जा सकता है। अडानी के सवाल पर आखिर संसद में बहस कराने से सत्ता पक्ष को परेशानी क्या है? सदन में गृहमंत्री अमित शाह क्या अम्बेडकर के बार बार नाम लेकर जो भी कहे इससे साफ जाहिर नहीं होता है कि वे अम्बेडकर के प्रति मज़ाक उड़ाये हैं? संसद के प्रवेश द्वार पर लाठी में तख्तियां लेकर प्रदर्शन/ घेराव करने का भाजपा सांसदों ने टकराव करने का मंशा जाहिर किया है? और टकराव के कारण संसद की शीतकालीन सत्र हंगामें का भेंट चढ़ कर रह गया। जबकि संसद के कार्यवाही के नाम पर एक दिन में 19 करोड़ रुपए खर्च होता है और 26 दिन में 84 करोड़ रुपए का चुना लगा। 84 करोड़ का चुना लगने और संसद में कोई भी बहस देश के सवालों पर नहीं करने के लिए जिम्मेवार सांसदों को क्या जनता के बीच आने का नैतिक साहस बचा है।यह सवाल आज देश के हर जनता को पुछना चाहिए उन सांसदों से जिन्होंने जनता के टैक्स के पैसा को पानी के तरह 84 करोड़ का चुना लगाया है।