औरंगाबाद खबर सुप्रभात समाचार सेवा
औरंगाबाद जिला मुख्यालय में 21 अक्टूबर ( सोमवार) को औरंगाबाद में बिहार केशरी व प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ० श्रीकृष्ण सिंह का 137 वां जयंती का आयोजन किया गया। जयंती समारोह को सफल बनाने के लिए आयोजन समिति द्वारा बड़े ही उत्साह और उल्लास के साथ तैयारी किया गया
था। गणमान्य लोगों को आमंत्रित किया गया और आमंत्रण पत्र में नाम भी छापा गया। आने का स्विकृती के बाद ही आमंत्रण पत्र में नाम छापा गया होगा। लेकिन बिहार केशरी के प्रति उदासीनता ही कहा जा सकता है कि सबकुछ के बाद माननीय लोगों का अनुपस्थिति रहा। हो सकता है कि आयोजन समिति द्वारा कुछ भूल चुक रहा हो। लेकिन बिहार केशरी जो कि देश में चल रहे ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का एक मजबूत स्तम्भ और उनके भूमिका को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है। आजादी के बाद जब बिहार केशरी को मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो उन्होंने अपने शासन काल में बड़ा समाजिक बदलाव के लिए महत्वपूर्ण एवं क्रांतिकारी कदम उठाए थे। समाजिक विषमताओं को पाटने के दिशा में कदम उठाने के अलावे जमींदारी उन्मूलन के क्षेत्रों में भी काम कर रहे थे। साथ ही बिहार को विकासशील राज्यों में खडा करने के लिए भी उन्होंने प्रदेश में बड़े बड़े उद्योगों को भी स्थापित कराने में अहम् भूमिका निभाने का कार्य किया। डॉ ० श्री कृष्ण सिंह जो बिहार केशरी के नामों से नवाजे जाते हैं उनके चहेते आज सभी जाति एवं धर्म में आज भी है और रहेंगे। लेकिन 21 अक्टूबर को औरंगाबाद में आयोजित उन महान विभूति का जयंती समारोह में लोगों को अपेक्षाकृत संख्या में नहीं पहूचना एक गंभीर मामला है और चिंता का कारण है। सबसे बड़ी बात यह भी है कि जिस कांग्रेस के लिए बिहार केशरी डॉ श्रीकृष्ण सिंह आजिवन संघर्षरत रहे और कांग्रेस के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को धार देते रहे लेकिन उनके जयंती समारोह में एक भी सरुखदार कांग्रेसी का उपस्थिति नहीं रहना भी आत्म मंथन का विषय होना चाहिए।